Famed Kerala Temple Wins Supreme Court Decision

निकट के तालाब के पार से मन्दिर का दृश्य

एक दशक के बाद, भगवान विष्णु के इस शानदार समृद्ध मन्दिर की ट्रस्टीशिप अन्ततः त्रावणकोर के राजपरिवार को वापस कर दी गयी है

द्वारा चूड़ी शिवराम, बंगलुरु

केरल के ऐतिहासिक श्री पद्मनाभस्वामी मन्दिर के श्रद्धालु १३ जुलाई, २०२० को बहुत खुश हुए जब भारत के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय ने त्रावणकोर के शाही परिवार के इस समृद्ध मन्दिर के प्रशासन के अधिकार को बनाये रखा।

A painting of the temple tower, devotees and enshrined Deity. Maniam Selven

मन्दिर के मीनार, भक्तों और स्थापित देवता का एक चित्र। मणियम सेल्वन

न्यायाधीश यू.यू. ललित और न्यायाधीश इन्दु मल्होत्रा की दो जजों की पीठ ने केरल उच्च न्यायालय के २०११ के निर्णय को पलटते हुए राज परिवार के शेबैत (जो स्थापित देवता की सेवा और सहायता करता है) के अधिकार को फिर से बहाल किया। “हम मानते हैं कि श्री चित्तिरा तिरुनाल बालराम वर्मा (त्रावणकोर के अन्तिम महाराज) की मृत्यु को किसी भी प्रकार से त्रावणकोर के राजपरिवार द्वारा मन्दिर के शेबैत के कार्य को प्रभावित नहीं करना चाहिए,” न्यायालय ने कहा।

केरल उच्च न्यायालय ने राज परिवार को मन्दिर के प्रशासन के वंशानुगत अधिकार से वंचित करते हुए २०११ में निर्देश दिया था कि राज्य सरकार मन्दिर के प्रबन्धन और सम्पत्तियों का नियन्त्रण अपने हाथ में ले। परिवार ने इस निर्णय के विरुद्ध सर्वोच्च न्यायालय में अपील की थी।

उस वर्ष मई तक, श्री पद्मनाभस्वामी मन्दिर ने इसके तहखाने (कल्लरों) में सदियों से सुरक्षित रखी अत्यधिक सम्पदा की रिपोर्टों के कारण पूरे विश्व का ध्यान खींचा था। ज़ल्द ही सोशल मीडिया पर अफवाहें उड़ने लगीं, जिसमें खजाने की नकली तस्वीरें शामिल थीं (२०१२ के मेरे लेख को देखें: bit.ly/padmanabhaswamy).

उमा माहेश्वरी के अनुसार, जिन्होंने राज्य और इस मन्दिर के इतिहास पर ३३ पुस्तकें लिखी हैं और जिन्हें त्रावणकोर के इतिहास पर विश्व का सबसे अधिकृत विशेषज्ञ माना जाता है, “कल्लरों में मिली सम्पत्ति सदियों से राज परिवार द्वारा चढ़ाया गया चढ़ावा है। आभूषणों, वजन, लम्बाई, रत्नों की संख्या, धन, आदि का विवरण—प्रत्येक जानकारी पूरी तरह मैथिलकोम रिकॉर्ड में दर्ज की गयी है। राज परिवार को देवत्व विरासत में प्राप्त है और श्री पद्मनाभस्वामी को उनका चढ़ावा बन्द नहीं हुआ है। वे इसे सार्वजनिक नहीं करते।”

२०११ में मन्दिर के गुम्बद का खुलना

२०११ में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक सात-सदस्यीय समिति नियुक्त की जिसने मन्दिर के कल्लरों को खोलने का आदेश दिया जिसमें से कई सदियों से सीलबन्द थे। भक्तों और हिन्दू संस्थाओं ने अपने धार्मिक विश्वासों और परम्पराओं में इस न्यायिक हस्तक्षेप का जोरदार ढंग से विरोध किया, लेकिन छः में से पाँच गुम्बदें खुल गयी थीं। जब गुम्बद ए को खोला गया तो गुम्बद बी की दीवार के पीछे एक टोपीदार साँप की तस्वीर का प्रतीक देखा गया। ऐसा माना जाता है कि प्रतीक निषेध क्षेत्र का प्रतीक है, और इसे खोलने से विपत्ति आ जायेगी। ज़ोरदार विरोध प्रदर्शनों के बाद, विवादास्पद गुम्बद बी को अछूता छोड़ दिया गया।

