भारत के अद्भुत मन्दिर और धार्मिक स्थल

Unusual Temples & Shrines of India

एक पुजारी हीरापुर कस्बे में चौसठ योगिनी मन्दिर में एक पूजा में शामिल हो रहा है। यह ६४ योगिनियों के सम्मान में बने मन्दिरों में से एक है जिन्हें स्वयं में शक्ति का स्वरूप कहा जाता है। Shutterstock

एक विशेष सुविधा

अनुराधा गोयल

प्रत्येक हिन्दू मन्दिर इसके देवताओं का घर होता है, जहाँ वे उसी प्रकार निवास करते हैं जैसे हम अपने घर में रहते हैं, एक निश्चित दिनचर्या का पालन करते हैं और साल में विशेष अवसरों पर उत्सव मनाते हैं। मन्दिर स्वयं में देवता का एक रूप होते हैं, जिन्हें इस प्रकार बनाया जाता है कि हमें सम्पूर्णता में और सूक्ष्म स्तर पर उनकी उपस्थिति का आभास होता है। ऐतिहासिक रूप से, एक सार्वजनिक स्थान के रूप में जो सबका होता है, वे समाज को एक साथ रखने वाली एक तन्त्रिका प्रणाली हैं। ये पवित्र कमरे और उनका पारितन्त्र मानव सभ्यता के साथ-साथ विकसित हुआ है। मन्दिरों की संरचना की विविधता, जो स्वयं में ही एक विज्ञान और कला है, सौन्दर्य और शानदार वास्तुकला और अभियान्त्रिका के साथ कहानी सुनाने को आपस में मिला देता है। मन्दिर का सार उसमें निवास करने वाले देवता और उनकी देखभाल करने वाले, पूजा करने वाले और देवता के साथ अपने दैनिक खुशियों और दुखों के साझा करने वाले भक्तों की बीच का सम्बन्ध है। यहाँ पर देवता और भक्तों के बीच सबसे अन्तरंग संवाद होता है। हमें भारत के दक्षिणी हिस्से में विशाल पत्थरों वाले मन्दिर और उत्तर भारत में उनके अवशेष मिलते हैं, लेकिन कुछ अद्भुत, साधारण मन्दिर आसानी से छूट जाते हैं जो पूरी भारत भूमि में बिखरे हुए हैं। उनमें से प्रत्येक स्थल की एक अलग कहानी है, जो दर्शाता है कि कैसे विशेष घटनाक्रमों और परिस्थितियों से मन्दिर की संस्कृति विकसित हो सकती है। वे हमें उस गहन आस्था के बारे में भी बताते हैं जो हिन्दुओं को अपने देवताओं में है, उनके प्रति एक बालक का दृष्टिकोण रखना जो अपने माता-पिता और मित्रों के पास जाता है, अपने प्रेम, आवश्यकताओं और सबसे गहन रहस्यों को साझा रखता है। मेरे साथ भारत के कुछ अद्भुत और असाधारण मन्दिरों की यात्रा पर चलिए। इनमें से कुछ आपको आश्चर्य में डाल देंगे और आपकी इस अवधारणा को विस्तार दे देंगे कि एक मन्दिर कैसा हो सकता है।

कर्नाटक

शल्मला नदी के तल पर

Sivalingas carved into the rocks of the Shalmala riverbed ever receive abhishekam as the waters flow by. Anuradha Goyal

शल्मला नदी के तल पर चट्टानों पर तराशे गये शिवलिंगों का हमेशा अभिषेक होता रहता हैं क्योंकि पानी बहता रहता है। अनुराधा गोयल

