Yogananda’s On-Going Impact

नियाग्रा जलप्रपात पर योगानन्द

भारत से उनके सबसे  पहले पहुँचने के एक शताब्दी बाद भी महान गुरु की विरासत अमेरिका में आध्यात्मिक मन वालों को प्रेरित करती है

निखिल भाम्बरी, कैलीफ़ोर्निया

मैं एक अकालप्रौढ़ बालक था। मेरी पसन्दीदा गतिविधि दाई से एक खाली कागज़ माँगना था ताकि मैं लिख सकूं। किंडर-गार्टन में जाने से पहले धाराप्रवाह पढ़ते हुए, मैं हिन्दू धर्मग्रन्थों को लेकर दीवाना था और इसे उत्सुकतापूर्वक पढ़ता था। आठ वर्ष की उम्र से पहले ही, प्रमुख भारतीय देवताओं के नाम याद करने के बाद, मैंने उनकी मूर्तियाँ एकत्र कीं, जिसमें ब्रह्मा की एक दुर्लभ मूर्ति शामिल थी। ओह, इस दीवानगी को समाप्त नहीं होना था। अन्य बच्चों को कभी-कभार ही पता होता था कि मैं क्या बात कर रहा हूँ। स्वीकृति की तलाश में, मैं डिज़्नी और पोकेमॉन का विशेषज्ञ बन गया। अपने मित्रों द्वारा बतायी गयी शर्तों पर शान्त बने रहने के चक्कर में, मैंने किसी तरह से उसमें फिट होने की कोशिश की। यह एक दुष्चक्र बन गया। मैं जितना फिट होने की कोशिश करता, मुझे उतना ही मुश्किल और तनावपूर्ण महसूस होता—तो मैंने और मेहनत की, अपने लिए अतार्किक उम्मीदें बना लीं जिससे मेरी निराशा और बढ़ गयी। मुझे अन्दर से लगने लगा कि जीवन में बहुत कुछ है, लेकिन मैं एक ऐसी ट्रेडमिल पर सवार था जो चलना बन्द नहीं करेगी। बहुत से सलाह देने वालों की मदद से, मैं धीरे से ट्रेडमिल से उतरा और प्राचीन हिन्दू मूलों से फिर से जुड़ने की एक लम्बी यात्रा प्रारम्भ की। यह कठिन था लेकिन, सिंहावलोकन करने पर, मेरे पास कोई और रास्ता नहीं था।

8वीं कक्षा में, मेरे पिता और मैं नॉर्वे गये और मार्क क्रिगर के घर पर रुके जो मेरे पिता के पुराने सहपाठी थे। हार्वर्ड में व्यवसाय में अपनी पीएचडी शुरु करने से पहले, मार्क ने एमआईटी से धर्म में मास्टर किया था और ह्यूस्टन स्मिथ के साथ बहुत निकट से काम किया था, जो दि वर्ल्ड्स रिलिजन के प्रसिद्ध लेखक थे। स्मिथ की तरह, मार्क ने विभिन्न आध्यात्मिक परम्पराओं की तलाश करते हुए कई वर्ष बिताये थे, जिसमें वेदान्त भी शामिल है, और वे अन्नामलाई में श्री रमन महर्षि के आश्रम गये थे।

तीन साल बात, मार्क लॉस एंजिलिस में हमारे पास आये। उनका आगमन मेरी ११वीं कक्षा की शुरुआत के साथ हुआ, जो एक बहुत उत्तेजना का समय होता है। मार्क ने मुझे बताया कि जब कभी वह लॉस एंजिलिस में होते थे तो वे सेल्फ़ रियलाइज़ेशन फेलोशिप (एसआरएफ़) लेक श्राइन जाते थे। उन्होंने मुझे साथ चलने के लिए आमन्त्रित किया, और मैं एकदम सहममत हो गया। यदि मार्क का मुझे उस शान्त लेक श्राइन ले जाने में कोई विशेष उद्देश्यर रहा हो, तो यह मुझे पता नहीं। मैं अपने दिमाग में चल रही उथल-पुथल में डूबा रहा और सुन्दर वातावरण पर कम ही ध्यान दे पाया।

