धर्म की मेरी तलाश मुझे कहाँ ले गयी

Where My Pursuit of Dharma Took Me

सीएचटी का स्थान: हिन्दू धर्म के सलाहकार (दि काउंसलर्स ऑफ़ हिन्दू ट्रेडिशन) को अच्छे और बुरे, प्रेरणादायी और चुनौतीपूर्ण, धार्मिक और सांसारिक कार्यों के दौरान व्यक्तियों की सहायता के लिए परिवार और मित्र के विस्तार के रूप में कार्य करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है, क्योंकि प्रत्येक इस विशेष अवतार से होकर गति करता है

नये हिन्दू समुदाय संस्थान ने अमेरिका में हिन्दुओं की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए धार्मिक सलाहकारों को प्रशिक्षण देना शुरु किया है

गौरव रस्तोगी, कैलीफ़ोर्निया

कुछ साल पहले, मेरे मन में एक दृढ़ विचार बनने लगा—“धर्म के लिए दुनिया में और अधिक संलग्न हों।” इसका क्या अर्थ हो सकता था? क्या यह किसी कार्रवाई के लिए प्रेरित करना था? मुझे इसे समझने में कुछ समय लगा। मैं उस पढ़ाई और लिखाई से अधिक और क्या कर सकता था जो मैं पहले ही योग और ध्यान के इर्द-गिर्द कर रहा था? मैं विचारों की तलाश करता रहा। एक दिन मैंने एक नये संस्थान के बारे में एक चर्चा सुनी जो स्वयंसेवकों की तलाश कर रहा था। मैं एक छोटे समूह की पहली बोर्ड बैठक में पहुँचा जो हिन्दू समुदाय संस्थान (www.hinduci.org) बना। यह उस विनम्र शुरुआत से हमारी कहानी है।

क्या हमने अपना कर्तव्य किया है?

हमारा समूह सबसे पहले २०१६-२०१८ की कैलिफ़ोर्निया के माध्यमिक स्कूलों में हिन्दू धर्म के चित्रण पर बहस के दौरान साथ आया। आने वाले वर्षों में, हम हर सप्ताह चिन्तन करने के लिए मिलने लगे: “हमने पैसा कमाया है, सफलता प्राप्त की है, पर क्या हमने अपना कर्तव्य पूरा किया है?” उत्तर स्पष्ट था। हम सभी को अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत के खोने और सम्पर्क टूट जाने के बोध का आभास था। हिन्दुओं की एक समृद्ध और पुरानी परम्परा रही है, लेकिन हमने इसे अपने साथ अमेरिका में लाने के लिए बहुत कम प्रयास किया है, जहाँ हम बेहतर जीवन की तलाश में आये थे। जबकि हमने अपनी व्यवसाय विकसित कर लिया, हिन्दू विचार पश्चिमी दुनिया में आते रहे और मुख्यधारा की स्वीकृति प्राप्त किये। योग, प्राणायाम, पुनर्जन्म, कर्म, ध्यान, शाकाहार, मृतक का दाह संस्कार—और यहाँ तक कि दूध में हल्दी मिलाना—इन सभी को यहाँ अब अजीब विचार नहीं माना जाता। लेकिन हमने उस जीवन की प्रणाली को प्रस्तुत करने के लिए क्या किया जिनसे ये विचार निकले थे? जबकि हिन्दू परम्परा के अच्छे विचारों को धीरे-धीरे अपना लिया गया है, हिन्दू धर्म की छवि आम लोगों के मन में जाति के ढोंग, गऊ और भयंकर गरीबी तक सीमित है। हमारा समृद्ध दर्शन और परम्परा पश्चिम में मान्यता प्राप्त नहीं हैं, यद्यपि कुछ तत्व हर जगह फैल गये हैं, जो बिना किसी ठप्पे के हैं।

