Quotes & Quips

डेव कवरली

अपने छोटे-छोटे काम में भी अपना हृदय, मन, मस्तिष्क, मेधा और आत्मा को लगा दो। यही सफ़लता का रहस्य है।

स्वामी शिवानन्द (१८८७-१९६३)


प्रसन्नता तुम्हारी प्रकृति है। इसकी आकांक्षा करना गलत नहीं है। गलत है इसे बाहर खोजना जबकि यह तुम्हारे अन्दर है। श्री रमाना महर्षि (१८७९-१९५०) 


सफ़लता या उपलब्धि अन्तिम लक्ष्य नहीं है। आप जिस भावना में कार्य करते हैं वह आपके जीवन के ऊपर सुन्दरता की मुहर लगा देती है।  स्वामी चिन्मयानन्द (१९१६-१९९२),  चिन्मय मिशन के संस्थापक


सब कुछ निश्चित है, आदि और अन्त, उन शक्तियों द्वारा जिन पर हमारा नियन्त्रण नहीं है। यह कीट के लिए भी निश्चित है और तारे के लिए भी। मानव, वनस्पतियाँ या ब्रह्माण्ड की राख, हम सब एक रहस्यमय धुन पर नृत्य कर रहे हैं, जो एक अदृश्य वादक द्वारा कहीं दूर से बजायी जा रही है। अल्बर्ट आइंस्टाइऩ (१८७९-१९५५)


एक वृक्ष की पहचान इसके फलों से होती है। ज़ुलु कहावत


जीवन प्राकृतिक और क्षणिक घटनाओं की श्रृंखला है। उसका प्रतिरोध मत करो; जो केवल दुःख देता है। वास्तविकता को वास्तविकता रहने दो। चीज़ों को प्राकृतिक रूप से उस दिशा में प्रवाहित होने दो जिसमें वे जाना चाहती हैं। लाओ जू (४ या ६सदी ईसा पूर्व), ताओ ते चिंग के लेखक


हम कभी भी बहादुर और धैर्यवान होना न सीखते यदि विश्व में केवल खुशी होती। हेलेन केलर (१८८०-१९६८), अमेरिकी लेखिका


भक्त वह है जो अपने हृदय में प्रेम और अनासक्ति दोनों उसी प्रकार मिला लेता है जैसे गंगा और यमुना की धाराएँ मिलती हैं। सन्त कबीर (१४४०-१५१८)


अपने भीतर के जगत को जानो। स्वयं को जगत में मत ढूँढो, इसके लिए अपने भ्रम से मुक्त होना होगा। लक्सर (थीब्स) के एक प्राचीन मिस्र के मन्दिर पर उत्कीर्णित


आप दुनिया कुछ छोटे वर्षों के लिए रहते हैं जिसे आप कायाग्रहण कहते हैं, उसके बाद आप अपने शरीर से किसी फटे हुए कपड़े की भाँति मुक्त हो जाते हैं और आत्मा में अपने असली निवास पर आराम करने के लिए चले जाते हैं। चीफ़ व्हाइट ईगल (१८२५-१९१४), पोंका कबीले के स्थानीय नेता


जब पूरी दुनिया ख़ामोश हो, तो एक आवाज़ भी ताक़तवर होती है। मलाला यूसुफ़ज़ई पाकिस्तानी कार्यकर्ता और नोबेल पुरस्कार विजेता


सुनो जब मैं तुम्हें मुक्ति का मार्ग बता रहा हूँ: सत्य, धैर्य, शाति और आत्मानुशासन; शाश्वत और नश्वर  के बीच अन्तर; ईश्वर के विनम्र सेवकों के प्रति समर्पण; सुबह जल्दी जागना और सूर्योदय के पूर्व स्नान; पवित्र पंचाक्षर को दुहराते रहना; गुरु के चरणों की वन्दना करना; पवित्र भस्म लगाना; भूख लगने पर ही भोजन करना; पूरे मन से प्रार्थना करना; शास्त्रों का अध्ययन करना; दूसरों को भी स्वयं की तरह देखना; सभी सम्पत्ति और समृद्धि से अपना नाता तोड़ लेना; उचित शिष्टता से बोलना; बहस से बचना; परिवार और जाति के सभी विचार मन से निकाल देना; छोटी से छोटी पसन्द या नापसन्द से हमेशा मुक्त रहना; ईश्वर के शाश्वत चरणों में रहना। शिव योगस्वामी (१८७२-१९६४), श्रीलंकाई साधु के रूप में प्रसिद्ध


आपका दर्द आपकी उस खोल को तोड़ रहा है जिसने आपकी समझ को बाँध रखा है। खलील ज़िब्रान (१८८३-१९३१),  लेबनानी-अमेरिकी लेखक, कवि और कलाकार


यदि आप अभी आध्यात्मिक प्रयास करते हैं तो भविष्य में हर चीज़ सुधर जायेगी। श्री युक्तेश्वर गिरि (१८५५-१९३६) 


सत्य, सोने की तरह इसके बढ़ने से हासिल नहीं होता, बल्कि उन चीज़ों को धोकर हटा देने से प्राप्त होता है जो सोना नहीं है। लिओ टॉलस्टॉय (१८२८-१९१०),  रूसी लेखक


मैं यह महसूस करने के बाद शाकाहारी हो गया कि पशु भी हमारी तरह भय, ठंड, भूख और उदासी को महसूस करते हैं। सीज़र शावेज़ (१९२७-१९९३), अमेरिकी नागरिक अधिकार कार्यकर्ता


तुम्हारा उद्देश्य प्रेम की तलाश करना नहीं है, बल्कि आपका लक्ष्य प्रमुख रूप से अपने भीतर के सभी बाधाओं को तलाश करना है जो कि तुमने इसके विरुद्ध बना रखी हैं। रुमी (१२०७-१२७३), सूफ़ी सन्त और कवि


