A Family’s Quest For Spirituality
कौन जानता था कि भगवद्गीता पर हमारी साप्ताहिक ज़्हूम चर्चा इतनी आनन्ददायक होगी?
राम एस. गुप्ता
हमारा परिवार तीन-पीढ़ियों का एक घनिष्ठता से जुड़ा हुआ परिवार है। पहली पीढ़ी में दादा-दादी हैं, फ़िर हमारा बेटा और उसकी पत्नी और हमारी दो बेटियाँ और उनके पति, उन दोनों के दो-दो बच्चे हैं—हमारे पोते-पोतियाँ।
हममे से ज़्यादातर लोग कई दशकों से धार्मिक हैं, हर महीने होने वाली पूजा के समूहों में भाग लेते हैं और उसका नेतृत्व करते हैं, साथ ही धार्मिक तीर्थयात्राओं पर जाते हैं, रोज प्रार्थना करते हैं, हिन्दू रीति-रिवाजों का ध्यान रखते हैं। हाल ही में हम अपने क्षेत्र के पहले हिन्दू मन्दिर के खुलने में शामिल रहे हैं। हालांकि, हिन्दू धर्म के आध्यात्मिक पहलुओं से परिचय सीमित रहा है। हाल ही में वेदान्त की पुस्तकों के अध्ययन और व्याख्यानों, ध्यान और बढ़ी हुई जागरूकता—और परिवार के अन्दर चर्चा से इसमें परिवर्तन आ रहा है।
हाल ही में, स्वास्थ्य की समस्याओं पर चर्चा करते समय, हम सभी ने सोचा कि ज़्हूम पर एक साथ भगवद्गीता पढ़ना आध्यात्मिकता की शक्ति को समझने, उपचार करने और एक-दूसरे को नैतिक तौर पर सहयोग करने का अच्छा तरीक़ा होगा। हमने एक माह पहले साप्ताहिक पारिवारिक गीता अध्ययन समूह के साथ शुरुआत की। प्रतिभागी: हम दादा-दादी जो रोड आइलैंड पर थे; हमारा बेटा और उसकी पत्नी जो रोड आइलैंड पर थे; हमारी एक बेटी जो वर्जीनिया में थी; हमारी दूसरी बेटी का पति (हमारा दामादा) जो दिल्ली में था; और हमारी बहू की माँ जो दिल्ली में थी।
हमने प्रत्येक सत्र की शुरुआत अध्याय १२, में दिये गये संस्कृत के उच्चारण से की, जो भक्ति योग पर है, जो लम्बे समय से हमारे परिवार की परम्परा है। फ़िर हमने कुछ श्लोक अनुवाद और टिप्पणी के साथ पढ़े, जिसके बाद बातचीत और व्यक्तिगत अनुभवों का आदान-प्रदान हुआ।
एक-दूसरे पर विश्वास के चलते, और हमारे बीच किसी गीता पर अधिकृत जानकारी रखने वाले की अनुपस्थिति में, हम विवेक और आलोचनात्मकता की समझ के बिना भी आपसी चुनौतियों को समझने में सक्षम रहे। परिवार की सहायता ने आध्यात्मिक यात्रा को शुरु करने और उस पर आगे बढ़ने के लिए आस्था तक पहुँचने के सेतु का काम किया। प्रत्येक ने दूसरे के लिए एक आदर्श के तौर पर, एक-दूसरे की मदद करने और यह सुनिश्चित करने का काम किया कि आध्यात्मिक प्रगति सम्भव, वास्तविक और अर्थपूर्ण है, हालांकि अलग-अलग स्तरों पर।
बिना किसी विशेष उद्देश्य के, हमारे सत्र हमें व्यस्त रखने वाले और हम में से प्रत्येक के लिए अर्थपूर्ण रहे हैं। पाठ्यक्रम पूरा करने की कोई हड़बड़ी नहीं है। हम पूरा सत्र एक ही श्लोक पर बहस करते हुए व्यतीत कर सकते हैं। कोई निर्धारित नेतृत्वकर्ता नहीं है; हर कोई बारी-बारी से पाठ करता है, व्याख्या करता है, प्रश्न पूछता है और परिप्रेक्ष्य प्रदान करता है।
हालांकि हमारे बच्चों ने पूरी तरह से भागीदारी नहीं की, लेकिन कुछ समय-समय पर सत्रों में जुड़ते रहे। हमने उनके लिए कुछ छोटे संसर्गों का प्रबन्ध किया था—जैसे एक को ध्यान कराने की कोशिश करना, और अन्य दो को पूजा में शामिल करना। यह उनके अन्दर संस्कार डालेगा। उम्मीद है कि उनकी भागीदारी धीरे-धीरे बढ़ेगी।
ये जुटानें हमारे लिये बहुत गहनता से लाभप्रद रहीं, जिसने स्वयं और दूसरों के लिए शानदार प्रतिफल, हमारे घरों में कम टकराव और बहसें, दूसरों के दृष्टिकोणों की सराहना, सुझावों और सलाहों के प्रति खुलापन; और आध्यात्मिक क्रियाकलाप, जैसे ध्यान करने की इच्छा को प्रेरित किया। मैंने यहाँ समूह से कुछ प्रतिक्रिया ली है।
