Quotes & Quips

वह घण्टों से ऐसे ही है – मुझे लगता है वह ध्यान लगा रहा है।

“खाली समय को प्रेम मत करो। एक भी मिनट बर्बाद न करो। साहसी बनो। सत्य को यहीं और अभी महसूस करो!”

स्वामी शिवानन्द (१८८७-१९६३)


तुम कुल मिलाकर खुश होना चाहते हो। तुम्हारी सारी इच्छाएँ, चाहे वे जो कुछ भी हों, खुशी की तलाश हैं। मूलतः, तुम अपने भले की इच्छा रखते हो …इच्छा अपने आप में बुरी चीज़ नहीं है। यह स्वयं में जीवन है, ज्ञान और अनुभव में विकसित होने की प्रेरण है। तुम्हारे द्वारा किये गये चुनाव ग़लत होते हैं। कल्पना करना कि कुछ छोटी चीज़ें—भोजन, काम, शक्ति, प्रसिद्धि—आपको खुश कर देंगी स्वयं को धोखा देना है। कोई तुम्हारे वास्तविक स्व जितनी विशाल और गहरी चीज़ आपको वास्तव में हमेशा के लिए खुश बना सकती है। निसर्गदत्त महाराज (१८९७-१९८१), इंचागिरि सम्प्रदाय के एक गुरु


उस ज्ञान की तलाश करो जो तुम्हारी गाँठ खोल दे। उस रास्ते की तलाश करो जो तुम्हारे पूरे अस्तित्व की माँग करे। रुमी (१२०७-१२७३), सूफ़ी सन्त और कवि


हम बेहतर होने की तलाश करते हुए जीने से बेहतर नहीं जी सकते। सुकरात (४६९–३९९ईसापूर्व), एथेंस के दार्शनिक


इच्छारहित, बुद्धिमान, अमर, आत्म अस्तित्व, आनन्दपूर्ण, किसी भी अभाव से रहित वह है जो अपने अन्दर की ज्ञानी, अजर, युवा आत्मा को जानता है। वह मृत्यु से नहीं डरता! अथर्ववेद X.८.४४६


हम जितना अधिक गहराई से अनुभव करते हैं, यह प्रमाण उतना ही चकित करने वाला बन जाता है कि एक समान योजना हर रूप को कई गुना प्रकृति में जोड़ती है। परमहंस योगानन्द (१८९३-१९५२)


वह जो सौभाग्य के पीछे दौड़ता है, शान्ति से दूर हो जाता है। अफ़्रीकी कहावत


यह एक शानदार दिन है, मैंने ऐसा दिन कभी नहीं देखा। माया एंजेलो (१९२८-२०१४), अमरीकी कवि


मनुष्य की सबसे बड़ी गलती यह सोचना है कि वह प्रकृति से कमजोर है, प्रकृति से बुरा है। हर मनुष्य अपनी वास्तविक प्रकृति में दैवीय और शक्तिशाली है। उसकी आदतें, उसकी इच्छाएँ और विचार कमजोर और बुरी हैं, लेकिन स्वयं वह नहीं। रमन महर्षि (१८७९-१९५०)


मैंने जाना है कि आप कभी इतने छोटे नहीं हो सकते कि कोई फ़र्क न पड़े। ग्रेटा थनबर्ग, स्वीडन की पर्यावरण कार्यकर्ता


वह तुम्हारे भीतर का प्रकाश है; उस तक पहुँचने का मार्ग जान लेना होने का सच्चा मार्ग है; यदि तुम जानते हो तो इस तरह, तुम जानते हो कि कोई अन्तर्विरोध नहीं है; वही मार्ग सर्वश्रेष्ठ है, तुम्हारा लक्ष्य की समाप्ति; उन लोगों की आत्मा निर्बल होती है जिन्हे मिलना नहीं आता। तिरुमन्दिरम १५४७


दुनिया की खुशी क्षणभंगुर है। आप दुनिया से जितना कम लगाव रखेंगे, आप मन की शान्ति का उतना अधिक आनन्द ले सकेंगे। शारदा देवी (१८५३-१९२०)


सत्य के मार्ग पर किसी व्यक्ति से केवल दो गलतियाँ हो सकती हैं; पूरे रास्ते पर न चलना, शुरु ही न करना। गौतम बुद्ध (५६३-४८३ ईसा पूर्व)


जैसे तेल के समाप्त होते ही लैम्प बुझ जाता है, उसी तरह योगी अपने पूर्व स्व को छोड़ देता है जब पूर्ण ध्यान की अवस्था में उसके अहं की पहचान समाप्त होती है। सर्वज्ञानोत्तरा आगम, योग पद, व५१