जब पाँच गुम्बदों को खोल दिया गया, सम्पत्ति की अफवाहें फैलने लगीं। जोश में आकर समिति के सदस्य बिना आगामी सुरक्षा जोख़िम को ध्यान में रखे खुलेआम यह बताने लगे कि क्या मिला था। लेकिन इसमें कोई सन्देह नहीं कि इसका मूल्य कई करोड़ डॉलर है।

Several of the many armed police and commandos who guard the temple stationed in front of the central sanctum. Anil Bhaskar

केंद्रीय गर्भगृह के सामने तैनात कई सशस्त्र पुलिस और कमांडो में से कई जो मंदिर की रखवाली करते हैं। अनिल भाष्कर

२०१२ में, प्रशासन में अड़चन आने और न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति से बातचीत के बाद, सर्वोच्च न्यायालय ने गोपाल सुब्रमण्यम को एमिकस क्यूरी (“न्यायालय के मित्र” के लिए लैटिन शब्द) नियुक्त किया जो एक वकील थे। उस समय उन्होंने मन्दिर को चलाने के लिए एक कार्यकारी अधिकारी भी नियुक्त किया। दुर्भाग्य से, उन्होंने मन्दिर की सदियों पुरानी परम्परा और प्रथाओं का पालन नहीं किया। “उन्होंने एमिकस क्यूरी होने का लाभ लिया और संरचना और प्रथाओं में बदलाव करना शुरु किया,” के. पी. मधुसूदन कहते हैं, जो फ़ोर्ट एरिया रेज़ीडेंस कॉन्सोर्टियम (एफ़एआरसी) के महासचिव हैं, जिन्होंने इन उल्लंघनों के ख़िलाफ़ संघर्ष किया।

गोपनीयता की शर्त पर, मन्दिर के एक अधिकारी ने कहा, “एमिकस क्यूरी गुम्बद बी खोलने के आग्रही थे, वह कहते थे कि उन्हें अन्दर श्री चक्र दृष्टिगोचर हो रहा है जिसे मन्दिर के गर्भगृह में रखना चाहिए। दैवीय आदेश का दावा करके, वह गर्भगृह के अन्दर प्रवेश करना चाहते थे, जो ऐसा क्षेत्र था जहाँ पुजारी और कुछ पुरोहितों के अतिरिक्त कोई नहीं गया था।”

मुख्य गर्भगृह के सन्दर्भ में भी कुछ परिवर्तन की माँग की गयी। मन्दिर के तालाब कि निकट के मण्डपों (खुले सतम्भों वाली स्थापनाओं) को ध्वस्त कर दिया गया। मुख्य गोपुरम के निकट एक स्वचलित स्टील का दरवाजा लगाने के प्रयास ने संरचनागत क्षति पहुँचाई (और दरवाज़े ने कभी काम नहीं किया)। प्रथा के विपरीत, पास के श्री नरसिंह मन्दिर में कीटनाशकों का प्रयोग किया गया। बिना किसी कारण के, देवताओं को चढाये जाने वाले चन्दन के लेप में केसर मिलाने की प्रथा समाप्त कर दी गयी।

Maharani Setu Parvati Bayi (seated, 1896–1983) and her son (succession was matrilineal)

महारानी सेतु पार्वती बाई (बैठी हुई, १८९६–१९८३) और उनके पुत्र (उत्तराधिकार मातृवंशीय था)

