Hinduism in the American Media
अपु लड़की को बताता है कि उसका “केवल शादी करने के लिए लाया गया है” क्योंकि उसके पास अंगूठी नहीं है—बाद में वह प्रेम की अफ़वाहों को यह कहकर शान्त कर देता है कि वह “अछूत” थी। Disney
वे केवल काल्पनिक शो हो सकते हैं, लेकिन अक्सर रूढ़िवादी भावना से ग्रस्त भारतीय चरित्रों के टीवी पर चित्रण का वास्तविक-जीवन पर प्रभाव होता है
ऋत्विज होले
संयुक्त राज्य में बड़े होने वाले भारतीय समुदाय के बहुत से लोगों के लिए, जिसमें मैं भी शामिल हूँ, अपने धर्म को टीवी शो और फ़िल्मों में देखना यादगार होता है। हममें से ज़्यादातर के लिए, यह पहला प्रभाव होता है कि एक औसत अमेरिकी हमारे जीवन के तरीक़े को कैसे देखता है। शो के आधार पर, हमें पैसा बटोरने वाले दुकानदार, सामाजिक जीवन से रहित मूर्ख या अजीब देवताओं या परम्पराओं को मानने वाले मूर्तिपूजक के रूप में चित्रित किया जाता है।
हम में से कुछ इन रुढ़िवादी भावना का विरोध करते हैं, कुछ ऐसे रूढ़ चरित्रों की तरह व्यवहार करते हैं और कुछ हमारी संस्कृति से अलग-थलग रहते हैं। उस प्रभाव को देखते हुए जो इन कार्यक्रमों का हम पर हो सकता है, यह अनिवार्य है कि हम उन्हें और उनके प्रभावो को समझें, ताकि उसके हिसाब से स्वयं को शिक्षित कर सकें। ऐसा करने के लिए, मैं हिन्दुओं और हिन्दू धर्म की उनकी प्रस्तुति को तीन युगों में समूहबद्ध करने का प्रस्ताव रखता हूँ: अपु युग, रवि युग और मीरा युग।
अपु युग: १९८९
अपु युग, जिसका नाम सिम्पसन के कार्टून के अपु नहसपीमापेटिलॉन के नाम पर पड़ा था, ३० साल से अधिक उम्र के लोग उससे सुपरिचित हैं, और शायद यह टीवी पर भारतीय प्रस्तुतीकरण का सबसे प्रचलित उदाहरण हो। प्रस्तुतकर्ताओं, लेखकों या ध्वनि कलाकारों में से कोई भी भारतीय नहीं है। अपु, जिसका नाम अजीब और लम्बा था, (जो किसी भी ज्ञात हिन्दू नामकरण प्रथा के अनुसार नहीं है), को एक भक्त,मेहनती हिन्दू के तौर पर चित्रित किया गया है जो एक क्विक-ई-मार्ट सुविधा स्टोर चलाता है। इस चरित्र-चित्रण से, पूर्वाग्रस्तता बहती रहती है। काम में डूबे लोग (“मैं एक दिन में २२ घंटे काम करता हूँ”) जो बस इसलिए काम चूक गया क्योंकि उसे मार दिया गया था, स्पष्ट रूप से “मॉडल अल्पसंख्यक” मिथक से लिया गया है, यह विचार कि सभी हिन्दू, और आम तौर पर एशियाई, प्राकृतिक तौर पर दूसरे सभी से मेहनती होते हैं।
अपु के एक शाकाहारी हिन्दू के रूप में चित्रित किया गया है जो गणेश का भक्त है, और पुनर्जन्म और कर्म में विश्वास करता है। अलग-अलग हिस्सों में, जैसे कहानी आगे बढ़ती है यह भारतीय संस्कृति के बारे में एक रूढ़िवादी सोच के लिए मंच तैयार करता है, जैसे कि सीजन ७, एपिसोड २२ में, जब अपु एक पार्टी में जाता है। टोफ़ू हॉट डॉग खाने के बाद, वह एक लड़की को देखता है जिसकी उंगली में अंगूठी नहीं है, और कहता है, “ऐं! अंगूठी नहीं है, मैं समझ गया, तो तुम्हें केवल शादी करने के लिए लाया गया है।” कुछ देर बाद, उसके साथ नाचने के बाद, किसी