लेक श्राइन की उस यात्रा ने ज़रूर बीजारोपण किया होगा, क्योंकि बारह वर्ष बाद, मैं दक्षिणी कैलीफ़ोर्निया विश्वविद्यालय (यूएससी) से स्नातक के रूप में, मैं अपने आध्यात्मिक खोज की गहराइयों में जूझ रहा हूँ। मुझे सीखने के प्रति बहुत प्रतिबद्धता है और मैं दूसरों की सहायता करने की अपनी क्षमता को लेकर अधिक विश्वस्त हूँ। लेक श्राइन में मेरी पहली यात्रा की यादें मेरे मस्तिष्क में बनी हुई हैं, और वापस जाने को सोचता हूँ, वैश्विक आध्यात्मिकता के एक सबसे प्रभावशाली गुरु, परमहंस योगानन्द के प्रति मेरी आँखे खोलने के लिए, मैं मार्क का आभारी हूं।

लेक श्राइन दक्षिणी कैलीफोर्निया के बहुत से एसआरएफ़ केन्द्रों में से एक है। १९२५ में, योगानन्द ने अपनी संस्था का मुख्यालय माउंट वाशिंगटन में बनाया था, जो मेरे पासाडिना के घर से कुछ ही मील दूर है, एक शान्त पहाड़ी पर जो लॉस एंजिलिस की चहल-पहल से मुक्त है। एक बार जब मुझे पता चला कि योगानन्द की मेरे “पीछे की तरफ़” एक महत्वपूर्ण भूमिका थी, भूगोल के प्रति मेरा आजन्म प्रेम और भारतीय प्रवासियों में मेरी गहन रुचि मुझे उनके जीवन के बारे में और बहुत कम दूरी में स्थित बहुत से एसआरएफ़ मन्दिरों के बारे में जानने की तरफ़ ले गयी।

सनसेट बुलेवार्ड पर स्थित हॉलीवुड टेम्पर माउंट वाशिंगटन के एसआरएफ़ मुख्यालय से बहुत दूर नहीं है। १९३० में बना हुआ, यह बड़े मस्ज़िद जैसे प्याज के आकार वाले गुम्बदों से अपने रूप में चित्ताकर्षक है। सैन डियागो के पास, एंसिनिटास में प्रशान्त महासागर के किनारे फैली हुई एक भूमि पर १९३७ में जेम्स लिन द्वारा योगानन्द को उपहारस्वरूप दिया गया एक एसआरएफ़ मन्दिर है, जो एक पक्के भक्त और बड़े व्यवसायी थे। भूमि पर हरियाली, कोई तालाब, छोटे झरने और ध्यान के लिए बेंच लगी हैं। प्रत्येक एसआरएफ़ केन्द्र शान्ति का स्थल होता है।

Swami’s well-known book Autobiography of a Yogi

स्वामी की प्रसिद्ध पुस्तक एक योगी की आत्मकथा

मैं योगानन्द के बारे में पूछने के लिए अलग-अलग लोगों के पास गया। प्रसाद कैपा, जो मेरे पिता के एक पुराने मित्र थे, उनमें धैर्य और विनम्रता के साथ एक महान अन्तदृष्टि है जिससे निश्चित रूप से मुझे उनकी उपस्थिति से आराम मिलता है। संस्कृत में धाराप्रवाह, प्रसाद में प्राचीन हिंदू ज्ञान को आधुनिक व्यावसायिक सलाह के साथ जोड़ने की दुर्लभ क्षमता है। मैंने उनके जीवन पर योगानन्द के प्रभाव के बारे में उनसे पूछा। उन्होंने बताना शुरु किया, “मैं उस समय एप्पल में काम करता था जब एप्पल एक नयी कम्पनी थी। मेरे चाचा भारत में क्रिया योग के बहुत समर्पित अनुयायी थी और उन्होंने मुझसे अपने लिए अमेरिका से एसआरएफ़ की पुस्तकें और वीडियो लाने को कहा। मैंने उन्हें कभी भी पढ़ा या देखा नहीं था। मैंने महसूस किया कि भारत में बहुत से स्वामी हैं, मुझे पता नहीं कि किसका अनुसरण करना चाहिए। लेकिन मेरे चाचा ने मुझे योगानन्द की एक योगी की आत्मकथा की एक प्रति दी और मुझे इसे जल्द ही पढ़ जाने को कहा। मैंने तीन दिन में पुस्तक समाप्त कर दी, और यह मुझे एक बिल्कुल अलग मानसिक अवस्था में ले गयी। अमेरिका वापस आने पर, मैं योसेमाइट गया और तीन दिन तक ध्यान किया। इसने यह स्पष्टता लाई कि मैं जीवन में क्या करना चाहता था, और मैंने ऐप्पल में काम करना छोड़ दिया।”