परिवार के सदस्य एक ने मन को शान्त रखने की आवश्यकता, दुःख का निर्माण करने में अहंकार की भूमिका, ध्यान का महत्व और ईश्वर की कृपा की प्रतीक्षा करने की बजाय प्रयास और अभ्यास की भूमिका को पहचाना।
सदस्य दो उस ग्रन्थ के गहन अर्थ की समझ से प्रभावित थी जिसे उसने पहले भी अनगिनत बार पढ़ा था। परिवार की भागीदारी के साथ व्यावहारिक दृष्टिकोण ने उसे यह सुनिश्चितता प्रदान की कि परिवर्तन सम्भव है और इसके लिए प्रयास करना उचित है। भागीदार तीन रोमांचित है कि सत्रों ने परिवार के सदस्यों के बीच सम्बन्धों में कितना सुधार किया है। उसे भक्ति, ज्ञान, कर्म और राज योगों के बीच सम्बन्धों की गहन जानकारी प्राप्त हुई।
सदस्य चार ने कई लाभ सूचीबद्ध किये: “इसकी अत्यधिक जागरूकता हुई है कि दूसरों के सन्दर्भ में मैं कौन हूँ। इसका परिणाम प्रतिक्रिया करने से पहले चिन्तन करने की इच्छा के रूप में है। रात के खाने के समय बातचीत में हमारे गीता के सत्र को लेकर चर्चा सबमें सुधार ला रही है, जिनमें वे भी शामिल हैं जो सत्र में शामिल नहीं होते। ऐसी गहन परिचर्चा करना अद्भुत रहा है। अब मैं माँ और पिताजी से अधिक जुड़ा हुआ महसूस करता हूँ, विशेष तौर पर पिताजी से। मैं पहले बहुत धार्मिक नहीं था और गीता पढ़ते हुए समय गुजारना मुश्किल हुआ करता था, क्योंकि कोई अन्य चीज़ हमेशा प्राथमिकता में आ जाती थी। इस मॉडल में, जवाबदेही का स्तर कम है, जो सचमुच अच्छी बात है। मुझे लगता है कि यह शानदार है और हमने एक भी सप्ताहान्त नहीं छोड़ा!”
परिवार के सदस्य पाँच ने साझा किया, “मैं भी धीरे-धीरे इसका हिस्सा बन रहा हूँ। मैं वापस जाता हूँ और फ़िर से श्लोकों को पढ़ता हू, जिससे धीरे-धीरे आत्मविश्वास आ रहा है। हाल ही में एक अन्तिम संस्कार के दौरान, मैं दूसरे लोगों को आत्मा और शरीर के बीच सम्बन्ध समझाने में सक्षम रहा। मैं परिवार के सदस्यों के साथ बातचीत में मृदु होता जा रहा हूँ, उतना क्रोधित नहीं हो रहा हूँ, हर चीज़ पर विवाद नहीं कर रहा हूँ, शान्त रहने का प्रयास कर रहा हूँ, और घर पर शान्ति बनाये रखने की कोशिश कर रहा हूँ। मैं जानता हूँ कि हमें सन्त नहीं बनना है। बहुत से लोग हैं जो साधारण जीवन व्यतीत करते हैं और केवल सेवा करते हैं।”
परिवार के सदस्य छः ने आध्यात्मिक प्रभाव की बात कही: “गीता के सत्र और उसके साथ की परिचर्चा ने आस्तित्व के सार्वभौमिक प्रश्न की मेरी खोज को और गहरा कर दिया है। मुझे यह स्पष्ट हो रहा है कि सत्य हमारे अन्दर होता है और कि हमारा ध्यान और हमारी जागरूकता हमारे ब्रह्माण्ड के रचनात्मक स्रोत हैं। मेरा अपना मन समय के साथ-साथ इस शानदार खोज को सरल होता देख रहा है। मैं अब उसके थोड़े से अंश को ग्रहण कर पाने में सक्षम हूँ जो हमारे सन्त हमेशा कहते रहे हैं—खोज शाश्वत है; चंचल अभिनय एक विचार-विमर्श है, लेकिन सत्य की तलाश, एक लम्बी यात्रा एक कक्ष के अन्दर बैठकर भी की जा सकती है। लौकिक स्तर पर, सत्रों ने मुझे काम करते समय ज़्यादा रचात्मक और सहज होने, अपनी सहज-वृत्ति और विचार-विमर्श के सत्र के समय मेरे मन द्वारा दिये गये उत्तरों पर विश्वास करने और में सहायता की है।”
राम गुप्ता (ऊपर चित्र देखें, नीचे-बायें अपनी पत्नी के साथ) ने एक लम्बे पेशेवर जीवन के बाद, इस समय अपने जीवन को आध्यात्मिक अध्ययन/परिचर्चाओं और मन्दिर पर धार्मिक सेवा और हरि विद्याभवन में हिन्दी और संस्कृति पढ़ाने को समर्पित कर चुके हैं।