हमारे नवीनतम प्रवासी परिवारों ने भी शिक्षा और व्यवसाय में आगे बढ़ने की परम्परा शुरु कर दी है, जिससे हम अमेरिका में सबसे सफल अल्पसंख्यक समुदाय बन गये हैं। लेकिन यद्यपि हमारे बच्चे वर्तनी प्रतियोगिताएँ और रोबोटिक की प्रतियोगिताएँ जीतते हैं, हमने उन्हें अपनी परम्परा की कहानियाँ नहीं बतायी हैं जब हजारों पीढ़ियों से हमारे डीएनए में हैं। हम अपने बच्चों को यह बताने में असफल रहे हैं कि हमारी परम्परा मन्दिर जाने और त्यौहार मनाने से ज़्यादा व्यापक है। सरस्वती नदी जब प्राचीन समय में सूखने लगी, तो भी वह सदियों तक हिमालय से मजबूती से बहती थी, लेकिन सागर तक पहुँचने के सैकड़ों मील पहले सूख जाती थी। उसी तरह, हम महसूस करते हैं कि अगर हम कुछ नहीं करते तो हमारी परम्परा सूख जायेगी। हमारे ऊपर हमारे पूर्वजों का ऋण है जिन्होंने सदियों से इस परम्परा को आगे बढ़ाया है। हमारे ऊपर उनका यह ऋण है कि हम इसे अपने बच्चों के माध्यम से भविष्य को सौंपें, और इस प्रक्रिया में, आशा है कि इसे समृद्ध भी करें।

परम्परा, मांसपेशियों की तरह, उपयोग-करो-या-नष्ट-करो वाली चीज़ होती है। कुछ पीढ़ियों तक कम प्रयोग या बिल्कुल उपेक्षित करने से एक परम्परा पुरानी या अर्थहीन हो जाती है। आज अपने जीवन को सुधारने के लिए केवल हिन्दू परम्परा के ज्ञान का प्रयोग करके ही हम भविष्य में इसको आगे बढ़ाना सुनिश्चित कर सकते हैं। हालांकि हम जिस पश्चिमी समाज में रहते हैं और भारत के परम्परागत धार्मिक समाज में संरचनागत अन्तर है। यह स्पष्ट नहीं है कि भारत के सन्दर्भ के बाहर अपनी परम्परा को कैसे बनाये रखा जाये। हमें अपने चिन्तन को लेकर सावधान और सुव्यवस्थित रहने की आवश्यकता है। हमें आधुनिक समाज की समस्याओं को समझने और इस पर एक यथार्थवादी दृष्टि डालने की आवश्यकता है कि हिन्दू परम्परा कैसे सहायता कर सकती है।

आधुनिक प्रवासी व्यवसाय

हिन्दू संस्कृति और धर्म भारत के बाहर पहले प्रसारित होते रहे हैं—सैकड़ों साल पहले दक्षिणी एशिया और कई देशों जैसे मारीशस, फिज़ी, दक्षिण अफ़्रीका और त्रिनिडाड में १९वीं सदी में, प्रायः गिरमिटिया मज़दूरों के ज़रिये। वे भारतीय समुदाय ज़्यादातर हिन्दू ही रहे; इसलिए यह किया जा सकता है। लेकिन आधुनिक समय अलग चुनौतियाँ प्रस्तुत करता है, इसलिए हम विचारों और प्रेरणा के लिए दूसरी परम्पराओं तक जाते हैं, जिनमें यहूदी, बौद्ध और मुस्लिम  आते हैं, जो अमेरिका के विशेष समस्याओं से निपटते हैं। वे सर्वाधिक मददगार थे।

इस पर मेरी अपनी अवस्थित के केन्द्र में यह है कि चूंकि हिन्दू परम्परा का पालन किया जाता है और यह जीवित परम्परा है, इसलिए हमें इसे अजायबघऱ की कलाकृति की तरह नहीं लेना चाहिए जिसे “संरक्षित” करना हो। शिक्षाओं के प्रति हमारा दृष्टिकोण पुरानी यादों जैसी सोच के साथ भारत की तरफ़ देखने का नहीं होना चाहिए, बल्कि आगे, भविष्य में देखने का होना चाहिए। हम परम्परा को आने वाली पीढ़ियों, यहाँ अमेरिका में रहने वालों के लिए अधिक सार्थक कैसे बना सकते हैं, जिनमें से बहुतों के पास कोई याद या भारत से बिल्कुल भी जुड़ाव नहीं होगा?

