A Step Beyond SBNR
एक “धार्मिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक” जीवन हमारे अन्दर की इच्छाओं के लिए अन्तिम समाधान नहीं है
द्वारा रैली विलसन
मैंने हमेशा स्वयं को धार्मिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक के रूप में सोचा है (एसबीएनआर)। बड़े होने पर, मैं लूथरीय चर्च जाने लगी और घर पर मेरी माँ मुझे कुछ रहस्यवादी शिक्षा देती थी। मुझे चर्च के उपदेशों में विश्वास नहीं था, लेकिन फ़िर भी मैं अपने माता-पिता के साथ जाती रही क्योंकि मैं बस एक बच्ची थी।
मैंने पहली बार हिन्दू शब्द १६ साल की उम्र में सुना। अपने हल्के-फुल्के, शुरुआती शोध में, मैंने बहुत से सौन्दर्यात्मक पहलुओं को पाया और उन्हें आत्मसात किया। उदाहरण के लिए, गणेश की तस्वीरें देखना मुझे अच्छा लगता था इसलिए अपने स्कूल के लॉकर में और सेलफ़ोन की होमस्क्रीन पर मैं उनकी तस्वीरें रखती थी।
उस समय, मैं किसी हिन्दू को व्यक्तिगत तौर पर नहीं जानती थी, हालांकि मैंने एक हिन्दू महिला से ऑनलाइन बात की थी। मेरे प्रश्नों के उसके उत्तर छोटे और अस्पष्ट थे, और उसने कहा कि उसे नहीं लगता कि धर्मान्तरण हो सकता है। इसलिए शब्द हिन्दू से मैं दूर रही, लेकिन मैं योगाभ्यास, मन्त्रोच्चार, भजनों पर नृत्य करना और गाना जारी रखा। मुझे नहीं पता था कि शब्दों के अर्थ क्या हैं, लेकिन वे अच्छे लगते थे। मुझे नहीं पता था कि मैं किसी ऐसी चीज़ में शामिल हो रही थी जिसे किसी धर्म का पालन माना जाता है।
मार्च २०२० में, महामारी की शुरुआत के समय, मैं शब्द अद्वैत से ऑनलाइन टकराई। जहाँ से मैं तुरन्त गहन शोध में उतर पड़ी। केवल कुछ ही घण्टों के बाद, मुझे पता चला कि मैं एक हिन्दू हूँ और मैंने वह उपाधि ले लही है। ऐसा लगा जैसे मेरे मूल विश्वास और आचरण—जो मैं पहले ही कई सालों से करती रही थी—बिल्कुल मेरे सामने थे!
जब मैं स्वयं को एसबीएनआर समझती थी, मुझे लगता था कि मैं उन चीज़ों से मुक्त थी जिसें मैं धर्म की बाध्यता समझती थी। लेकिन मैंने सीखा है कि हिन्दू धर्म में इस तरह की कोई बाधा नहीं है। मैं मान गयी हूँ कि आज धर्म के बिना आध्यात्म की तरफ़ जाना, या नास्तिकता की तरफ़ जाना, अब्राहमीय विश्वासों को छोड़ने से आता है, क्योंकि वे पूजा पाठ करने और अपने अन्दर झाँकने के वे अनगिनत तरीक़े नहीं देते जैसा कि हिन्दू धर्म देता है। उपासना और विश्वास का यह प्राधिकारवादी और प्रायः सख़्त दृष्टिकोण बहुत से युवाओं को बहुत युवाओं को सभी धर्मों को पूरी तरह से नकार देने की ओर, तथा एसबीएनआर के क्षेत्र में प्रवेश की ओर ले जाता है। मुझे लगता है कि अमेरिकी लोगों को हिन्दू धर्म के बारे में शिक्षित करना महत्वपूर्ण है ताकि वे महसूस कर सकें कि विश्वास की सभी प्रणालियाँ उस तरह से सीमित करने वाली वाली नहीं जैसे कि जिसके साथ वे बड़े हुए हैं।
मैंने राजीव मल्होत्रा द्वारा उनके यू-टर्न सिद्धान्त पर किये गये वार्तालाप देखे हैं। वह बताते हैं कि बहुत से पश्चिमी लोग भारत जा चुके हैं, वहाँ से आध्यात्मिक ज्ञान लेकर वे इस धारणा के साथ लौटते हैं कि इस ज्ञान को किसी भी जीवनशैली के साथ लागू किया जा सकता है—किय यह केवल हिन्दू धर्म से सम्बन्धित नहीं है। निश्चित रूप से एक एसबीएनआर के तौर पर मैंने भी यही अनुभव किया था। मुझे हिन्दू ज्ञान दिया जा रहा था लेकिन इसके मूल से परिचित नहीं कराया जा रहा था। अब जबकि मैं स्वयं स्रोत को जानती हूँ, स्वयं मेरे पास सूचनाओं का बहुत बड़ा भण्डार है।
जब मैं एक एसबीएनआर थी, मेरे पास कोई निश्चित दिशा, समझ या पूजा का तरीक़ा नहीं था। हिन्दू धर्म यह सब कुछ बहुत तार्किक और स्पष्ट ढंग से प्रदाना करता है। मुझे हिन्दू होना पसन्द है, क्योंकि हर प्रथा का एक अर्थ है। एसबीएनआर इस एक जीवनकाल के लिए भौतिक और सामाजिक सम्पदा के प्रकटीकरण पर बहुत ज़ोर देता है। इसका कोई अन्तिम लक्ष्य नहीं है, जैसे कि मोक्ष। हिन्दू धर्म बताता है कि संसार जीवन के चार लक्ष्यों का आधार देता है। इसमें योग और सम्प्रदायों के बहुत से पंथ और वंश आते हैं।
मेरी एसबीएनआर की सोच ने मुझे एक सीमित समझ बनाये रखी थी, हालांकि इसका कहना था कि धर्म है जो सीमित करता है! मैंने अपनी जड़ें और अपना रास्ता हिन्दू धर्म में पाया है।
रैली विल्सन, २१, नेतृत्व और नीति अध्ययन में परास्नातक की डिग्री ले रही हैं। वह एक ऑनलाइन हिन्दू समुदाय में सक्रिय हैं और वह हिन्दू दर्शन की जागृति के प्रसार की इच्छा रखती हैं। ईमेल: ryewomanrox@gmail.com.