राज परिवार से जुड़ी सबसे महत्वपूर्ण प्रथाओं में से एक—पुराने राजाओं के जन्म के सितारे पर चन्दन के लेप का प्रसाद चढ़ाना—रोक दिया गया। स्पष्ट प्रयोजन राजपरिवार और मन्दिर के बीच की किसी भी कड़ी को समाप्त कर देना था। मन्दिर की यह शर्त समाप्त कर दी गयी कि भक्तों को पारम्परिक परिधान में आना होगा—इस निर्णय को अन्ततः केरल उच्च न्यायालय द्वारा पलट दिया गया। एमिकस क्यूरी ने देवता को भोर में ३:३० पर जगाने की परम्परा को भी परिवर्तित करने का निवेदन किया, जो कि हमेशा एक एकल शंख बजाकर किया जाता था। वह इसे नादस्वरम तुरही और दो दर्जन अन्य वाद्ययन्त्रों के साथ करना चाहते थे—जो एक ऐसा संयोजन था जो एक डेसीबल के मानक को पार करता था।

अधिग्रहण के पीछे

भारत में हिन्दू दशकों से मन्दिरों में सरकार के दखल और उसके अधिग्रहण के विरुद्ध प्रदर्शन करते रहे हैं—जबकि ठीक उसी समय चर्च और मस्ज़िदों को सरकार छूती तक नहीं। श्री पद्मनाभस्वामी मन्दिर का अधिग्रहण—मन्दिर, भक्तों और राज परिवार पर इसके प्रभाव के परे—हिन्दू आस्था के साथ एक और घोर अन्याय के रूप में प्रकट हुआ।

Uthradom Thirunal Marthanda Varma (1922–2013) in procession—his nephew is the present Maharaja of Travancore

शोभायात्रा में उथरडोम थिरुनल मार्तंड वर्मा (१९२२–२०१३)—उनके भतीजे त्रावणकोर के वर्तमान महाराज हैं

स्वतन्त्रता के बाद—जब रियासतों को भारत संघ में मिलाया गया—त्रावणकोर के महाराज, चित्तिरा तिरुनाल को अपनी पसन्द की सम्पत्ति को बनाये रखने का अवसर दिया गया था। स्पष्ट शब्दों में उन्होंने मांग की कि श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर का प्रशासन त्रावणकोर के शासक के विश्वास में रखा जाये। यह त्रावणकोर (आधुनिक केरल का बड़ा हिस्सा) को सौंपते समय हस्ताक्षरित अनुबन्ध पत्र में शामिल था। महाराज को सुनिश्चित किया गया कि मन्दिर का प्रशासन राज परिवार के पास रहेगा।

इस प्रकार भारतीय संघ और महाराज के बीच विलय का अनुबन्ध त्रावणकोर के राजपरिवार और मन्दिर के बीच के विशेष सम्बन्ध की सुरक्षा करता है।

अधिवक्ता एम.के.एस. मेनन के अनुसार, जो मामले को निर्देशित करने वाली टीम में हैं, “अनुबन्ध पर हस्ताक्षर करते समय, महाराज चित्तिरा तिरुनाल को अपनी पसन्द की सम्पत्ति को बनाये रखने का अवसर दिया गया था। महाराज मन्दिर को राजपरिवार के पास रखना चाहते थे क्योंकि यह उनके अस्तित्व की केन्द्रीय शक्ति था। चित्तिरा तिरुनाल ने कहा कि प्रभुत्व सम्पन्न न होने के कारण वह अनुबन्ध पर हस्ताक्षर नहीं कर सकते। श्री पद्मनाभस्वामी है। इसलिए महाराज ने श्री पद्मनाभस्वामी के प्रतिनिधि के रूप में हस्ताक्षर किया।”

शासक की प्रभुसत्ता-सम्पन्न के रूप में गलत व्याख्या करते हुए (“राजनीतिक नेता” के सन्दर्भ में), केरल उच्च न्यायालय ने निर्णय लिया कि सरकार को मन्दिर का अधिग्रहण कर लेना चाहिए। “त्रावणकोर के राज परिवार का वरिष्ठतम सदस्य राजनीतिक अर्थों में शासक नहीं था। यह उसकी पदवी थी। त्रावणकोर कोचीन धार्मिक संस्था अधिनियम १९५० मन्दिर के प्रशासन में ‘शासक’ के अधिकारों का अनुमोदन करता है। जब यह अधिनियम लागू हुआ, सरकार ने शासक शब्द को बनाये रखा, हालांकि शासन [राजनीतिक सत्ता के रूप में] का स्वतन्त्रता के बाद उन्मूलन कर दिया गया था। यह केरल राज्य द्वारा भी स्वीकार किया गया, जब इसे १९५६ में बनाया गया,” अधिवक्ता मेनन कहते हैं। दूसरे शब्दों में, १९५० के अधिनियम में “शासक” का सन्दर्भ महाराज थे, न कि केरल की राज्य सरकार। यह सूक्ष्म लेकिन महत्वपूर्ण बिन्दु था।