सोंडा गाँव में, जो दक्षिण भारतीय राज्य कर्नाटक के सिरसी कस्बे से १०.५ मील दूर है, शल्मना नहीं चुपचाप घने हरे-भरे जंगलों से होकर बहती है। नदी पर पहुँचने पर, आपको चारो तरफ़ नक्काशी किये हुए ग्रेनाइट पत्थर दिखायी देंगे, लेकिन पानी का स्तर नीचे होने पर आप जो नदी में देखते हैं, उसके लिए आप किसी भी तरह से तैयार नहीं होते हैं। नदी के पूरे तल में सभी पत्थरों पर बारीकी से शिवलिंगों और नन्दी बैल को, जो शिव का वाहन है, साथ ही कुछ नागों, या साँपों की मूर्तियों को तराशा गया है। कुछ बड़ी शिलाओं को रचनात्मक तरीके से बड़े बैल की तरह दिखने लायक तराशा गया है। कुछ नक्काशियाँ अधूरी हैं। कई बार शिवलिंग बना दिये गये हैं लेकिन नन्दी को बस पत्थर पर चिन्हित भर किया गया है; कुछ मामलों में लिंग आधा बना है।

शिलाओं के आधार पर देखने पर, आपको महसूस होता है कि वे नदी के तल के भाग हैं, इसलिए उन्हें उनकी जगह पर ही तराशा गया होगा। चूंकि पत्थर वर्ष के अधिकांश समय नदी में डूबे रहते हैं, नक्काशी ज़रूर सूखे वाली गर्मी के महीनों में की गयी है जब उन तक पहुँचा जा सकता है। शिव और उनके वाहन को गढ़ने के लिए नदी के बीच में अपनी हथौड़ी और छेनी के साथ बैठे मूर्तिकारों की कल्पना कीजिये।

किंवदन्ती है कि सोंडा के राजा स्वादि अकसप्पा नायका के कोई सन्तान नहीं थी। सन्तान प्राप्ति के लिए १,००८ शिवलिंगों का निर्माण करने की सलाह पाने पर, उन्होंने उपलब्ध हर पत्थरों पर शिवलिंग तराश दिया। उन्हें वास्तव में सन्तान की प्राप्ति हुई, इसलिए इन्हें इच्छा पूर्ति के चिन्ह के रूप में देखा जा सकता है। इस नदी के तल का एक सहोदर कम्बोडिया में भी है, जहाँ सीएम रीप नदी पर हज़ारों शिवलिंगों को तराशा गया है। परम्पराओं के पास बड़ी दूरियाँ तय करने के रहस्यमय तरीक़े होते हैं।

हैदराबाद

वीज़ा देने वाले चिलकुर बालाजी

Outside the entrance of the small Chilkur Balaji temple, with the chariot shed to the left. Anuradha Goyal

छोटे चिलकुर बालाजी मन्दिर के बाहर, बायीं तरफ़ रथशाला है। अनुराधा गोयल

A woman holds up a punch card from the Chilkur Balaji temple, used to count circumambulations around the temple as thanks for granting successful visas. Anuradha Goyal

एक महिला हाथ में चिलकुर बालाजी मन्दिर का पंचकार्ड पकड़े हुए है, जिसका प्रयोग मन्दिर की परिक्रमा की गणना के लिए किया जाता है जो सफ़ल वीज़ा प्रदान करने के लिए आभार के रूप में किया जाता है। अनुराधा गोयल

हैदराबाद के बाहरी हिस्से में एक नीली दीवारों और रंगीन गोपुरम वाला एक छोटा मन्दिर है। बाहर की दुकानें फूलों और मन्दिर में चढ़ाये जाने वाले अन्य चढ़ावों के साथ आपको एक पंचकार्ड और पेन देती हैं। जब तक कि आप यहाँ की परम्परा नहीं जानते, यह एक पहेली है। अन्दर आप सभी को छोटे मन्दिर के चारों तरफ़ परिक्रमा करते समय कार्ड और पेन लिया हुआ देखेंगे। कार्ड में १०८ संख्यावार बॉक्स होते हैं, जो परिक्रमाओं के अच्छे से गणना करने के लिए होते हैं। प्रत्येक चक्कर पूरा करने पर, आप देवता के सम्मुख झुकते हैं और कार्ड को पंच करते हैं, फ़िर अगला चक्कर शुरु करते हैं।