शक्ति आपके मन में है, न कि बाहर। इसे महसूस कीजिए और इससे आपको शक्ति मिलेगी। मार्कस ऑरेलियस (१२१-१८०), रोम का सम्राट और स्टॉइक दार्शनिक


सत्य की तलाश करना और सत्यवान बने रहना मनुष्य का कर्तव्य है। सत्य के साथ जुड़े रहने के लिए अपना पूरा प्रयास करें और एक बिल्कुल एकांत स्थान पर ईश्वर के बारे में चिन्तन करने में अधिक से अधिक समय लगायें। मनुष्यों को उस आन्तरिक स्थान पर रहना चाहिए ताकि वहाँ रहने वाले परमात्मा को जाना जा सके। आनन्दमयी माँ (१८९६-१९८२), योगिनी और बंगाल की रहस्यवादी संत


पुराने व्यक्तियों के पदचिन्हों पर चलने की तलाश में रहो, वह तलाश करो जिसकी उन्होंने प्राप्ति की। कुकाई (७७४-८३५), शिंगॉन बौद्ध धर्म के संस्थापक


जब दो बड़ी ताकतें एक दूसरे के सामने होती हैं, तो विजय उसकी होती है जो जानता है कि निर्माण कैसे करना है। लाओ त्ज़ू (६०० ईसा पूर्व), ताओ ते चिंग के रचयिता


दूसरों को देकर और दूसरे लोगों के साथ अपने मन को अधिक लगाकर, हम प्रसन्न होते हैं। इसलिए स्वार्थी हो जाने और प्राप्ति पर केन्द्रित होने से, प्रसन्नता हमेशा भ्रामक होती है। सद्गुरु बोधिनाथ वेयलनस्वामी, हिन्दुइज़म् टुडे के प्रकाशक


सनातन धर्म इतना महान है कि यह उन सबकी उपेक्षा करता है जो इस पर सन्देह करते हैं—वह सब जो इसका तिरस्कार करते हैं, जो इसका असम्मान करते हैं, जो इसको नीचे गिराते है—अपने सत्य के व्यक्तिगत अनुभूति से। सद्गुरु शिवाय सुब्रमण्यस्वामी (१९२७-२००१), हिन्दुइज़म् टुडे के संस्थापक


क्या आपको पता है?

जापान में वैदिक प्रभाव

Statues of Benzaiten (Saraswati), Kangiten (Ganesha) and Bishamonten (Kubera) at the Daishoin temple in Hatsukaichi, Japan

जापान के हात्सुकैची में दैशियोन मन्दिर में बेनज़ाइतेन (सरस्वती), कांगितेन (गणेश) और बिशामोन्तेन (कुबेर) की मूर्तियाँ

Bishop of Miyata performs the fire ritual at Koyasan Temple (founded by Kukai) on Mount Koya

मियाता का बिशप माउंट कोया पर कोयासान मन्दिर (कुकई द्वारा स्थापित) में अग्नि अनुष्ठान करते हुए

बौद्ध धर्म के प्राचीन भारत से तिब्बत, चाइना, दक्षिण पूर्व एशिया, जापान और कहीं भी धीमे-धीमे प्रसार होने से, यह यह ज़रा आश्चर्य की बात है कि भारतीय संस्कृति और हिन्दू धर्म के दूसरे पहलू भी मिलकर पहुँच गये। हिन्दू देवता लम्बे समय से तिब्बत के वैदिक से प्रेरित वज्रयान में पाये जाते हैं, जिसने बहुत पहले चीन में गया था और धीरे-धीर कोरिया और जापान पहुँच गया।

८०४ ई. में एक जापानी भिक्षु विद्वान, जिसे कुकई के नाम से जाना जाता था, पानी के जहाज से चीन गया। वह हुईगुओ के संरक्षण में पढ़ने लगा, जो वज्रयान परम्परा का एक बौद्ध शिक्षक था। हुईगुओ ने बहुत से महत्वपूर्ण संस्कृत ग्रन्थों का अनुवाद किया था। कुकई ने भी प्रांज से भी सीखा, जो एक वरिष्ठ भिक्षु था जिसने भारत में पाटलिपुत्र के पास स्थित नालन्दा विश्वविद्यालय में अध्ययन किया था। उसके आने पर, कुकई को तत्काल ही हुईगुओ द्वारा शुरु किया गया और वह वंशावली में आठवां उत्तराधिकारी हुआ, जिसे उनकी शिक्षाओं को जापान लाने का निर्देश दिया गया था।

