Quotes & Quips
डैन पिरारो
“यदि तुम्हें पागल होना ही है, तो दुनियावी चीज़ों के लिए पागल मत बनों। ईश्वर के प्रेम में पागल बनो।”
श्री रामकृष्ण (१८३६-१८८६)
धर्म जीवन का रहस्य है। यह हमें प्रेम करना, सेवा करना, क्षमा करना, सहन करना और हमारे भाइयों और बहनों के साथ तदनुभूति और सहानुभूति से बात करना सिखाता है। अद्वैत एक शुद्धतः आत्मगत अनुभव है। लेकिन दैनिक जीवन में, इसे प्रेम और सहानुभूति के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। यह भारत के महान सन्तों और साधुओं द्वारा बताया गया महान पाठ है, जो सनातन धर्म के प्रतिपादक थे। माता अमृतानन्दमयी, जो केरल की आलिंगन करने वाली सन्त थीं
सम्पत्ति की प्रकृति निरंकुश है। इसे प्राप्त करने पर, तत्काल वह करना चाहिए जो सहन करने योग्य हो। तिरुकुरल ३३३
मैंने शपथ ली कि मैं विश्व के दुखों और विश्व की मूर्खता और क्रूरता और अन्याय से कष्ट नहीं उठाऊँगा और मैंने सहनशीलता के मामले में अपने हृदय को इतना कठोर बना लिया जितना कि नीचे के मील के पत्थर होते हैं और अपने मस्तिष्क इस्पात की चमकदार सतह जैसा बना लिया। मैंने औप अधिक कष्ट नहीं सहा, लेकिन आन्द मुझसे दूर चला गया।” श्री अरबिन्दो (१८७२-१९५०)
हम सभी इस समय, इस स्थान के आगंतुक हैं। हम बस इससे गुजर रहे हैं। हमारे उद्देश्य यहाँ पर अवलोकन करना, सीखना, विकास करना, प्रेम करना है… और फ़िर हम घर लौटते हैं। ऑस्ट्रेलियाई मूलनिवासियों की कहावत
क्रियाएँ विचारों की उच्च अभिव्यक्तियाँ होती हैं। चिन्तन का गुण हमारे आन्तरिक विश्वास और आस्था द्वारा आदेशित होता है। स्वामी चिन्मयानन्द (१९१६-१९९३), चिन्मय मिशन के संस्थापक
यदि आपको धन्यवाद कहने का कोई कारण नहीं मिलता, तो समस्या आप में है। सुस्केहैनॉक कहावत
कृपा हमेशा होती है। आप इसकी किसी दूर आकाश में कल्पना करते हैं, जिसे नीचे आना होता है। यह वास्तव में आपके अन्दर होती है, आपके हृदय में, और जिस क्षण आप मस्तिष्क को इसके परम स्रोत में उतारने या मिलाने का प्रभाव करते हैं, कृपा तुरन्त आगे आती है, जैसे आपके भीतर से कोई झरना निकल रहा हो। रमन महाऋषि (१८७९-१९५०)
क्या आप दुनिया को उस क्षय और विनाश से बचायेंगे जिसके लिए यह बना हुआ प्रतीत होता है? तो उथली जन कार्रवाइयों से दूर हटें और चुपचाप अपनी आत्म-जागरूकता पर काम करें। यदि आप पूरी मानवता को जगाना चाहते हैं, तो स्वयं को जगायें। यदि आप दुनिया से कष्ट को दूर करना चाहते हैं, तो अपने अन्दर के अँधेरे और नकारात्मकता को दूर करिये। वास्तव में, सबसे शानदार उपहार जो आपके पास देने के लिए है वह है आपका अपना-रूपान्तरण। लाओ जू (सीए ६०० ई.पू), ताओ ते चिंग का लेखक
यदि लोग जानते थे कि मैंने अपनी प्रवीणता को प्राप्त करने के लिए कितनी कड़ी मेहनत की है, तो यह बिल्कुल भी आश्चर्यजनक नहीं लगती। माइकलएंजेलो (१४७५-१५६४), इतालवी पुनर्जागरण कलाकार
एक अच्छा अध्यापक उन गलतियों को सामने लाता है जो आप देख नहीं पाते। यामामोटो त्सुनेतोमो (१६५९-१७१९), समुराई और हागाकुरे के लेखक
हम ईश्वर को कहाँ पा सकते हैं यदि हम उन्हें अपने हृदय में और प्रत्येक जीव में नहीं देखते। स्वामी विवेकानन्द (१८६३-१९०२)