सबसे पहले, हमें संरचनागत अन्तरों को देखना होगा। इन अन्तरों को स्वीकार किये बिना, हम ऐसी विधियाँ खोजने में असमर्थ होंगे जो काम करें। संस्कृति और धर्म दोनों ही बहुत जटिल हैं।  पश्चिमी समाज अब्राहमीय परम्पराओं पर आधारित है, जिसमें सप्ताहान्त में एकत्र होने (शुक्रवार, शनिवार या रविवार) की प्रवृत्ति है। इससे सदस्यों को समुदाय की बेहतर समझ पाने में मदद मिलती है, जिसमें दशमांश या आमदनी हिस्से को अनिवार्य तौर पर लगाना, और धर्मोपदेश देने वाला ईश्वर से जुड़ने के लिए एकल प्रतिष्ठान, उसकी “भेड़ों के झुण्ड” के लिए मरहम लगाने वाले के रूप में, वेदों में आत्मदर्शन के स्रोत के रूप में और आत्मा के मामलों में गोपनीय सूचनाओं के प्राप्तकर्ता के रूप में भूमिका अदा कर सकता है। यह सामूहिक मॉडलों पर संगठित धर्म हैं।

हिन्दू परम्परा, ज़्यादातर धार्मिक परम्पराओं की तरह अलग है। हमारे यहाँ लोगों को किसी एक दिन मन्दिर आने की आवश्यकता नहीं होती—मैं मज़ाक में कहता हूँ, “हम समूह नहीं बनाते, बल्कि हम भीड़ जुटाते हैं।” हमारे पास अपनी आय का दशमांश देने की शर्त नहीं है। हम लोगों को नियमों का पालन न करने पर समाज से बहिष्कृत नहीं करते हैं। भारत में, हम वेदों पर ज्ञान देने या पारिवारिक मसलों पर गोपनीय सलाह के लिए मन्दिर के पुजारी पर निर्भर नहीं होते। हमारे मन्दिर आध्यात्मिक देख-रेख सेवा नहीं प्रदान करते जैसा कि चर्च और मस्ज़िदें करती हैं। ऐसे बहुत तरीक़ों से, हिन्दू समाज पश्चिमी मॉडल से अलग तरह से जुड़ा है। निस्सन्देह हिन्दू धर्म समाज की आध्यात्मिक, सामाजिक और भावनात्मक ज़रूरतों को पूरा करता है, शायद किसी अब्राहमीय धर्म की तुलना में बेहतर तरीके से। लेकिन यह रूप में इतने अलग तरह से होता है, जो किसी एक संस्था के इर्द-गिर्द केन्द्रित नहीं है, जैसे कि चर्च, मस्ज़िद या मन्दिर, बल्कि ऐसा है जिसमें शिक्षण वंश, आश्रम, विस्तारित परिवार और बहुत कुछ शामिल है। हम इन संरचनागत अन्तरों पर पूरी तरह ध्यान दिये बिना पश्चिम में परम्परा के संचार की उम्मीद नहीं कर सकते।

धर्म समाज को जोड़ने वाला गोंद है। यह समाज का संरक्षण करता है और इसे बनाकर रखता है। यह अनूभूति हमारे समूह को एक महत्वपूर्ण अन्तर्दृष्टि तक ले गयी—आधुनिक समाज इस सीमा तक रोगग्रस्त है कि यह धार्मिक नहीं है। मैं समझाता हूँ। अकेलापन हमारे समय की बीमारी है। हम अकेले हैं, हम सभी, और यह अकेलापन एक-दूसरे से सम्पर्क टूटने के कारण आता है, अर्थ में और स्वयं अपने अन्दर में। क्या हम जुड़ाव और समुदाय की भावना को फ़िर से स्थापित कर सकते हैं? क्या हम पश्चिम में हिन्दू समाज की आध्यात्मिक देखभाल की प्रणाली को पुनर्निर्मित कर सकते हैं?