हमारे ध्यान का अभ्यास महत्वपूर्ण है। अगर यह हमारी जीवन की सात प्राथमिकताओं में से छठवां हो तो यह काम नहीं आता है। प्रगति करने के लिए इसे सर्वोच्च प्राथमिकता होना चाहिए। सतगुरु बोधिनाथ वेयलानस्वामी, हिन्दुइज़्म टुडे के प्रकाशक


हिन्दू धर्म हमें सहनशक्ति प्रदान करता है जिससे में पूजा के विभिन्न चरणों, भक्ति के अलग-अलग और व्यक्तिगत अभिव्यक्तियाँ और यहाँ तक कि इस पृथ्वी पर हमारे जीवन का मार्गदर्शन करने के लिए अलग-अलग ईश्वर भी प्रदान करता है। सदगुरु शिवाय सुब्रमुनियास्वामी (१९२७-२००१), हिन्दुइज़्म टुडे के संस्थापक


आधारभूत जानकारी

हिन्दू बिन्दी क्यों लगाते हैं?

shutterstock

माथे पर लगायी जाने वाला बिन्दु धार्मिक प्रतीक होता है। यह दैवीय दृष्टि का प्रतिनिधित्व करता है और दर्शाता है कि व्यक्ति हिन्दू है। इसे हिन्दी में बिन्दी, संस्कृत में बिन्दु और तमिल में पोट्टु कहते हैं। पुराने दिनों में, सभी हिन्दू पुरुष और महिलाएँ इन प्रतीकों को पहनते थे, और वे दोनों कान में बालियाँ भी पहनते थे। आज महिलाएँ बिन्दी लगाने के प्रति सर्वाधिक ईमानदार हैं।

बिन्दु का एक गूढ़ अर्थ है। यह आध्यात्मिक दृष्टि वाले तीसरे नेत्र को प्रदर्शित करता है जिसे भौतिक आँखें नहीं देख सकतीं। हिन्दू अपनी आन्तरिक दृष्टि को योग के माध्यम से जागृत करने की तलाश करते हैं। माथे की बिन्दु एक अनुस्मारक है जो इस आध्यात्मिक दृष्टि को प्रयोग और परिष्कृत करने और जीवन के आन्तरिक कार्य को बेहतर ढंग से समझने की याद दिलाती है—चीज़ों को भौतिक ही नहीं, बल्कि “मन का आँख” से भी देखने की। बिन्दी लाल चूर्ण (जिसे सिन्दूर कहते हैं, जो पारम्परिक रूप से हल्दी के चूर्ण और ताज़े नींबू के रस से बनाया जाता है), चन्दन के लेप या सौन्दर्य प्रसाधन से बनायी जाती है।

साधारण बिन्दु से अतिरिक्त, माथे पर कई तरह के निशान होते हैं, जिन्हें संस्कृत में तिलक कहते हैं। प्रत्येक चिन्ह हमारे विशाल धर्म के किसी विशेष सम्प्रदाय या पंथ को दर्शाता है। हमारे चार प्रमुख सम्प्रदाय हैं: शैव, वैष्णव, शाक्त और स्मार्त। वैष्णव हिन्दू, उदाहरण के लिए, श्वेत लेप से बना वी-आकार का तिलक लगाते हैं। बड़े तिलक हिन्दुओं द्वारा मुख्यतः धार्मिक अवसरों पर लगाये जाते हैं, हालांकि बहुत से लोग आम जनता के बीच भी साधारण बिन्दी लगाते हैं, जो दर्शाती हैं कि हिन्दू हैं। इन चिन्हों के द्वारा, हम जानते हैं कि कोई व्यक्ति किस चीज़ में विश्वास करता है, और इसलिए हम जानते हैं कि बातचीत कैसे शुरु करनी है।

किसी विशेष धर्म के पुरुष और महिलाएँ एक-दूसरे से प्रायः एक-दूसरे की पहचान करतना चाहते हैं ऐसा प्रायः धार्मिक प्रतीकों को पहन कर करते हैं। आमतौर पर यह उनके मन्दिरों, चर्च या उपासनागृहों में लगाया जाता है। इसाई माला में एक क्रॉस पहनते हैं। यहूदी लड़के छोटे चमड़े की डिब्बियाँ पहनते हैं जिनमें आधात्मिक छंद लिखे होते हैं, और एक गोल टोपी पहनते हैं जिसे यारमुल्का कहते हैं। सिख अपने बालों पर पगड़ी लपेटते हैं। बहुत से देशों में, मुस्लिम और औरतें अपने सिर को एक दुपट्टे से ढँकती हैं, जिसे हिज़ाब कहते हैं।

अमेरिका, कनाडा, यूरोप या विश्व के किसी भी देश में माथे पर बिन्दी लगाने में शर्म मत कीजिए। इसे गर्व से पहनिए। माथे की बिन्दी आपको अन्य सभी लोगों से एक बहुत विशेष व्यक्ति के तौर पर अलग करते हैं, एक हिन्दू के रूप में, जो शाश्वत सत्य को जानता है। तुम्हें कभी भी ग़लती से दूसरे धर्म का नहीं समझा जायेगा। अगर लोग आपसे बिन्दु का अर्थ पूछतें हैं तो डरिये मत। अब आपके पास अच्छा उत्तर देने के लिए बहुत सी जानकारी है, जो इसके बाद सम्भवतः आपके सम्मानित धर्म के बारे में बहुत से प्रश्नों की तरफ़ ले जायेगा।

सद्गुरु शिवाय सुब्रमण्यस्वामी

की शिक्षाओं से ली गयी