भी प्रेम की अफ़वाह को शान्त करने के लिए, उसने वादा किया कि वह सभी को बता देगा कि वह “अछूत” थी। इस दृश्य के माध्यम से, शो के निर्माता दर्शाते हैं कि जाति, और साथ ही छुआछूत संयुक्त राज्य में मौजूद है। यह व्यापक जातीय पिरामिड के मिथक को मजबूत करता है, जिसका प्रयोग अक्सर मिशनरियों द्वारा धर्म परिवर्तन के लिए कुछ हिन्दू समूहों को लक्षित करने और इस प्रक्रिया में हिन्दू धर्म को बदनाम करने के लिये किया जाता है।
इसके अलावा, कोई व्यक्ति जिसका भारतीय विवाह प्रणाली का प्रत्यक्ष अनुभव रहा है, समझता है कि तय की गयी शादियाँ कोई दमनकारी परम्परा नहीं हैं जहाँ जन्म से ही लड़की को किसी व्यक्ति के साथ विवाह का फ़ैसला कर दिया जाता है। बल्कि, लड़की किसी मेल के मना कर सकती है, और यहाँ तक कि अपने पति का चुनाव स्वयं भी कर सकती है, जब तक कि परिवार के बाकी सदस्य इसे स्वीकार करते हैं। सीजन आठ में एक पूरा एपिसोड है जो अपु की एक ऐसी लड़की से तय की गयी शादी को समर्पित है जिसे उसने बीस सालों से नहीं देखा है। वह पहले बचने की कोशिश करता है, लेकिन लड़की से मिलने पर, उससे प्रेम में पड़ जाता है और आठ बच्चे पैदा करता है।
भले ही शो हिन्दू रीति-रिवाजों के अपने सन्दर्भों को लेकर असंगत हो—यहाँ तक कि एक ही रीति-रिवाज, जैसा कि हम विवाहों में देखते हैं—और भले ही भारतीय समझते हैं कि यह एक कार्टून की अतिरंजना है, लेकिन बहुत से ग़ैर-भारतीय और ग़ैर-हिन्दू नहीं समझ सकते। वास्तव में, मैंने एक प्रौढ़-अध्यापक को एक छात्र से यह दावा करते सुना है कि हिन्दुओं में “एक जाति व्यवस्था होती है जो इतनी बुरी है कि आपको बाहर हो जाना पड़ता है।” मुझे कोई सन्देह नहीं है कि, उसके लिए और अन्य बहुत से लोगों के लिए, दि सिम्प्सन जैसे कार्यक्रमों ने उनके अज्ञान में एक भूमिका निभाई है। वे लोग जो करोड़ों लोगों को प्रभावित करते हैं, और जिनके कहीं अधिक शिक्षित होने की उम्मीद की जाती है, उन्होंने भी ऐसे दावे किये हैं। उदाहरण के लिए, राष्ट्रपति जो बिडेन, ने मज़ाक किया कि “आप ७-११ या डंकिन डोनट्स में तब तक नहीं जा सकते जब आपका उच्चारण कुछ भारतीय जैसा न हो”, एक ऐसा व्यंग्य है जो अपु और उसके क्विक-ई-मार्ट से ठीक से प्रभावित हो सकता है।
रवि युग: २००७-२०१५
“समर रॉक” एपिसोड के साथ मूर्ख बलजीत
चिल्लाते हुए “मुझे ग्रेड दो—और इसे A करो”
मेरी उम्र के बहुत से लोग टीवी सिटकॉम जेसी के साथ बड़े हुए हैं, जिसमें इसका अमेरिकी-भारतीय चरित्र रवि है, जो दाई जेसी की देखरेख में बड़े होने वाले बहुत से गोद लिये गये बच्चों में से एक है। इस समय तक, अपु के विपरीत, हिन्दुओं का प्रतिनिधित्व हिन्दुओं के दिखने वाले शो की संख्या और लक्षित आयु समूह, दोनों के मामले में बढ़ रहा था, इसलिए अन्य महत्वपूर्ण बदलाव भी आये, जैसे फ़िनीज और फ़र्ब कार्टून का बलजीत।