Deities being taken out to the seashore during the Aarat festival

आरत त्यौहार के दौरान देवताओं को समुद्र तट पर ले जाते हुए

the present titular monarch, Sree Moolam Thirunal Rama Varma (center with large green emerald pendant)

वर्तमान तितुलर के राजा, श्री मूलम थिरुनाल राम वर्मा (बीच में पन्ने जैसे हरे रंग के वस्त्र में)

अभियोग के काले दिन

पीढ़ियों तक, राज परिवार ने पूरी तरह से अपने आपको देवता के हवाले कर दिया, उनके पास जो कुछ भी था उसे समर्पित कर दिया। वे श्री पद्मनाभस्वामी के लिए जीते रहे और एक धर्मपरायण तथा मितव्ययी जीवन बिताते रहे। भारत के दूसरे रियासती परिवारों से अलग, उन्होंने राजनीतिक भागीदारी और अतिरेकपूर्ण जीवनशैली से परहेज किया।

रेटिंग की भूखी मीडिया ने राज परिवार द्वारा सम्पत्ति के दुरुपयोग से सम्बन्धित झूठी और सनसनीखेज रिपोर्ट प्रसारित कीं।  एमिकस क्यूरी की रिपोर्ट दिवंगत महाराजा उथराधोम तिरुनल के खिलाफ तीखे आरोपों से भरी हुई थी, जो नब्बे साल के थे, एक पैर में चोटिल थे, अभी भी आरात त्यौहार के दौरान तट पर तीन किलोमीटर नंगे पैर चलते थे, क्योंकि वह देवताओं के जुलूस का १७वीं सदी की अनुष्ठानिक तलवार लेकर नेतृत्व करते थे (तस्वीर पेज ३१ नीचे)। चोरी और यहाँ तक कि हत्या के भी आक्षेप लगाय गये।

लेकिन चूंकि मामला न्यायालय के अधीन था, राज परिवार इन लांछन के अभियाने के विरुद्ध जनता के बीच अपना बचाव नहीं कर सकता था। जब मैंने महाराज से पूछा, स्वर्गीय उथराधोम थिरुनाल से, कि वह टी.पी. सुन्दराजन के बारे में कैसा सोचते हैं जिसने राजपरिवार को झूठे आरोपों में न्यायलय तक घसीट लिया, उन्होंने आराम से कहा, “केशव [विष्णु] कई रूपों में आ सकते हैं।”

एफ़एआरसी के मधुसूदम कम क्षमा प्रदान करने वाले थे: “उनके इरादे क्रूरता से भरे हुए थे, इसका उद्देश्य राजपरिवार पर कीचड़ उछालना था, उनसे मन्दिर का प्रशासन छीन लेना और मन्दिर के पारम्परिक पहलुओं को बदल देना था। लोगों को राज परिवार के विरुद्ध जाने के लिए फुसलाया गया। एमिकस क्यूरी की रिपोर्ट पर विश्वास किया गया क्योंकि उन्हें सर्वोच्च न्यायालय ने नियुक्त किया था। राजपरिवार को मन्दिर से अलग करने के लिए जनमत तैयार किया गया। यह गुप्त उद्देश्य और बहुत परेशान करने वाला था। हमने अन्याय के विरुद्ध संघर्ष करने का निर्णय लिया; राज परिवार का समर्थन करना चाहिए और मन्दिर को बचाना चाहिए।”

पीपुल फॉर धर्म ने मन्दिर के सरकार द्वारा अधिग्रहण को रोकने के लिए एफ़एआरसी के साथ काम किया। “राज्य एक ऐसा किरायेदार है जो एक बार मंदिर के ढांचे में प्रवेश करने के बाद उसे खाली नहीं करता है,” पीपुल फॉर धर्म के अधिवक्ता साईं दीपक ने सर्वोच्च न्यायालय में अपने लिखित निवेदन में कहा।