वह जो पौधे लगाता है, जानते हुए कि वह कभी इसकी छाया में नहीं बैठेगा, उसने कम-से-कम जीवन का अर्थ समझना शुरु कर दिया है। रबीन्द्रनाथ टैगोर (१८६१-१९४१)
अपनी प्रकृति से आप स्वतन्त्र हैं; आप स्वयं को अपने दासत्व की अवस्था में भूल गये हैं। एक राजा सो सकता है और खुद को रंक पाता है; वह सपना देख सकता है कि वह एक रंक है, लेकिन इसका उसके वास्तविक प्रभुत्व पर कोई असर नहीं पड़ता है। स्वामी राम तीर्थ (१८७३-१९०६), वेदान्त के शिक्षक
क्षण के आनन्द लेने का अभ्यास करो। यहीं पर हम अपना पूरा जीवन व्यतीत कर देते हैं। आई चिंग, परिवर्तन की चीनी किताब
एक छोटे मील के पत्थर तक पहुँचने के लिए उठाया गया एक छोटा क़दम आपको बड़े लक्ष्य प्राप्त करने में सहायता करता है। छत्रपति शिवाजी महाराज (१८३०-१८८०), मराठा राज्य के संस्थापक
ध्यान का अभ्यास स्वयं में कुछ नहीं है; ध्यान में हमारे द्वारा प्राप्त चेतना की स्थिति को इसे प्रभावित करने की आवश्यकता होती है कि हम अपने दैनिक गतिविधियों में हमारे पास आने वाले अनुभवों को कैसे संभालते हैं। सद्गुरु बोधिनाथ वेयलनस्वामी, हिन्दुइज़्म टुडे के प्रकाशक हर जगह, एक सर्वव्यापी, आत्म-प्रभावशाली ऊर्जा और चेतना के रूप में ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास, दूसरों के प्रति उदात्त सहिष्णुता और स्वीकृति का दृष्टिकोण बनाता है। सद्गुरु शिवाय सुब्रमण्यस्वामी (१९२७-२००१), हिन्दुइज़्म टुडे के संस्थापक
क्या आपको पता है?
सबसे प्राचीन ज्ञात जोता गया खेत
कालीबंगा का आर-पार जोता गया खेत। एएसआई
कस्बे की जगह का मॉडल, जो प्रमुख भागों को दर्शाता है। एएसआई
उत्तरी भारत के राजस्थान राज्य में वह जगह है जिसे प्राचीन सिन्धु घाटी सभ्यता के प्रमुख राज्य की राजधानी माना जाता है, जिसके कालीबंगा के नाम से जाना जाता है। यह पुरातात्विक स्थल इस मायने में अद्वितीय है कि इसमें दो बड़े गढ़ी वाले भाग शामिल हैं। निचला प्रारम्भिक हड़प्पा सभ्यता के अन्य स्थलों की तरह है, जबकि ऊपरी भाग बाद के हड़प्पा स्थलों जैसे महानगरीय वर्गाकार संरचना और शहरी नियोजन को दर्शाता है। पूरा शहर इस मायने में अलग है कि घरों में लगभग हर जगह धार्मिक अग्नि वेदियाँ पायी जाती हैं। इन वेदियों का, ज़्यादातर मामलों में, अपना अलग कक्ष है। इस स्थल पर अद्भुत बात एक ऐसी चीज़ की खोज है जो खुदाई में प्राप्त ज्ञात प्राचीनतम जोता हुआ खेत लगता है। यह खेत दर्शाता है कि हल का प्रयोग तीन हजार ईसा पूर्व भी होता था और यह आज भी प्रयोग होने वाली खेती की तकनीक की अटूट निरन्तरता की ओर संकेत करता है।
खुदाई में प्राप्त कस्बे की गली का एक मौजूदा दृश्य। एएसआई
अपनी पुस्तक सिन्धु सभ्यता पर नयी रोशनी में भारत का पुरातात्विक सर्वेक्षण के महानिदेशक बी.बी. लाल कहते हैं: “राजस्थान में कालीबंगा ने अभी तक खुदाई में प्राप्त प्राचीनतम (सी. २८०० बीसीई) जोते गये खेत का प्रमाण दिया है…. यह खांचों का एक ग्रिड पैटर्न दिखाता है, जो पूर्व-पश्चिम की ओर चलने पर लगभग ३० सेंटीमीटर की दूरी पर है और दूसरे उत्तर-दक्षिण की ओर चलने पर १९० सेंटीमीटर की दूरी पर हैं, जो उल्लेखनीय है कि आज के समान है।”
मूल जानकारी
क्या हिन्दू मूर्तिपूजक होते हैं?