जैसे-जैसे आईटी सेक्टर में अधिक भारतीय आये, वर्तनी प्रतियोगिताएँ जीतने लगे (जो २००८ से २००९ तक हर बार राष्ट्रीय स्तर पर एक बार होती थी), और संयुक्त राज्य अमेरिका में बहुत कुछ कमाने लगे, तो उनकी प्रस्तुति में एक आम चीज़ उभरी: इन शो में दिखने वाला हर चरित्र मूर्ख होता था। वे स्कूल में अच्छा करते थे, विशेष रूप से गणित और विज्ञान में, और उनका कोई सामाजिक जीवन या खेल का कौशल नहीं होता था।
इस रूढ़िवादी सोच की पहली प्रस्तुति बलजीत था। सीज़न दो के एपिसोड १४ में, वह यह मानकर “समर रॉक” कक्षा के लिए आवेदन करता है कि यह भूविज्ञान से सम्बन्धित है, यह जानने से पहले ही यह रॉक एंड रोल से सम्बन्धित है। इसने उसे इतना पागल बना दिया कि वह अपनी कक्षा गणित हल करते हुए बिता देता है। अन्त में, जब वह रॉक गीत गाता है, तो उसके बोल होते हैं, “कोई मुझे ग्रेड दो—और इसे A करो।”
अपु का प्रस्तुतीकरण पूरी तरह से नकारात्मक था, विशेषतौर पर हरि कोंडाबोलु की डॉक्युमेंट्री, अपु की समस्या में। मेरी नज़र में रवि के युग में सभी भारतीयों को मूर्ख बताना एक दुधारी तलवार है। एक तरफ़, यह कई रूपों में एक सकारात्मक डॉक्युमेंट्री है, जो एक ऐसी चीज़ है जिसे लेकर लोग हमारे समुदाय की प्रशंसा करते हैं, और ऐसे बहुत से लोगों की कल्पना नहीं कर सकता जिन्हें बुद्धिमान कहलाना अच्छा न लगता हो। ऐसी रूढ़िवादी सोच हमारे लोगों को बेहतर बनने के लिए, बेहतर ग्रेड पाने के लिए प्रेरित करती है। व्यक्तिगत अनुभव से, मैं निश्चित तौर पर कहता हूँ कि इसने मुझे टेस्ट के अंकों में मदद की।
दूसरी हो, जैसा कि वे कोशिश करते हैं, हमारे समुदाय में ऐसे छात्र हैं जो ऐसी ग्रेड नहीं पा सकते। उन्हें हीन महसूस होता है, क्योंकि सभी भारतीयों को चतुर समझा जा सकता है—कम से कम इन शो के मुताबिक। मैंने बहुत से साथी छात्रों को कहते सुना है, “मैं भारतीय हूँ; बिल्कुल मैं सभी मायनों में हूँ,” या कुछ ऐसा ही। ऐसी रूढिवादी सोच, विशेषतौर पर चूंकि वे हमारे अपने समुदाय से घुले-मिले हुए हैं, इसके महत्वपूर्ण मुद्दा बनाकर मानसिक समस्याएँ उत्पन्न करनने वाले कारण के रूप में जानी जाती हैं।
इसी समय, यह दूसरे समुदायों में नाराज़गी को जन्म दे सकता है, जिन्हें लगता है कि हम ग़लत रूप से क़िस्मत वाले हैं। यह दोनों, व्यक्तियों से और नस्लीय प्राथमिकताओं जैसे प्रणालीगत कार्यक्रमों के माध्यम से भेदभाव को बढ़ावा जाता है, जो संयुक्त राज्य अमेरिका में कॉलेज प्रवेश में एशियाई लोगों पर गैर-एशियाई लोगों का पक्ष लेते हैं।
धर्म के पदों में, मैं हिन्दू धर्म की कवरेज को इस दौर में ज़्यादा विभ्रमकारी पाया है। फिनीज़ और फ़र्ब में, बलजीत हिन्दू संस्कृति के बारे में बहुत बात नहीं करता—जो कि अपने-आप में एक समस्या है—लेकिन रवि इसका ज़ोर देकर प्रयोग करता है। शायद सबसे रोचक घटना सीज़न एक, एपिसोड तीन रही होगी, जो कर्म पर केन्द्रित था। इसमें, रवि का गोद लिया हुआ भाई उससे एक मजाक करता है और बदला लेने के लिए, रवि कर्म के इर्द-गिर्द एक साज़िश रचता है। वह ल्यूक को कर्म के रूप में “लौकिक वापसी” की चेतावनी देता है, और मज़ाक की पूरी एक श्रृंखला तैयात करता है ताकि ल्यूक को विश्वास दिला सके कि कर्म वास्तविकता है, और तपस्या के तौर पर उसे बाहर बारिश में खड़ा करवा देता है।