सिलिकॉन वैली की मानसिकता का प्रयोग करना

जब आप सिलिकॉन के बारे में सुनते हैं तो आप क्या सोचते हैं? शायद तकनीक, नवाचार और बेमिसाल सम्पत्ति। ये सब सही हैं, लेकिन जब हम सिलिकॉन वैली के बारे में एक पहुँच, एक मानसिकता से सोचते हैं—“समस्याओं” की जगह “अवसरों” को देखना, ग्राहक की आवश्यकताओं के बारे में तीक्ष्ण सहज अनुमान एवं प्रभावी समाधान; व्यवस्थित रहना, बेमन से काम न करना; “भूखे रहना”; न्यूनतम पैसे के साथ काम करने में सक्षम होने से मन न लगना; बाजार की प्रतिक्रिया को लेकर चुस्त, सावधान और प्रतिक्रियाशील रहना; वह ऊर्जा पाना जो संवेग से आती है; मानक के लिए प्रक्रिया और दुहराव पर बहुत ज़ोर देना; निर्माण करने और साझा करने में खुला-स्रोत; लाभ लेने के लिए तकनीक का प्रयोग करना और मानक के लिए निर्माण करना; बड़े स्वप्न देखना और तेज़ चलना। ये कुछ विचार हैं जिन्होंने सिलिकॉन वैली को हमारी पीढ़ी की प्रमुख औद्योगिक शक्ति बना दिया है। हिन्दू समयुदा संस्थान की मूल टीम ने हमारे पेशेवरों द्वारा वैसे ही बौद्धिक अभियान और ईमानदारी को हमारे धर्म के लिए काम करने में लागू करने का निर्णय लिया है।

भावनात्मक स्व के लिए वातानुकूलित करने वाले के रूप में समाज

मैं एक ठीक से काम करने वाले समाज के बारे में भावनात्मक स्व के लिए वातानुकूलित करने की तरह सोचता हूँ; हमारे अतिरिक्त दुःखों और प्रसन्नताओं दोनों को साझा करके सहज रेंज में रखने के लिए। मेरे व्यक्तिगत सिद्धान्त यह है कि अकेलापन एक बीमारी है क्योंकि अतिरिक्त प्रसन्नता और दुःख एक बीमारी की अवस्थिति निर्मित करते हैं, जहाँ हमें आनन्द लेने के बोध का अनुभव नहीं होता है। यदि हम समाज और धर्म के साथ अपने सम्बन्ध को पुनर्स्थापित कर सकतो हों, तो अपने खुद के स्व के साथ सुख के बोध को पुनर्स्थापित कर सकते हैं।

हमारे समूह ने जीवन की घटनाओं को समझने के लिए वार्तालाप की एक श्रृंखला चलायी जहाँ भावनात्मक अवस्थाएँ चुभने वाली हो सकती है, और जहाँ आध्यात्मिक देखरेख वातानुकूलन प्रदान कर सकती है। यह हमारे “आवश्यकताओं को पूरा करना” चार्ट (लेख की शुरुआत) तक ले गया, जिसे हम सोचते थे कि यह इस बारे में है कि परम्परा और जुड़ाव कैसे जीवन की इन अवस्थाओं को सुधारने में सहायता कर सकती हैं। बदले में यह आध्यात्मिक देखरेख सेवा के निर्माण तक ले गयी, जैसे कि विवाह-पूर्व की काउंसिलिंग, स्मृति में भाषण, दयालु उपस्थिति  आदि, जो अब तक हिन्दू समुदाय में अलग सेवा के तौर पर नहीं था।