प्रसाद और मार्क जैसे लोगों पर परमहंस योगानन्द के परिवर्तनकारी प्रभाव से विस्मित होकर, मैंने उनके बारे में और पढ़ा और पाया कि अमेरिका आने वाले वे दूसरे भारतीय गुरु थे। पहले, स्वामी विवेकानन्द १८९० में विश्व धर्म संसद में बोलने के लिए शिकागो आये थे। विवेकानन्द ने भारतीयों के बारे में पिछड़े, मूर्तिपूजक, साँपों की पूजा करने वाली पश्चिमी धारणाओं पर प्रश्न किया और हिन्दू धर्म को सभी धर्मों की ऐतिहासिक जननी के रूप में व्याख्या की, बताया कि सभी धर्मों को आत्मसात करने का हिन्दू धर्म का मूल सन्देश सार्वभौमिक होना चाहिए। अपने अभूतपूर्व व्याख्यान के बाद, विवेकानन्द ने कई प्रमुख अमेरिकी शहरों में वेदान्त समाज की शाखाएँ शुरु कीं। प्रसाद कैपा ने टिप्पणी की, “विवेकानन्द से अलग, जिन्होंने वेदान्त समाज की स्थापना की और वापस भारत चले गये, योगानन्द अमेरिका में रुके और शिक्षित करते रहे। अमेरिका में आधारभूत ढाँचे का निर्माण करके, योगानन्द ने उसे ठोस किया जिसके बारे में विवेकानन्द ने व्याख्यान दिया था।”

मेरा मोड़ बिन्दु और हिन्दू धर्म के प्रति फिर से प्रतिबद्धता तब शुरु हुई जब मैंने यूएससी छोड़ दिया और जुड़ने के लिए कोई धार्मिक सामाजिक समुदाय नहीं था। एक योगी की आत्मकथा पढ़ने ने मुझे अपने अन्दर देखने में सहायता की। मैं समझने लगा कि धर्म और आध्यामिकता का सार ध्यान के माध्यम से अपनी आन्तरिक शान्ति की तलाश करना और पूरे समाज के कल्याण में योगदान देना है। तब मैंने यूएससी में एक सामाजिक समुदाय की उम्मीद से एक धार्मिक समुदाय से जुड़ने की अपनी ग़लती को महसूस किया, जो एक तरीके का बाहरी आनन्द था, न कि अन्तर्दर्शन और आत्म-ज्ञान, जो कि आत्मबोध का आधार है।

एक योगी की आत्मकथा का दुनिया भर में हजारों लोगों पर बहुत प्रभाव पड़ा है। योगानन्द डॉक्यूमेंटरी, जागो में, बीटल जॉर्ज़ हैरिसन कहते हैं, “यदि मैंने इसे नहीं पढ़ा होता, तो मैं जीवित नहीं होता। मैंने जिन्दगी से पीछा छुड़ा लिया होता या कोई भयानक व्यक्ति होता। इसने जीवन को अर्थ दिया।” यह स्टीव जॉब्स के आई-पैड की एकमात्र पुस्तक थी, और यह इसे हर साल फिर से पढ़ते थे। स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी में अपनी यादगार सेवा के दौरान, सभी आगन्तुकों को जॉब्स की ओर से अन्तिम उपहार के रूप में इस पुस्तक की प्रति प्राप्त हुई।

मेरे यूएससी में रहने के दौरान एक प्रमुख बात वरुण सोनी को जानना था, जो यूएससी के धार्मिक जीवन के अधिष्ठाता (डीन) थे और किसी बड़े विश्वविद्यालय के धार्मिक नेतृत्वकर्ता के रूप में सेवा देने वाले पहले हिन्दू थे। मैं उनसे आध्यात्मिक प्रगति के बारे में अपने सवालों को लेकर नियमित बातचीत करता था। डीन सोनी ने मुझे बताया कि योगानन्द के आगमन के समय अमेरिका के नस्लवाद ने उनके लक्ष्य को और उल्लेखनीय बना दिया। “वह पश्चिम में भारतीय परम्परायें लेकर आये; हमने ज़्यादातर उल्टा देखा था। इसाई मिशनरियाँ भारत आती थीं; भारतीय मिशनरी पश्चिम नहीं जाते थे।” उन्होंने कहा, “यह एक एशियाई बाहिष्कारवाद और नस्लवाद का दौर था। फिर भी, इस भारतीय व्यक्ति ने इन सभी आध्यात्मिक चिन्तकों का प्राचीन भारतीय परम्पराओं से परिचय कराया।”