कुकई संस्कृत और सिद्धम लिपि सीखकर ८०६ में जापान लौटा। अपने साथ बहुत से भारतीय ग्रन्थ ले आया उसकी स्थापना की जिसे आज शिन्गॉन बौद्ध धर्म कहते हैं—जो आज जापान में विद्यमान वज्रयान परम्परा का प्रारम्भिक रूप है। आप पूरे जापान के द्वीप पर बहुत से शिन्गॉन मन्दिर पा सकते हैं, जहाँ उनके भिक्षु वैदिक अग्नि अनुष्ठान करते हैं और उनके मन्दिरों में भारतीय देवताओं के वज्रयान संस्करण सुशोभित हैं।

कहा जाता है कि अब जापान में २५० से अधिक गणेश (कांगिटेन) मन्दिर हैं, जबकि अन्य हिन्दू देवताओं जैसे शिव (डाइकुटेन), लक्ष्मी (किचिजोटेन), सरस्वती (बेन्जइटेन्यो) और स्कन्द (इडा-टेन) भी पूरे देश के पूजा स्थलों और मन्दिरों में पाये जा सकते हैं।


मूल बातें

साधना क्या है?

A. Manivelu

ए. मणिवेलु

हमारे अस्तित्व के तीन आयाम हैं: भौतिक, भावनात्मक/बौद्धिक और आध्यात्मिक। सर्वोत्तम स्वास्थ्य के लिए इन तीनों पर ध्यान देना ज़रूरी है। व्यायाम हमारे भौतिक शरीर को शक्तिशाली बनाता है। सीखना और आत्म-नियन्त्रण का अभ्यास करना हमारी भावनात्मक/मानसिक क्षमता का विस्तार करता है और उससे बढ़ाता है। साधना, आध्यात्मिक अभ्यास के जरिये, हम अपने आध्यात्मिक प्रकृति का अभ्यास इसे अनुभव करने के लिए समय लेकर करते हैं। ज़्यादातर समय हम अपनी प्रकृति में इतना लिपटे रहते हैं कि हम अपने गहन, शानदार आन्तरिक वास्तविकता से बहुत कम परिचित होते हैं। यह एक जीवन से दूसरे जीवन में जारी रह सकता है, क्योंकि बहुत से लोग महान वास्तविकताओं के बारे में तब सोचते हैं जब वे मृत्यु के निकट होते हैं। हम धार्मिक गतिविधियाँ करके अपनी आध्यात्मिक प्रकृति को आदर्श रूप में दैनिक जागृति या आध्यात्मिक अभ्यास के रूप में समय देते हैं। इस बिल्कुल एकान्त समय के दौरान, हम जीवन के आन्तरिक उद्देश्य पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, जो कि आध्यात्मिक प्रगति करना है। पूजा, जप, आध्यात्मिक अध्ययन, हठ योग और ध्यान सभी साधना के रूप हैं।

कुछ साधनाएं वार्षिक होती हैं, जैसे कि तीर्थयात्रा पर जाना। कुछ गुरु द्वारा एक बार किये जाने वाले अभ्यास के रूप में दी जाती हैं। एक प्रसिद्ध साधना प्रतिदिन १०८ बार “ऊँ” का जाप करना है। दस मिनट का आध्यात्मिक अभ्यास आज की व्यस्त दुनिया में प्रसिद्ध हो रहा है। जीवन से बिल्कुल पीछे हट जाने के इस समय को कम महत्व दिया गया है और उसके लाभ को नजरअन्दाज़ किया जाता है। साधना स्वयं में और ईश्वर, देवताओं और गुरु में इच्छाशक्ति, आस्था एवं विश्वास का निर्माण करती है। यह हमारी स्वाभाविक बौद्धिक प्रकृति की रक्षा करती है, और आत्मा पराचेतन अनुभूतियों और स्वाभाविक क्षमता तक विस्तार करने का अवसर देती है।  गुरुदेव ने लिखा: “साधना के माध्यम से हम शरीर और तन्त्रिका तन्त्र की ऊर्जा को नियन्त्रित करना सीखते हैं, और हम अनुभव करते हैं कि श्वास ने नियन्त्रण से मन को शान्ति मिलती है। साधना का अभ्यास घर में, वन में, किसी प्रवाहमान नदी के पास, किसी पसन्दीदा वृक्ष के नीचे, मन्दिर में, गुरुकल में या जहाँ कहीं भी शुद्ध, शान्त वातावरण मिल सकता है, किया जा सकता है।”

सद्गुरु शिवाय सुब्रमण्यस्वामी

की शिक्षाओं से लिया गया