“हमारी माँग है कि प्रथाओं और परम्पराओं से छेड़छाड़ नहीं होना चाहिए, और कि एमिकस क्यूरी की रिपोर्ट को न्यायालय द्वारा रद्द कर देना चाहिए,” मधुसूदन बताते हैं।

राज परिवार की राजकुमारी अश्वथि थिरुनाल गौरी लक्ष्मी बाई ने इन मामले में बहुत सक्रिय भूमिका निभाई। “मैं प्रत्येक सुनवाई के लिए न्यायालय में उपस्थित थी, अधिवक्ता के कार्यालय में घंटों बिताते हुए, देर रात यात्राएँ करते हुए, धूल भरे गलियारों में कठोर बेंच पर दिन भर मुक़दमें के पुकारे जाने की प्रतीक्षा करते हुए, दिन भर बिना कुछ खाये.…मुझे याद है कि कैसे मैं पूरी रात अगले दिन के मुक़दमें के लिए नोट्स बनाती रहती थी और सुबह 6:30 बजे श्री पद्मनाभस्वामी की तस्वीर के सामने गिर जाती थी और रोती रहती थी।

“एक बार जब हमारा मामला सुनवाई के लिए आया, न्यायालय में मेरे पीछे बैठे पत्रकार ने कहा, ‘ओह, ये लोग हैं जिन्होंने मन्दिर से चोरी की।’ दूसरा पत्रकार जो मुझे पहचानता था, उसने उसे कुहनी मारी। उस महिला ने मुझे देखा और कहा, ‘क्षमा कीजिए, मैंने यूँ ही कह दिया।’ मैंने उसे बताया, ‘आपके लिए यह “यूँ ही” हो सकता है पर हमारे लिए यह बहुत बड़ा आघात है। आपके जैसे लोग हैं जो समस्या खड़ी करते हैं, आपको सच नहीं पता है, क्या आपको पता है?’ ”

प्रख्यात न्यायविद विलियम ब्लैकस्टोन ने एक बार कहा था कि यह अच्छा है दस दोषी बच जायें लेकिन यह ठीक नहीं है कि एक निर्दोष व्यक्ति कष्ट उठाये। लेकिन इस मामले में, विकृत मीडिया, अफ़वाह और सनसनी के कारण दोषी बच रहे थे और निर्दोष कष्ट सहन कर रहे थे। अधिवक्ता मेनन जो वरिष्ठ अधिवक्ताओं की टीम में थे, उन्होंने अधिवक्ताओं में श्रेष्ठताक्रम की चुनौतियों को सहन करते हुए इस मामले को जीतने की कठिन चुनौती ली। “उन्होंने जिस भावनात्मक आघात को सहन किया—हर सेकंड उन्हें दर्द सहना पड़ा,” वह कहते हैं। “मैं बस एक चीज़ चाहता था, न्याय होना चाहिए।”

devotees depart the temple after worship

भक्त मन्दिर से पूजा के बाद निकलते हुए

The four nambis, or chief priests

चार नाम्बी, या मुख्य पुरोहित

सर्वोच्च न्यायालय की लड़ाई

अन्ततः,  पुरोहित और भक्तों के लिए स्थिति सहन से बाहर हो गयी। अधिवक्ता मेनन कार्यकारी अधिकारी को हटाने के लिए सर्वोच्च न्यायालय गये। “उसे न्यायालय में बुलाया गया, प्रश्न किये गये और त्यागपत्र देने को कहा गया।,” अधिवक्ता मेनन याद करते हैं, जो कि मुक़दमें की अवधि के दौरान के कुछ सकारात्मक लक्षण थे।