हिन्दू परम्परा के सलाहकार

हमने समुदाय की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए एक स्नातक प्रमाणपत्र पाठ्यक्रम निर्मित किया है—“हिन्दू परम्परा के सलाहकार,” जिसकी संक्षिप्त रूप है सीएचटी। ये प्रशिक्षित सीएचटी प्रभावी रूप से आवश्यकता के समय में एक विस्तारित परिवार के सदस्य के रूप में सेवा प्रदान करते हैं। सीएचटी पाठ्यक्रम नौ महीने—२४ रविवार, ऑनलाइन चलता है। हम हिन्दू परम्परा के पहलुओं, भगवद्गीता के कर्म के दर्शन, कृपापूर्ण उपस्थिति, सलाह और जीवन के चलते समय चिकित्सकीय और नैतिक परिस्थितियों के साथ निपटना सिखाते हैं। “दयापूर्ण उपस्थिति” का अर्थ है कि किसी निराश व्यक्ति के लिए बस उपस्थित हो जाना, बिना किसी निर्णय के या उनके लिए आवश्यक उत्तरों  बिना, लेकिन गहन सहानुभूति और, जब उचित हो, आध्यात्मिक अन्तर्दृष्टि और दिशा के साथ।

हम कुछ वास्तविक-जीवन के अनुभवों को साझा कर सकते हैं जो हमारे हिन्दू परम्परा के सलाहकारों ने रिपोर्ट किये हैं।

पहले में, एक महिला अपनी बीमार माँ से बात करने के लिए किसी की ज़रूरत थी जो एक अन्त्य रोग से पीड़ित थी और दर्द से जूझ रही थी। उनके सीएचटी ने माँ से दो सत्रों के लिए कृपापूर्ण उपस्थिति के लिए और उन्हें दर्द से निपटने के लिए बुनियादी प्राणायाम तकनीकें सिखाने के लिए मुलाकात की। दूसरे उदाहरण में, एक जोड़े का सबसे बड़ा बेटा जो १२ वर्ष का था, उन्होंने उसे एक समुद्रतट पर एक घातक दुर्घटना में खो दिया। हमारा सीएचटी ने परिवार से कई सत्रों में कृपापूर्ण उपस्थिति के लिए, जो मृत्यु का हिन्दू परिप्रेक्ष्य है, और ऐसी स्थिति में समापन के लिए एक पारम्परिक नज़रिया देने के लिए मुलाक़ात की। बहुत हाल ही में, एक आदमी ने जिसने अपनी पत्नी को महामारी में खो दिया था, उसने हमारे सीएचटी को उसकी स्मृति में बोलने के लिए बुलाया। उन्होने दुख, हिन्दू परम्परा में मृत्यु और जीवन के उद्देश्य पर चिन्तन को लेकर एक उत्थानप्रद बात की। हमारे अन्तिम उदाहरण में एक घरेलु हिंसा का मामला था। हमने समस्या को समझने के लिए पीड़िता से बात की, और फ़िर उसे एक सहयोगी संस्था से जोड़ दिया जो ऐसे मामलों में गोपनीयता से काम करती है।

यह पाठ्यक्रम चालीस अध्यापकों द्वारा पढ़ाया जाता है, जिसमें अपने शिल्प के प्रमुख अभ्यासकर्ता शामिल हैं। उदाहरण के लिए, हम स्टैनफ़ोर्ड की आपातकालीन सेवाओं के प्रमुख से सीखते हैं कि आपातकालीन कक्ष में क्या होता है। हम एक प्रशिक्षित पुजारी से हिन्दू धर्म के अन्तिम कर्मकाण्ड सीखते हैं। हम उम्र बढ़ने और वृद्धावस्था की देखभाल सम्बन्धी चीज़ों को प्रमुख चिकित्सकों से सीखते हैं, इत्यादि। हमने कार्यक्रम को जमीनी स्तर से, जिसमें शिक्षा, पुजारियों और आध्यात्मिक देखभाल के विशेषज्ञों की सलाह से और साथ ही “सेवा सीखने” के रूप में बनाया गया है—जो कक्षा में सीखने और व्यावहारिक अनुभव का एक संयोजन है।

