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सुप्रसिद्ध और अति लोकप्रिय तबला सेट। Shutterstock.
दस्तावेज़ श्रृंखला
भारत के छिपे हुए ड्रमवादक
रत्नवथी शिवलिंगम्, मलेशिया
“मुझे केवल ताल से प्रेरणा नहीं मिलती, बल्कि इसकी युगों पुरानी परम्परा के पीछे की कहानी, और वे संगीतकार जो उनमें नया जीवन लयबद्ध कर रहे हैं!”
आयरलैंड में जन्मी रुऐरी ग्लाशीन से मिलिये, जो एक पुरस्कार-विजेता तबलाबादक, संगीतकार, प्रस्तोता, फ़िल्म निर्माता और शिक्षक हैं जिनका पूरी दुनिया के ताल वाद्य यन्त्रों के प्रति अटूट समर्पण और प्रेम है। कई वर्ष पहले, यह जुनून उन्हें धरती की आधी दूरी तय करके दक्षिण एशिया में ले आया। इस दौरान इन्होंने तीन-भागों की दस्तावेज़ी श्रृंखला प्रकाशित की जिसका नाम था भारत के छिपे हुए तबला वादक, जिसका उद्देश्य भारतीय तबलावादन की छिपी हुई समृद्धि और आश्चर्यों का पता लगाना था। इसका बड़ा हिस्सा तमिलनाडु और बैंगलोर में फ़िल्माया गया था, श्रृंखला का मुख्य फ़ोकस सदियों पुराने, कम प्रसिद्ध कांजीवरम् ड्रम पर था।खंजिड़ी या गंजीरा के नाम से भी लिखा जाने वाला यह दक्षिण भारतीय फ़्रेम ड्रम डफ़ परिवार का हिस्सा है और विशेषतौर पर कर्नाटक संगीत गायन, भजन और लोकगीत में प्रयोग किया जाता है। सुन्दरता और बारीकी से फ़िल्मायी गयी इस सिरीज़ में प्रसिद्ध कंजीरा वादक शामिल थे जैसे के अनिरुद्ध अत्रेय, लता रमचर, हरिहर शर्मा, श्री सुन्दरकुमार और सुनद अनुर और साथ ही अभूतपूर्व कर्नाटक संगीत के तबला वादक अनूर अनन्तकृष्ण शर्मा, घटम गिरिधर उडुपा और सचिन प्रकाश।
लता रमचर, भारत की एकमात्र महिला कंजीरी वादक कलाकार
घटम कलाकार गिरिधर उडुपा के साथ ड्रम बजाती ग्लशीन
भारत के छिपे हुए ड्रमवादक, ग्लशीन की पिछली दस्तावेज़ी फ़िल्म ईरान के छिपे हुए ड्रमवादक की अगली कड़ी है जिसमें पूरे देश के टोंबक (ईरान का कटोरे के आकार का ड्रम) के विशेषज्ञ आते हैं।
टाइम्स ऑफ़ इण्डिया के साथ एक साक्षात्कार में, ग्लाशीन ने भावनात्मक ढंग से कहा कि भारत तालवादकों के लिए धरती पर सबसे शानदार जगह है और ताल वाद्ययन्त्रों की समृद्ध परम्परा के मामले में पहले स्थान पर है और दूसरे स्थान पर कोई नहीं है। “ईरान के बाद, मेरे लिए यह स्पष्ट था कि अगली फ़िल्म भारत में होगी, क्योंकि ऐसे बहुत से अभूतपूर्व वाद्ययन्त्र और प्रेरक वादक हैं जिनसे मैं सीखना चाहता हूँ”, उन्होंने कहा।
ग्लाशी का कंजीरा को दस्तावेज़ी फिल्म में उभार का निर्णय हृदय के प्रिय मामलों पर आधारित थी। सबसे कंजीरा बोधरन की तरह लगता है, जो एक आयरिश ताल वाद्ययन्त्र है जिसने उसमें बच्चे के रूप में ड्रम के प्रति प्रेम की चिंगारी पैदा की थी। साथ ही वह मजबूती से मानता था कि ये पारम्परिक वाद्ययन्त्र ड्रम बजाने वाले की संस्कृति, पहचान और जड़ों का का हिस्सा हैं और उनको ख़त्म होने से बचाने के लिए उन्हें संरक्षित करने की आवश्यकता है। साथ ही, कंजीरा में प्रवीण होना परिश्रम का कार्य है, भले ही इसका आकार सामान्य है। “यह निश्चित रूप से सीखने के मामले में भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे कठिन ताल वाद्ययन्त्र है, जिसके बहुत कम ही विशेषज्ञ वादक हैं”, ग्लशीन कहती हैं। इस प्रकार, सबसे अच्छा यही है कि कंजीरा को संरक्षित किया जाये और इसके विशेषज्ञ वादकों की ओर उनकी अद्भुत योग्यता की प्रशंसा के लिए विश्व का ध्यान आकर्षित किया जाये।
भारत के छिपे हुए ड्रम वादक को देखना बहुत आनन्ददायक है, जो मेरे मस्तिष्क को एक उदात्त अवस्था तक ले जाती है। ताल वाद्ययन्त्रों की ऐसी समृद्ध परम्परा से जुड़े होने ने मेरे हृदय को बहुत ही गौरव से भर दिया। अगस्त २०२० में इसके प्रीमियर के बाद से, सिरीज़ ने ३,००,००० से अधिक व्यू प्राप्त और दुनिया भर के तालवाद्ययन्त्रों के प्रेमियों से प्रशंसा प्राप्त की है जिन्हें लगता है कि यह नेटफ़्लिक्स और नेशनल जिओग्राफ़िक जैसे प्लेटफॉर्म पर रिलीज़ करने के योग्य है। यह वास्तव में सच्चाई भी है। इस सिरीज़ को दूर-दूर तक फैलना चाहिए ताकि दक्षिण भारतीय ताल वाद्ययन्त्रों की वास्तविक प्रतिभा को विश्व अनुभव कर सके—जिसके बारे में ग्लाशीन का मानना है कि भारतीय संस्कृति की धड़कनें हैं। पूरी सिरीज़ को यूट्यूब पर पाया जा सकता है।
रत्नवदी शिवलिंगम एक माँ हैं और मलेशिया की उद्यमी हैं जो कहानी सुनाने, प्रस्तुति दक्षता और सृजनात्मक लेखन के माध्यम से बच्चों में विश्वास का निर्माण करती हैं। उनसे यहाँ सम्पर्क किया जा सकता है: ratnavathys@yahoo.com