२०१२ का मुक़दमा दोनों पक्षों से ऐतिहासिक दस्तावेज़ों के साथ लड़ा गया था। राजपरिवार को बदनाम करने वाली झूठी रिपोर्टों का मन्दिर का अपना रिकॉर्ड खण्डन करता था, जिसे मैथिलाकोम संग्रह कहा गया और संख्या में ये तीस लाख ताड़ के पत्र थे। उनमें मन्दिर के संचालन से सम्बन्धित सूक्ष्मत प्रक्रियात्मक दस्तावेज़ थे और सदियों की घटनाओं के विवरण थे। “ये रिकॉर्ड भी सिद्ध करते हैं कि त्रावणकोर का इतिहास, राज परिवार और श्री पद्मनाभस्वामी मन्दिर का इतिहास परस्पर जुड़े हुए हैं। मन्दिर उनकी पहचान है,” उमा माहेश्वरी कहती हैं।

जब समाचार आया कि २०२० की जुलाई में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आने वाला है, पूरे देश भर के मन्दिरों ने राज परिवार की विजय की प्रार्थना करते हुए विशेष पूजा की, जिसमें चिदम्बरम नटराज मन्दिर के दिक्षीतर पुजारियों की पूजा शामिल है। बनारस में काशी विश्वनाथ मन्दिर में विशेष अभिषेक किया गया। असंख्य भक्त और शुभेच्छु प्रार्थना में लग गये, बहुत से श्रीमद् भागवत पढ़ने लगे।

विजय और उसका परिणाम

सर्वोच्च न्यायालय के अन्तिम निर्णय में (नीचे देखें), मन्दिर का नियन्त्रण पूरी तरह से राजपरिवार के कार्यक्षेत्र में वापस कर दिया गया। एमिकस क्यूरी और लेखा परीक्षक विनोद राय की रिपोर्टों को अन्तिम निर्णय के लिए ध्यान में नहीं रखा गया। यह एक दशक की नीरस और कष्टप्रद मुकदमेबाजी का अंत था, जिसके दौरान राजपरिवार को असहाय रूप से खड़े होकर प्रशासनिक विफलताओं और मंदिर की परंपराओं की धज्जियां उड़ते हुए देखना पड़ा ।

इस लड़ाई ने उनका कई प्रकार से शोषण किया। नयी दिल्ली की अनगिनत यात्राएँ, अधिवक्ताओं की फ़ीस और अन्य खर्चों से वित्तीय समस्या हुई। मुक़दमे के दौरान, जब मन्दिर का संचालन न्यायालय द्वारा नियुक्त समिति द्वारा किया जाता था, राजपरिवार ने श्री पद्मनाभस्वामी मन्दिर ट्रस्ट के माध्यमस से मन्दिर के सभी व्यय उठाना जारी रखा। स्थानीय स्रोतों के अनुसार, तदर्थ प्रशासन द्वारा कई उपकरण लगाने, मंदिर परिसर के आसपास अनधिकृत नवीनीकरण कार्य, अनावश्यक कर्मचारियों की नियुक्ति, वेतन में कई गुना वृद्धि और अन्य बहुत से खर्चों पर ७.७ करोड़ रुपये अनावश्यक खर्च किए गए थे। महीने का व्यय ६८,००० अमरीकी डॉलर के आय के मुक़ाबले १,५७,००० अमरीकी डॉलर पहुँच गया था। अब, नये प्रशासन और सलाहकार समिति के स्थान लेने से और राजपरिवार द्वारा मन्दिर के अधिकार पुनः प्राप्त करने से, कटु अतीत को और कुप्रबन्धन को पीछे छोड़ा जा सकता है।

“निर्णय के दिन,” राजकुमारी अश्वथि थिरुनाल याद करती हैं, “उस सुबह पूरा परिवार हमारे कर्मचारियों समेत टीवी के सामने था, और हमने फ्लैश होता हुआ समाचार देखा कि त्रावणकोर के राजपरिवार ने श्री पद्मनाभस्वामी मन्दिर का मुक़दमा जीत लिया है। हम उन सभी ज्ञात और अज्ञात लोगों के आभारी हैं जो हमारे पीछे खड़े रहे, हमारे लिए प्रार्थना की, हमारे साथ दुखी हुए, हमारे लिये चिन्तित हुए और हमारे साथ संघर्ष किया। यह ऐसा ऋण है जिसे हम कभी नहीं चुका सकते।”