हम तीन दलों को चला चुके हैं और इस लेख के प्रकाशित होने पर चौथा शुरु कर रहे हैं। हमारे ६५ स्नातक पूरे अमेरिका में और उनमें से कुछ भारत में भी हैं। ये वे लोग हैं जो यह सीखने में रुचि रखते हैं कि कैसे सेवा करते हैं, और एचसीएल में, उन्हें अपना संघ या समुदाय मिल गया। हमारे सीएचटी समुदाय में आजीवन स्वयंसेवक के रूप में कार्य कर सकते हैं, या वे सम्बद्ध बर्कले की ग्रैजुएट थियोलॉजिकल यूनियन से पुजारी के औपचारिक पेशेवर रास्ते पर चल सकते हैं। स्वयंसेवक और पेशेवर कार्य के बीच में, हमने समुदाय में “आध्यात्मिक देखरेख की निरन्तरता” शुरु की है। समुदाय के साथ एक विस्तारित जारी सम्बन्ध से हम जारी आध्यात्मिक देखभाल प्रदान करने को संगठित फ़्रेमवर्क दे पाती है, बजाय इसके कि बस लोग अपने सामने सेवा का स्पष्ट मार्ग देखे बिना स्नातक हो जायें।

एक हिन्दू स्वयंसेवी संस्था बनाने की चुनौतियाँ

महामारी ने हमें संस्था की वित्तीय और भौतिक ढाँचे का पुनर्मूल्यांकन करने के लिए बाध्य किया है। हम एक पूर्णतः ऑनलाइन सीखने के मॉडल पर चले गये हैं, जो वास्त्व में पूरे अमेरिका के छात्रों के लिए बेहतर कार्य करता है। साथ ही, यह हमें पूरे ग्रह से कहीं से भी शिक्षकों को लाने में सक्षम बनाता है। महामारी के ख़त्म होने पर, हम उम्मीद करते हैं कि हम अपनी कक्षाओं को ऑनलाइन रखेंगे और जहाँ कहीं भी सम्भव होगा लोगों से सामाजिक रूप में मुलाकात करेंगे।

समुदाय के विश्वास का निर्माण करना महत्वपूर्ण है, और हमने बेहतर नियमन, नेतृत्व और संचार के ज़रिये इसे पाने की कोशिश की है। हथियारबन्द भाषा के दौर में, हमने स्वयं को गर्व के साथ “हिन्दू” संस्था कहने का चुनाव किया, लेकिन हमने अपने कामों में अराजनीतिक और स्वतन्त्र रहने का निर्णय किया। हम औपचारिक प्रक्रियाओं का पालन करते हैं और अपनी बोर्ड की बैठकों का सावधानीपूर्वक दस्तावेज़ीकरण करते हैं।

हम जिस दूसरी समस्या का सामना करते हैं वह यह है कि जबकि अमेरिका के हिन्दू धनी हैं, हमने अभी तक मन्दिरों के अलावा किसी भी सामुदायिक परियोजना को पर्याप्त मात्रा में धन प्रदान करने की परम्परा विकसित नहीं की है। हमें अभी तक बड़ी संख्या में चेक से छोटे दान मिलते हैं। यह समय के साथ बदलेगा, लेकिन अभी हम बहुत कम खर्च कर सकते हैं जैसा कि अभी आगे बढ़ने की प्रक्रिया में हम कर सकते हैं। अभी हम अपने पहले प्रशासनिक कर्मचारियों को रखने और जीटीयू में पुजारी के कार्यक्रम में पढ़ने वालों को आंशिक छात्रवृत्ति देने के लिए पैसा जुटा रहे हैं।