योगानन्द १९२० में एक पानी की जहाज से बोस्टन में उदारवादियों की सातवीं एकेश्वरवादी कांग्रेस में भागीदारी करने दि सिटी ऑफ़ स्पार्टा पहुँचे। उनके गुरु, स्वामी श्री युक्तेश्वर का लम्बे समय से यह सोचना था कि उनका शिष्य किसी दिन प्राच्य आध्यात्मिकता और पाश्चात्य भौतिकवाद के बीच के सेतु का कार्य करेगा। अपने गुरु की आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए, योगानन्द, जिन्होंने कभी समुद्र के पार क़दम नहीं रखे थे, यूएसए गये। योगानन्द की बोस्टन में “धर्म का विज्ञान” विषय पर बातचीत धर्म के सार पर केन्द्रित थी। उनकी प्रसिद्ध उक्ति थी, “आज के विश्व में, प्रत्येक व्यक्ति, चाहे वह जो भी कर रहे हों, चाहे वह जो भी ढूँढ रहे हों, या उनकी जो भी इच्छा हो, दो लक्ष्य रखते हैं: वे दर्द से मुक्ति और परमानन्द की प्राप्ति चाहते हैं।” इस प्रकार, “धर्म वह क्रिया है जो स्थायी रूप से दर्द से मुक्ति और परमानन्द प्रदान करती है।”

Yogananda seated at Lake Shrine in Southern California. SRF

दक्षिणी कैलीफ़ोर्निया में लेक श्राइन में बैठे योगानन्द। एसआरएफ़

प्रथम विश्व युद्ध के बाद का समय ऐसा समय था जब धर्मिक संशयवाद का उदय हो रहा था और भौतिकवाद बढ़ रहा था। जागृति फ़िल्म में इस अवधि का वर्णन “आणविक युग का उदय, जब भौतिकी वास्तविकता की प्रकृति के बारे में आपके विश्वास को खण्डित कर सकती थी” के रूप में किया गया है। सोनी याद करते हैं, “हर तरफ़ यह बहस थी कि विज्ञान मानवता को नष्ट कर देगा। योगानन्द ने आध्यात्मिकता के विज्ञान को मानवता की रक्षा के लिए परमाणु हथियारों के युग के प्रतिसन्तुलन के रूप में बताया।”

मैंने फ़िलिप गोल्डबर्ग का साक्षात्कार किया, जो अमेरिकी वेद और योगानन्द के जीवन के लेखक थे। उन्होंने बताया कि कैसै योगानन्द लॉस एंजिलिस को अमेरिका का बनारस मानते थे। उन्होंने “शहर के चरित्र में कुछ ऐसा महसूस किया जो इसे आत्मा के खोजकर्ताओं के लिए एक गंतव्य के रूप में अलग कर देता है।” सोनी सहमत होते हैं: “वेस्ट कोस्ट की कल्पना पहले ही नयी शुरुआत के स्थान के रूप में की गयी थी। चूंकि एशियाई ऐतिहासिक रूप से वेस्ट कोस्ट पर आये हैं, लोग पहले से ही प्राच्य परम्पराओं से परिचित थे। योगानन्द को सही सन्देश के लिए सही समय पर सही श्रोता मिल गये।” ऐसी चीज़ जिसने स्पष्ट रूप से काम किया, क्योंकि योगानन्द जहाँ कही भी बोलते खचाखच भीड़ हो जाती।