राज परिवार ने एक संयुक्त वक्तव्य जारी किया, जिसमें निष्कर्ष निकाला गया था कि: “हम आज के सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय को श्री पद्मनाभस्वामी का आशीर्वाद समझते हैं, न केवल परिवार के लिए, बल्कि उनके सभी भक्तों के लिए। हम पूरी मानवता पर उनकी कृपा की प्रार्थना करते हैं ताकि हम सभी सुरक्षित और ठीक रहें।”

न्यायालय ने अन्ततः क्या आदेश दिया

 मन्दिर के अधिकार राज परिवार को आने वाली पीढ़ियों के लिए फिर से बहाल करते हुए, राज परिवार के प्रमुख को अन्तिम तौर पर ट्रस्टी बनाते हुए, निर्णय ने एक सलाहकार समिति के गठन का भी निर्णय लिया, जिसके सभी सदस्य हिन्दू होने चाहिए।

प्रशासनिक समिति में पाँच सदस्य हैं। पहला तिरअनन्तपुरम का जिला जज, जो अध्यक्ष होता है। दूसरा मन्दिर का मुख्य पुरोहित होता है। बचे हुए तीन में एक राजपरिवार के ट्रस्टी द्वारा, एक केरल की सरकार द्वार और एक भारत सरकार के संस्कृति मन्त्री द्वारा नामित किया जाता है।

प्रशासनिक समिति के पास वर्तमान मानक संचालन प्रक्रिया को मन्दिर के प्रशासन और संचालन के सभी पहलुओं से नये सिरे से देखने का अधिकार है। आध्यात्मिक और धार्मिक सभी मामलों में, या सम्बन्धित प्रथाओं में, समिति के लिए मुख्य पुरोहित के निर्णय बाध्यताकारी होंगे।

सलाहकार समिति में १) केरल उच्च न्यायालय का एक सेवानिवृत्त जज अध्यक्ष होगा, २) राज परिवार द्वारा नामित कोई प्रख्यात व्यक्ति होगा, और ३) अध्यक्ष द्वारा राज परिवार को ट्रस्टी की सलाह से नामित एक प्रतिष्ठित चार्टर्ड एकाउंटेंट होगा।

न्यायालय ने आदेश दिया कि ये दो समितियाँ अन्य कार्यों को भी देखेंगी, जिसमें शामिल है: देवता को चढ़ायी गयी और मन्दिर की समस्त निधि और सम्पत्ति की रक्षा करना; सभी किराया सम्पत्तियों की रक्षा करना, और ऐसे सभी किराया सम्पत्तियों से उचित वित्तीय लाभ प्राप्त करने के लिए उचित उपाय अपनाना; साथ ही सुनिश्चित करना कि सभी प्रथाएँ और धार्मिक कर्म मुख्य पुरोहित के निर्देश और मार्गदर्शन के अनुसार तथा रीतियों और परम्पराओं के अनुसार हो रहे हैं।

प्रशासनिक समिति इन मामलों पर केवल राज परिवार के ट्रस्टियों के पूर्व अनुमोदन पर ही निर्णय ले सकती है: किसी भी चीज़ पर व्यय जो २०,४७५ अमेरिकी डॉलर प्रतिमाह से ज़्यादा हो, किसी एक सामग्री का व्यय जो १,३६,५०० अमेरिकी डॉलर से अधिक मूल्य का हो, मन्दिर में कोई बड़ा सुधार कार्य या विस्तार, स्थापित संचालन प्रक्रियाओं में कोई परिवर्तन, मन्दिर के चरित्र में कोई मूलभूत परिवर्तन जो भक्तों की धार्मिक भावनाओं को प्रभावित करेगा।


चूड़ी शिवराम तीन दशकों से एक पत्रकार हैं। वह समसामयिक घटनाओं, नीतिगत मामलों, संवैधानिक और विधिक मुद्दों, विरासत और संस्कृति पर लिखती हैं। उन्होंने एक दस्तावेज़ी फ़िल्म लिखी और निर्देशित की है, “भारत की स्वतन्त्रता की वेदी पर—मलेशिया में आईएए के सैनिक,” जिसे मलेशिया में भारतीय उच्चायोग द्वारा प्रस्तुत किया गया था। चूड़ी के पास पत्रकारिता और विधि की डिग्री है।