ए. मणिवेलु
हिन्दू धर्म में, परम उपलब्धियों में से एक वह है जब साधक सभी तरह के रूपों और प्रतीकों की आवश्यकता को पार कर जाता है। यह योगी का लक्ष्य होता है। इस प्रकार हिन्दू धर्म विश्व के धर्मों में सबसे कम मूर्तिपूजक है। पारलौकिक, कालातीत, निराकार, कारण रहित सत्य के प्रति इससे अधिक जागरूक कोई धर्म नहीं है। न ही ऐसा कोई विश्वास है जो उस अनुभूति की तैयारी में सत्य को दर्शाने के लिए अधिक कल्पना का उपयोग करती है।
हिन्दू मन्दिरों में प्रयोग किये जाने वाले पत्थर या धातु के देवताओं के चित्र और धार्मिक स्थल ईश्वर के प्रतीक मात्र नहीं हैं। जैसा कि सद्गुरु शिवाय सुब्रमण्यस्वामी लिखते हैं, “वे वह रूप हैं जिनसे उनका प्रेम, शक्ति और आशीर्वाद इस विश्व में प्रवाहित होता है। हम इसे एक फ़ोन के माध्यम से दूरों तक बातचीत करने की अपनी क्षमता के जैसा समझ सकते हैं। हम स्वयं फ़ोन से बात नहीं करते; बल्कि हम इसे दूसरे व्यक्ति से बातचीत के माध्यम के रूप में प्रयोग करते हैं। टेलीफ़ोन के बिना, हम लम्बी दूरी में बातचीत नहीं कर सकते; और मन्दिर में पवित्र प्रतीकों के बिना, हम देवता के साथ आसानी से बातचीत नहीं कर सकते।”
देवत्व का किसी पवित्र अग्नि, या किसी वृक्ष, या किसी ज्ञानी व्यक्ति या सद्गुरु में भी आह्वान या महसूस किया जा सकता है। हमारे मन्दिरों में, ईश्वर का आह्वान गर्भगृह में अतिप्रशिक्षित पुजारियों द्वारा किया जाता है। योग, अथवा ध्यान के अभ्यास के माध्यम से, हम ईश्वर का अपने अन्दर आह्वान करते हैं। पूजा की छवि या प्रतीक हमारी प्रार्थना या भक्ति के लिए एक फ़ोकस होता है।
प्रतीक की पूजा की व्याख्या करने का दूसरा तरीका यह स्वीकार करना है कि हिन्दुओं का मानना है कि ईश्वर हर जगह है, सभी चीज़ों में, चाहे वह पत्थऱ हो, लकड़ी हो, जीव हो या लोग हों। इसलिए, यह आश्चर्य करने की बात नहीं है कि वे एक भौतिक चीज़ में देवता की पूजा करने में सुविधाजनक महसूस करते हैं। हिन्दू ईश्वर को पत्थर और पानी, अग्नि, वायु और ईथर, और स्वयं अपनी आत्मा में देख सकते हैं। वास्तव में, ऐसे हिन्दू मन्दिर भी हैं जिनके गर्भगृह में कोई भी चित्र नहीं होता है; बस एक यन्त्र, एक प्रतीक या रहस्यमय रेखाचित्र होता है। हालांकि, एक चित्र को देखने से भक्त की पूजा में बढ़ोत्तरी हो जाती है।
आमतौर पर, यह “तराशी गयी छवियों” के बारे में प्रश्न होता है जिनकी कई अन्य पन्थों में निन्दा की गयी है। फिर भी, क्या यह सच नहीं है कि सभी धर्मों के अपने पवित्रता के प्रतीक होते हैं? इसाई क्रॉस, मक्का में पवित्र काबा, सिख आदि ग्रन्थ, यहूदी तोरा, ध्यान करते हुए बुद्ध, ऐसे सभी प्रतीक, या तराशी गयी छवियों को श्रद्धा से देखा जाता है। प्रश्न यह है कि क्या यह ऐसे धार्मिकों को मूर्तिपूजक बना देता है? उत्तर है हाँ और नहीं। हमारे परिप्रेक्ष्य से, मूर्तिपूजा एक बुद्धमत्तापूर्ण, रहस्यवादी अभ्यास है। मानव बुद्धि को उन रूपों और प्रतीकों के प्रयोग से प्रेम है जो श्रद्धा को जगाती है, पवित्रता और आध्यात्मिक ज्ञान को जगाती हैं। यहाँ तक कि एक रुढ़िवादी इसाई जो मूर्तिपूजा के कैथोलिक और बिशपीय रूप को नहीं मानता, बहुत अपमानित महसूस करेगा यदि कोई उसकी बाइबिल के प्रति अनादर प्रकट करता है, क्योंकि वह इसे पवित्र मानता है। उसकी पुस्तक और हिन्दू प्रतीक इस मामले में आश्चर्यजनक रूप से समान हैं।