योगानन्द का मूल सिद्धान्त धर्म की सार्वभौमिकता है। उल्लेखनीय है कि उन्होंने पश्चिम में हिन्दू धर्म का परिचय जीसस के लेंस के माध्यम से कराया। सोनी कहते है, “वह समझ गये कि जब वह यूएसए आये, वह बहुत से इसाइयों से बात करेंगे, और उन्होंने जीसस का प्रयोग पूर्व और पश्चिम के बीच की दूरी को पाटने और लोगों को साथ लाने के लिए किया।” सोनी आगे कहते हैं, “जीसस कुछ हिन्दुओं के लिए किसी अवतार की तरह है, वह हमें शिक्षा देने के लिए मानव के रूप में पृथ्वी पर आने वाले ईश्वर हैं। इस प्रकार, जीसस हिन्दू धर्म और इसाई धर्म के बीच एक सेतु हैं, जिसे योगानन्द ने समझा।” वास्तव में, उनकी परम्परा मॉर्मन महिला, दयामाता के माध्यम से आगे बढ़ी, जिन्होंने एसआरएफ़ का योगानन्द से भी अधिक समय तक नेतृत्व किया। कैपा ने मुझे बताया, “योगानन्द स्थानीय धर्मों से अन्य आध्यात्मिक गुरुओं की तुलना में अधिक तरलता से, उनके धर्म और अपनी शिक्षाओं के बीच किसी टकराव के बिना ही एकीकृत हो गये।”

रवि सहाय का जन्म बिहार, भारत में हुआ था और वह अमेरिका में इलेक्ट्रिकल इंजीनियर के रूप में अपना भविष्य बनाने आये थे। अपने बच्चों के लिए ऐसे स्थान की तलाश करते हुए जो उनके बच्चों को धर्म की व्यापक समझ प्रदान करेगा, उन्हें सैन डियागो में योगानन्द का मन्दिर मिला और उन्होंने स्वयं को योगानन्द की शिक्षाओं में लीन कर लिया। अब सेवानिवृत्त सहाय एक एसआरएफ़ के स्वयंसेवक हैं और एस्कोंडिडो में एसआरएफ़ के हिडन वैली आश्रम के पास एक छोटी कुटिया में रहते हैं। सहाय सोचते हैं कि कैसे योगानन्द ने वैदिक शिक्षाओं को पूरी दुनिया के धर्मों से जोड़ दिया: “मानव मूलतः ईश्वर की अजीब सन्तान के रूप में बनाये गये हैं। वैदिक सिद्धान्त कहते हैं कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप क्या करते हैं, आप तब तक प्रसन्न नहीं हो सकते जब तक आपको शान्ति नहीं मिलती। बहुत से लोग हैं जो बहुत धनवान हो जाते हैं लेकिन दुखी रहते हैं और आत्महत्या कर लेते हैं। वैदिक धर्म कहता है कि यदि आपको यह इस जीवन में नहीं मिलता, तो आपको यह अगले जन्म में प्राप्त होगी। यही आपका एकमात्र रास्ता है।” अपनी पुस्तक धर्म का विज्ञान में योगानन्द बताते हैं, “धर्म स्थायी रूप से दर्द की समाप्त और परमानन्द या ईश्वर की प्राप्ति है। यदि हम धर्म को इस रूप में समझें, तो इसकी सार्वभौमिकता प्रकट हो जाती है।”

योगानन्द ने पश्चिम में इस लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायता के लिए जिस मुख्य तकनीक को प्रोत्साहन दिया वह क्रिया योग थी। कैपा ने मुझे बताया, “यह अभ्यास आपको विनम्रता, समावेशन और निर्मलता विकसित करने में सहायता करता है।” विज्ञान और भौतिक पर बढ़ते जोर को सम्बोधित करने के लिए, योगानन्द ने हिन्दू धर्म को एक विज्ञान के रूप में प्रस्तुत किया। सोनी के अनुसार, “उन्होंने क्रिया योग के आध्यात्मिक अभ्यास के बारे में चर्चा करने के लिए विज्ञान की भाषा का प्रयोग किया, श्वसन, ऊर्जा और चेतना के विज्ञान का। आपको आस्था या विश्वास नहीं रखना पड़ता था। आपको अभ्यास करना था ताकि आप परिकल्पना का वैज्ञानिक अभ्यास के रूप में परीक्षण कर सकें।” सहाय आगे कहते हैं, “हम अहंकार से जितना अधिक संचालित होते हैं, हम उतने कम आध्यात्मिक होते हैं। आध्यात्मिकता हमारे अहंकार का त्याग करने से सम्बन्धित है। आध्यात्मिकता यह महसूस करना है कि हमारा अहंकार हमारे या हमारे समुदाय के सर्वोत्तम हित में कार्य नहीं कर रहा है। कोई अन्य अच्छी परिभाषा नहीं है।”