कर्म का “लौकिक वापसी” का यह विचार अमेरिकी मुख्यधारा में हमेशा कर्म की एक ग़लत समझदारी के रूप में बना रहा है। बल्कि कर्म को न्यूटन के गति के तीसरे नियम के विस्तार के रूप में ज़्यादा बेहतर समझा जाता है। हालांकि, लौकिक गतिविधियों जैसे गेंद को हवा में फेंकने की बजाय, कर्म नैतिक और अनैतिक क्रियाओं पर भी लागू होता है।
ल्यूक रवि के सोने के बैग को दरवाजे में ठोंक कर उसका मज़ाक उड़ाता है
रवि पक्षियों की बीट के ज़रिये बदला लेता है—जिसे वह ल्यूक के पहले के कर्मों की वापसी बताता है। Disney
अन्त में, रवि की दाई जेसी साज़िश के बारे में जान जाती है और रवि से स्वीकार कराती है कि उसने मज़ाक किये थे और वे कोई अन्धविश्वासी “लौकिक वापसी” नहीं थे। कोई सोच सकता है कि यदि इस्लाम या इसाईयत के केन्द्रीय सिद्धान्त के साथ ऐसा हो तो क्या होगा—उदाहरण के लिए, यदि जेसी किसी रहमान या रॉबर्ट से स्वीकार करवाये कि अल्लाह या जीसस वास्तव में नहीं थे। मैं कल्पना कर सकता हूँ कि ठीक ऐसा होगा कि बहुत सारी प्रतिक्रिया होगी, शो का प्रस्तुतकर्ता, डिज़्नी, को माफ़ी माँगने के लिए मज़बूर होना पड़ेगा।
चूंकि शो को सात साल पहले लिखा गया था, तब से “राजनीतिक शुद्धता” के मामले में अमेरिका में बहुत कुछ हो चुका है जिसने अल्पसंख्यक संस्कृति, जिसमें हिन्दू धर्म भी शामिल है, के बारे में रुढ़िवादी धारणाओं की मीडिया में प्रस्तुति में अच्छे और बुरे बदलाव किये हैं। इसी दौरान, इन सात वर्षों में, मेरे अनुभव में, विभिन्न कारणों से हिंदुओं और हिंदू धर्म के प्रति शत्रुता में एक स्पष्ट वृद्धि हुई है।
मीरा युग: २०२०
यह शायद राजनीतिक शुद्धता का एक प्रयास है कि मौजूदा पीढ़ी ऐसे शो देखते हुए बड़ी हो रही है जो अपनी बढ़ती हुई सटीकता और रुढ़िवादिता की कमी के कारण उल्लेखनीय हैं। बच्चों के कार्टू शो मीरा, रॉयल डिटेक्टिव में, उदाहरण के लिए भारतीय नाम वाले चरित्र सितार और तबला बजाते हैं और भारतीय त्यौहार मनाते हैं। अपु की तुलना में जो मध्य-पूर्व के संगीत को सुनते हुए “भारतीय” के रूप में चित्रित किया गया था, और भारतीय त्यौहारों का कहीं ज़्यादा अन्तरराष्ट्रीय मज़ाक बनाया जाता है, यह आश्चर्य की बात है कि हम कितनी दूर आ गये हैं।
दुर्भाग्य से, शो के प्रस्तुतकर्ताओं ने इस हिन्दू धर्म को उपेक्षित करते हुए किया है। सीज़न एक के एपिसोड १९ में, दिवाली के मौके पर, रंगोली की सजावट, दिव्या बत्तियों और छुट्टी मनाने के अन्य पहलुओं का बहुत सघन चित्रण किया गया है। फ़िर एक बिन्दु पर, मीरा कहती है कि दिवाली लड्डुओं के बिना दिवाली नहीं है—और मिठाइयाँ खाने वाले उसके पालतू नेवले को शो में बार-बार दिखाया जाता है। लेकिन श्रीराम और विजय के बाद उनकी अयोध्या वापसा या भारत में दिवाली के साथ जुड़ी किसी परम्परा का एक बार भी वर्णन नहीं किया गया। हो सकता है कि स्वादिष्ट लड्डुओं के बिना भी कोई बेशक दिवाली मना सकता है; फिर भी कुछ हिंदू श्री राम, देवी लक्ष्मी, या इस दिन पूजे जाने वाले कई अन्य देवताओं में से एक के बिना त्योहार का पालन नहीं करेंगे
