Let Us Be Hindus, Again

आइये अपने धर्म को उन निजी अनुभवों से परिभाषित करें जो हमें आध्यात्मिक कार्यों के दौरान होते हैं

अमर शाह

दिसम्बर १९५१ में, भारत के पुणे में चिन्मयानन्द नाम के एक युवा सन्यासिन ने सार्वजनिक तौर पर एक साहसपूर्ण अवलोकन की घोषणा की: हाल की शताब्दियों में हिन्दू धर्म का जिस रूप में किया जाता है, वह बहुत अधिक गिरा हुआ है। “कोई संशय नहीं,” उसने कहा, “कि भारत में, हिन्दू धर्म का अर्थ पवित्र अन्धविश्वासों के ढेर, या पहनावे, खाना बनाने, खाने, बात करने आदि के एक निश्चित तरीक़े से अधिक कुछ नहीं रह गया है।” उसने अपने श्रोताओं से हमारे प्राचीन और पवित्र धर्म द्वारा बताये गये मूल्यों को यथासम्भव नियमित रूप से पढ़ने, समझने और फ़िर पालन करने का आह्वान किया। “आइये फ़िर से हिन्दू हो जायें!” उसने प्रेरित किया।

उत्सुकता और सूचना युग से प्रेरित होकर, हिन्दू ज्ञान दुनिया भर में फैला, जो आत्मविकास के अपने गहन रूपों तक बढ़ता गया। आज, सोशल मीडिया ऐप्लिकेशन भगवद्गीता के ध्वनिसन्देशों, साझा करने योग्य सूक्तियों और हिन्दू कार्यकर्ताओं की पोस्ट से भरे हुए हैं। हम अपने न्यूज़फ़ीड की बहुत खतरनाक गति की छान-बीन करते हैं, और उंगलियों को कुछ टैप करके “लाइक”, “शेयर” और “सब्सक्राइब” करना ज़ारी रखते हैं। हालांकि, कीबोर्ड और मंचों के पीछे, आपके घर के सबसे सुदूर भाग में बना हुआ, मैं बहुत सी वेदियों को देखा है जिनका छुआ तक नहीं जाता और उन पर धूल जमती रहती है। हम में से कितने वास्तव में उसका पालन करते हैं जो हम पोस्ट करते हैं? अब ७० साल बाद, चिन्मयानन्द का “आइये हिन्दू हो जायें” का नारा एक बार फ़िर गूँजना चाहिए।

मैं मानता हूँ कि हिन्दू होने की दो मूलभूत शर्तें हैं। पहला, ज्ञान के तर्कसंगत स्रोत के रूप में वेदों का सम्मान, और दूसरा, दैनिक साधना (आध्यात्मिक अभ्यास) के माध्यम से आत्म-सुधार और मुक्ति के वैदिक लक्ष्य को सक्रिय रूप से मानना। इनको मस्तिष्क में रखकर, मैं पाठक से एक प्रश्न पूछने का साहस करता हूँ: “क्या आप वास्तव में हिन्दू धर्म का पालन करते हैं?” बिना व्यक्तिगत अभ्यास के, यह साझा ज्ञान–वैश्विक होने पर भी–हमारे मस्तिष्क के अभिलेखागार में यूट्यूब की छोटी क्लिपों, खेल की सुर्खियों और प्रसिद्ध व्यक्तियों के मीम के साथ-साथ रहने वाले शुष्क दर्शन से अधिक कुछ नहीं होता। इस अर्थ में, हमारे साथ “हिन्दू” होने को बस धार्मिक सामग्री साझा करने, एक सामान्य उत्सव मनाने, तस्वीरों वाली छुट्टियाँ मनाने और ऑनलाइन सक्रियता के रूप में पुनर्परिभाषित करने का खतरा रहता है। यदि ज्ञान को आत्म-विकास के कार्य और दैवत्व में न लगाया जाये तो इसका प्रयोग क्या है? इसका क्या प्रयोग है, यदि हम केवल नाम के हिन्दू हों?

हम पालन करने वाले हिन्दू बनें! हमारे असंख्य व्यक्तित्वों के अनुरूप कई गुना और बहुआयामी साधनाएँ हमारे लिए उपलब्ध हैं: पूजा (भौतिक और मानसिक पूजा), जप (मन्त्रों को दुहराना), ध्यान और स्वाध्याय कुछ ऐसे हैं जो मस्तिष्क में आते हैं। जैसा कि मेरे गुरु ने बहुत ठीक से बताया है–हिन्दू साधना का आव्यूह किसी “भोजन कक्ष की तरह है”! जैसे कि दक्षिण भारतीय प्राकृतिक रूप से ताजी इडली की ओर आकर्षित होंगे, उत्तरी पनीर-युक्त ग्रेवी की ओर देखेंगे, हम सभी की अलग-अलग साधनाओं से प्राकृतिक सुसंगतता होती है। ऐसी विविधता उपलब्ध होने पर, हम सभी को कम-से-कम एक अभ्यास को चुनना चाहिए, स्वयं को तीक्ष्ण करना चाहिए, और आत्म-अनुभव की गहराइयों से बोलना चाहिए। साधना के बिना, हमारी ऑनलाइन पक्षधरता, दार्शनिक बहसें और सामग्री का साझा करने तुलनात्मक रूप से अप्रभावी या यहाँ तक कि हानिकारक होगा।

मुझे स्पष्ट करने दें, फ़िर भी, कि हिन्दू होने के ऐसे वर्तमान प्रयास पूरी तरह बेकार नहीं है। वास्तव में, हमारे युवा लोगों को शक्तिशाली बनाने का भाव (भावना/नीयत) बिल्कुल न्यायसंगरत और अच्छी अच्छी भावना से भरा हुआ है! ये प्रयास सांस्कृतिक और आध्यात्मिक भलाई, समुदाय की समझ, और पूर्वाग्रह या उत्पीड़न के भय के बिना हिन्दू होने की क्षमता की आवश्यकता की ओर इशारा करते हैं। हमारे कॉलेजों और विश्वविद्यालयों से शुरु करके, हमें सत्संग (आध्यात्मिक चर्चा) की जगहें बनानी चाहिए जहाँ औपचारिक रूप से प्रशिक्षित शिक्षकों को निर्देशन में साधना का अभ्यास किया जा सके और अनुभवों को साझा किया जा सके। नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी में मेरा पद शास्त्रों का अध्ययन और साधना का अभ्यास करने के लिए उमड़ने वाले छात्रों को अभिव्यक्त करता है। भविष्य में, मैं इस बारे में अंतर्दृष्टि साझा करने की योजना बना रहा हूं कि हम इस तरह के समुदाय को कैसे बढ़ावा दे रहे हैं क्योंकि मैंने विश्वविद्यालय के पहले हिंदू कुलगुरु के रूप में कदम रखा है।


अमर शाह, शिकागो के मूल निवासी हैं और उऩ्होंने वेदान्त में मठ का प्रशिक्षण लिया है। वह नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी में सबसे पहले हिन्दू कुलगुरु हैं। amarshah.com, या Instagram @therealamarshah देखें।