The lush and serene Lake Shrine as it stands today. SRF

आज के समय का हरा-भरा और शान्त लेक श्राइन। एसआरएफ़

मेरा दोस्त ज्ञान अलेक्ज़ेंडर एक ३० वर्षीय युवा है। ज्ञान ने अपने पूरे जीवनकाल में योगानन्द के क्रिया योग का अभ्यास किया है, और उस समय उसकी शक्ति का स्रोत था जब उसके निकटतम बचपन के मित्र ने आत्महत्या कर ली थी। ज्ञान कहते हैं, “क्रिया योग का अभ्यास करने से मुझे जीवन में आने वाली चिन्ताओं और चुनौतियों से जूझने में मदद मिलती है। स्थिर बैठने और अपने अन्दर की स्थिरता की तलाश करने ने, जो मैं हूँ उसे उससे अलग करने में सहायता की है जिन समस्याओं का मैंने सामना किया है।” वह आगे कहते हैं, “हम स्थायी रूप से हमारे पास पर्याप्त न होने की सोच का शिकार होते हैं। ध्यान सर्वोत्तम रूप में आपको यह महसूस करने में सहायता करता है कि आप पर्याप्त हैं। पटकथा लेखक के रूप में मेरे अप्रत्याशित भविष्य में, इस अभ्यास में कुछ बहुत सुरक्षित है जिसने निश्चित रूप से मुझे तार्किक और रचनात्मक तौर पर सहायता की है।”

ज्ञान की माँ कमला ने सिख धर्म से एसआरएफ़ में धर्म परिवर्तन किया है। उनका जन्म और पालन यूबा सिटी, उत्तरी कैलीफ़ोर्निया में हुआ था, जहाँ उनके परिवार के पास एक फ़ार्म था। वह दक्षिणी कैलीफ़ोर्निया में एक नर्स थीं जब उनकी भेंट उनके भविष्य के पति रान्या अलेक्ज़ेंडर से हुई, जो एक अफ़्रीकी अमेरिकी आकस्मिक-कक्ष के चिकित्सक थे। उन्होंने अपने विवाह स्थल के रूप में लेक श्राइन का चुनाव किया था। रान्या के एसआरएफ़ का पालन करने और लेक श्राइन की शान्ति ने कमला को हृदय से एसआरएफ़ को स्वीकार करने के लिए प्रेरित किया। हालांकि उनके भक्त सिख परिवार ने उनके विवाह और एसआरएफ़ को स्वीकर करने का विरोध किया, लेकिन वह अपनी प्रतिबद्धता के प्रति दृढ़ रहीं। उन्होंने सोचा, “सिख धर्म को छोड़ने ने मुझे अपने जन्म के विश्वास को और अधिक समझने में सहायता की। इसने मुझे नानक जी और अन्य सिख गुरुओं ने जो किया, उसका सार समझाया। पश्चिम में बड़ा होने पर, गुरु ग्रन्थ साहिब को समझना आसान नहीं था। योगानन्द ने स्वयं काफ़ी कुछ लिखा है, जिससे मन को सन्तुष्टि प्राप्त होती है। वह आपको ध्यान की तकनीक प्रदान करते हैं जो आपको दैवत्व के आपके अपने अनुभव तक ले जा सकती है। वे वैज्ञानिक तकनीकें हैं; जो सहायता करती हैं।”

ज्ञान, जो जन्म से एसआरएफ़ के एक अनुयायी हैं, जो माउंट वाशिंगटन मुख्यालय में स्वयंसेवा करने के अपने अनुभव को याद करते हैं: “आप ध्यान दें कि भिक्षु किस तरह से इतने ध्यान और शांत, चिंतनशील आनंद के साथ मैदान की देखभाल करते हैं। जब वे बात करते हैं, तो यह बहुत सटीक होती है, कोई अतिरिक्त शोर नहीं होता। वे इस स्थान पर शानदार खेती करते हैं। श्रद्धालुओं को बस से पहुँचता देखकर, आपको लगता है कि आप स्वर्ग के किसी हिस्से में हैं।” ज्ञान एसआरएफ़ को सभी धर्मों के चर्च के रूप में देखते हैं। वह कहते हैं, “इसने मेरे लिए अन्य पूजा स्थलों पर जाना सुविधाजनक बना दिया है। मेरे साथ मिलने वालों से मुझ तक सार्वभौमिक सन्देश मिलते हैं, चाहेव वह अन्य आस्थाओं का पालन करने वाले लोग हो, या यहाँ तक कि नास्तिक हों।”