यह व्यवहार दीवाली तक सीमित नहीं है। सीजन एक, एपिसोड २५ में, जिसमें वसन्त के होली के मौसम का वर्णन है, लेकिन राक्षसी होलिका या कृष्ण और राधा का कोई वर्णन नहीं है। इसकी बजाय, एपिसोड में, बॉलीवुड के तरीक़े का नृत्य दिखाया गया है और एक परेड दिखायी गयी है जिसकी मुख्य गतिविधि रंग उछालना है। इसमें एक डॉजबॉल-जैसा खेल था जिसमें पानी गुब्बारे इस्तेमाल किया गया था, जो एक ऐसी चीज़ है जो भारत में होती तक नहीं है।
होली ग़ैर-पारम्परिक पानी के गुब्बारों की लड़ाई से कहीं ज़्यादा है। Disney
और दिवाली लड्डुओं से कहीं ज़्यादा है। Disney
निष्कर्ष
यह सब मुझे मेरी एक संस्कृत की पाठ्यपुस्तक की एक बात याद दिला देता है: “बिना वेदों, गीता और रामायण के, और बिना कालिदास की कविताओं के , भारत वास्तव में भारत नहीं हैजब सम्पूर्ण रूप में मीडिया में हिन्दुओं की प्रस्तुति को देखने पर, यह ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि पुराने शो जैसे कि सिम्पस्न और जेसी हमारे वेदों, गाती और रामायणों पर बेशक हमला करते थे, लेकिन यद ध्यान देना चाहिए कि वे उन्हें रखते थे। उस मायने में, यह हमारी संस्कृति का बहुत त्रुटिपूर्ण प्रस्तुति थी, लेकिन यह भारतीय संस्कृति थी।
मीरा और इसके जैसे शो, यह ठीक है कि हमारे किसी धार्मिक विश्वास पर चोट नहीं करते, लेकिन ऐसा केवल इसलिए है कि वे उसमें हैं ही नहीं। उन्होंने वेदों, गीता और रामायण की कहानी को हटा दिया है, और ऐसा करने में, यह बहुत मज़बूती से कहा जा सकता है कि उन्होंने भारतीय संस्कृति को भी हटा दिया है। यह बहुत पाखण्डी बात है कि उन्होंने ऐसा पश्चिमी रुचियों को अपील करने के लिए किया है, जबकि डिज़्नी और अन्य टीवी चैनलों ने अन्य संस्कृतियों को समझने पर ज़ोर दिया है।
मैंने इस मुद्दे पर बहुत से समुदाय के सदस्यों से बात की है। कुछ ने कहा है कि वे यह पसन्द करते हैं कि प्रस्तुतकर्ता हिन्दू संस्कृति पर बात ही न करें, यदि वे ऐसा केवल उसपर हमला करके ही कर सकते हैं। दूसरों ने कहा कि हिन्दू धर्म के बिना भारत को दिखाना बुरा नहीं तो अपमानजनक है। मेरे लिए, इस बारे में सोचने वाला सवाल यह है: सार्वजनिक रूप से क्या हम एक समुदाय के रूप में ऐसी संस्कृति को पसंद करेंगे जिस पर हमला किया गया हो, या जिसका अस्तित्व न हो?
ऋत्विज होले, १५ वर्ष के हैं, जो इरविन, कैलीफ़ोर्निया के निवासी हैं और अमेरिकन फॉर इक्वलिटी पीएसी के कार्यकारी समिति सदस्य हैं, और एक उभरते हुए हिन्दू राजनीतिक कार्यकर्ता है, जो अभी अपने स्थानीय स्कूल ड्रिस्ट्रिक्ट के साथ और एक पाठ्यपुस्तक कम्पनी के साथ शिक्षा में हिन्दू धर्म के चित्रण को बदलने के लिए कार्य कर रहे हैं। उनसे rutvij.holay@gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है।