हमारे सबसे प्रभावी नवाचारों में से एक कर्म योग, निःस्वार्थ सेवा को आध्यात्मिक देखभाल से जोड़ना रहा है। हम सभी में सेवा करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति बहुत अधिक होती है। इस क्षमता को कैसे व्यक्त किया जा सकता है? हमने सेवा करने की अपनी स्वाभाविक प्रकृति पर टैप करने के लिए “ओम डॉलर” का निर्माण किया। ये इस अर्थ में आम डॉलर की तरह काम करते हैं कि आप इन्हें कमा सकते हैं, इन्हें गिन सकते हैं, शेष राशि की प्रशंसा कर सकते हैं और इसे आगे अपनी आने वाली पीढ़ियों को दे सकत हैं। आप बस इसे खर्च नहीं कर सकते या एकत्र डॉलर के खजाने में नहीं बदल सकते। हम एक इच्छा का प्रयोग करते हैं जो हममें पहले से है—डॉलर में पैसे कमाना—और इस प्रश्न “मैं और अधिक धन कैसे कमा सकता हूँ” को “मैं और अधिक ओम डॉलर कमाने के लिए समाज को बेहतर सेवा कैसे दे सकता हूँ?” में बदल कर एक धार्मिक विचार में बदल देते हैं। यह एक प्रसन्नचित्त सन्दर्भ के साथ शुरु हुआ, लेकिन जल्द ही हमें इस विचार की ताकत महसूस हुई जब हमारे छात्रों ने पूछा कि वे और अधिक कैसे कमा सकते हैं! ज़्यादातक छात्र अब हमें ओम डॉलर में भुगतान करते हैं, और हमारी शक्ति यह है कि हम हर डॉलर के दान पर नौ ओम डॉलर उत्पन्न करते हैं। हमारे अध्यापक निःस्वार्थ सेवा करते हैं और खुशी से हर साल पढ़ाने के लिए वापस लौटते हैं। हमने महामारी के दौरान मुफ़्त योग कक्षाएँ शुरु कीं, और अब हमारे पास ५० अध्यापक हैं जो अभी तक लगभग ३,००० मुफ़्त ऑनलाइन कक्षाएँ दे चुक हैं।

लोक संघर्ष – विश्व के कल्याण के लिए कर्म योग़

और इसलिए, इस प्रकार मैं यह उस अटल सोच के सम्पूर्ण अर्थ को समझ सका जिसने मुझे इस दिशा में खींचा; यह हमारी निःस्वार्थ सेवा के माध्यम से समाज में भलाई को फैलाने की इच्छा है। अपने बचे हुए जीवन के लिए, यह मेरा लक्ष्य है। जिसे बनाते समय हम यह आशा करते हैं कि एक दिन यह सिलिकॉन वैली से एक वैश्विक हिन्दू संस्थान बनेगा, यह सीखने का एक शानदार अनुभव रहा है, और मैं उम्मीद करता हूँ कि लोग इसमें भागीदारी करेंगे। हमारी मुद्रा प्रमाणिकता है—हम स्वयं में कर्म योगी हैं, और वे लोग जो हमारे कार्य ओर आकर्षित होते हैं, वे लोक संग्रह की अपनी खुद की खिंचते हैं। हमने बस शुरुआत की है। समाज को बहुत बड़ी मात्रा में ऐसे संस्थानों की आवश्यकता होती है जिससे हिन्दू परम्परा की समृद्धि को आधुनिक युग में लाया जा सके, और विश्व को सबके लिए बेहतर बनाया जा सके, न कि केवल हिन्दुओं के लिए। आइये हाथ मिलायें।


गौरव रस्तोगी एक उद्यमी हैं जिनके पास बीस सालों का काम करने का अनुभव है, जिन्होंने आईआईएम अहमदाबाद से एमबीए किया है और दिल्ली टेकनिकल यूनिवर्सिटी से मैकेनिकल इंजीनियरिंग में डिग्री ली है। वह योग और ध्यान के शिक्षक हैं और हिन्दू समुदाय संस्थान के बोर्ड सदस्य हैं। वे शादीशुदा हैं और उनके दो बड़े बच्चे हैं और वे सैन फ़्रांसिस्को बे एरिया में रहते हैं। gauravhinduism@hinduci.org

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