जागो में, वरुण सोनी कहते हैं, “योगानन्द हमें आत्मा के विषय में बात करने के लिए एक शब्दावली प्रदान करते हैं। यह कठमुल्लावाद, पन्थ और कर्मकाण्ड से दूर होती है। आप जिस भी परम्परा के भाग हों, योगानंद ने भीतर की ओर एक ऐसा रास्ता निकाला जो आपको आपकी अपनी दिव्यता से जोड़ता है।” धर्म का विज्ञान आगे बताता है, “ईश्वर के अस्तित्व का प्रमाण हमारे अन्दर और हमारे आन्तरिक अनुभवों में है। यह परमानन्द चेतना में है कि हम उसे महसूस करते हैं। उसके अस्तित्व का कोई अन्य प्रत्यक्ष प्रमाण नहीं हो सकता। यह उसका परमानन्द होता है कि हमारी आध्यात्मिक उम्मीदें और आकांक्षाएँ परिपूर्णता प्राप्त करती हैं, हमारे समर्पण और प्रेम को एक उद्देश्य मिलता है।”

Yogananda with his guru, Sri Yukteshwar. SRF

योगानन्द अपने गुरु श्री युक्तेश्वर के साथ। एसआरएफ़

योगानन्द की विरासत पर चिन्तन करते हुए, सोनी ने कहा, “अमेरिका में भारतीयों के साथ सबसे ज़्यादा जुड़ी हुई एक चीज़ है योग। आज लगभग १.५ करोड़ अमेरिकी योग करते हैं। हालांकि उनमें से ज़्यादातर इसे स्वास्थ्य को लेकर करते हैं, योगानन्द इसे आध्यात्मिक अभ्यास के रूप में ले आये। योगानन्द ने इसे यहाँ लाने में सहायता की।”

आज, मुझे पहली बार लेक श्राइन गये बारह वर्ष बीत चुके हैं, उस समय मैं योगानन्द की शिक्षाओं से अपरिचित था, मैं नैदानिक समाज कार्य में स्नातक कार्यक्रम के लिए आवेदन कर रहा हूँ। मैं योगानन्द की मूलभूत शिक्षाओं को स्वयं शान्ति तक पहुँचने के लिए लोगों को प्रेरित करने और विश्व को बेहतर बनाने के लिए जूझने में प्रयोग करने की उम्मीद करता हूँ। आज जब मैं लेक श्राइन जाता हूँ, इसकी अद्भुत शान्ति मेरे साथ रहती है। परमहंस योगानन्द की एक योगी की आत्मकथा विवेक का वह स्रोत है जो मैं समय को और पुनः लौटता हूँ।

योगानन्द की शिक्षाओं पर चिन्तन करते हुए, मुझे महसूस होता है कि मेरे माता-पिता ने मुझे कभी भी केवल किसी एक तरह के विचारधारा का पालन करते हुए नहीं बड़ा किया। उन्होंने हमेशा मुझे मेरे अपने आन्तरिक उद्देश्य और दिशा को खोजने के लिए प्रोत्साहित किया। योगानन्द पूर्व के सर्वोत्तम और पश्चिम के सर्वोत्तम को मिला देता हैं, यह दर्शाते हैं कि आध्यात्मिक सिद्धान्त और तार्किक वैज्ञानिक विश्लेषण सहक्रियाशील हैं न कि अलग-अलग। योगानन्द की आत्मकथा को पढ़ने से मुझे मेरे उद्देश्य की प्राप्ति में मदद मिली है। बहुत से लोगों से सीखने से मेरी प्रतिबद्धता मजबूत हुई है जो मुझसे पहले इस मार्ग पर चले हैं। आज की विभाजनकारी दुनिया के बीच, योगानंद के एकता के सिद्धांतों में ध्यान देने के लिए बहुत कुछ है, और मैं खुद को परमहंस योगानन्द से प्रेरित परंपराओं का बहुत आभारी लाभार्थी मानता हूं।


निखिल भाम्बरी एक मुक्त पत्रकार हैं जो लॉस एंजिलिस, कैलीफ़ोर्निया में रहते हैं। वह दक्षिणी कैलीफ़ोर्निया विश्वविद्यालय (यूएससी) से इतिहास में स्नातक की उपाधि प्राप्त की है, एक उत्सुक अध्येता और यात्री हैं जो हमेशा जातीय समूहों, संस्कृति, खानपान और इतिहास के बारे में लिखने के लिए उत्सुक रहते हैं। ईमेल: bhambrin3@gmail.com