इस प्रकार भक्त देवता, चिलकुर बालाजी को अपने सपनों के गंतव्य पर शिक्षा, कार्य या अवकाश के लिए यात्रा करने हेतु—वीजा प्राप्त करने पर धन्यवाद देते हैं। ऐसा लगता है कि १९८० के दशक में, वे लोग जो बाहर जाने की इच्छा रखते थे, ज़्यादातर पढ़ाई के लिए, यहाँ शीघ्र वीज़ा प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते थे, और उनकी प्रार्थना सुन ली जाती थी। यह चलन चल निकला, और मन्दिर वीज़ा मन्दिर के नाम से जाना जाने लगा।

Acquiring visas can be a challenge for anyone, a little divine encouragement couldn’t hurt. Shutterstock

वीज़ा प्राप्त करना किसी के लिए भी चुनौती हो सकता है, एक छोटा दैवीय प्रोत्साहन आहत नहीं करता। Shutterstock

ठीक-ठीक कहें, तो चिलकुर का अर्थ है छोटा, और मन्दिर बालाजी को समर्पित है। इतिहास बताता है कि किस तरह से एक भक्त जो खराब स्वास्थ्य के कारण शानदार तिरुपति बालाजी मन्दिर की वार्षिक यात्रा कर पाता था, उसने यहाँ बालाजी की मूर्ति की खोज की। बालाजी एक दृश्य में उसकी इच्छा को पूर्ण करने के लिए प्रकट हुए, और उनके प्राकट्य की निशानी के तौर पर मन्दिर बनाया गया। समय के साथ, मनोकामना करते हुए मन्दिर के ग्यारह चक्कर लगाने की प्रथा विकसित हुई। जब आपकी इच्छा पूरी हो जाये, तो आप आकर १०८ परिक्रमा करते हैं। तो वे जो पंच कार्ड लेकर परिक्रमा कर रहे हैं, वे वास्तव में मनोकामना पूर्ण करने के लिए ईश्वर को धन्यवाद दे रहे हैं।

आमतौर पर, इस मन्दि में कोई हुण्डी (दानपात्र) नहीं होता है। यह दान नहीं लेता है। प्रार्थना करते समय आँख खुली रखने की सलाह दी जाती है, ताकि बालाजी से आँखों-आँखों में बात की जा सके। सम्भवतः इस मन्दिर का केन्द्र मनोकामना की पूर्ति है, एक पुजारी ने मुझे बताया कि यह युवाओं का मन्दिर है, जहाँ बच्चे अपने माँ-बाप को लेकर आते हैं न कि इसका उल्टा होता है।

उत्तराखण्ड

न्याय देवता: न्याय के ईश्वर

The bell-embellished entryway to the temple. Anuradha Goyal

घंटियों से सजा मन्दिर का प्रवेश द्वार। अनुराधा गोयल

उत्तराखण्ड की कुमाऊँ पहाड़ियों में, लम्बे देवदार के वृक्षों से घिरा हुआ, गोलू देवता का मन्दिर है, जो कि इस क्षेत्र के प्रमुख देवता हैं। मन्दिर में घुसने पर, आप हजारों पीतल की घण्टियों से घिर जाते हैं। छोटी, बड़ी, विशाल और बहुत बड़ी पीतल की घण्टियाँ हर तरफ़ लटकी हुई है, उनमें से ज़्यादातर लाल कपड़े से बँधी हुई हैं जिन्हें चुनरी कहते हैं।

गर्भगृह के चारो तरफ़ गलियारे की दीवारों से न्यायिक स्टाम्प पेपर और हाथ से लिखे पत्रों के ढेर लटक रहे हैं। यहाँ के देवता न्याय देवता, न्याय के ईश्वर हैं। जब क़ानूनी लड़ाईयाँ न्यायालय में नहीं सुलझती हैं, और लोगों को मनुष्यों की दुनिया में न्याय नहीं मिलता, तो वे विवादों और असहमतियों को सुलझाने के लिए अपनी याचिका गोलू देवता के सामने रखते हैं। याचिकाकर्ताओं को दृढ़ विश्वास है कि वे अपने तरीक़े से उन्हें न्याय प्रदान करेंगे।

इनमें से कुछ पत्रों को पढ़ने, आप भक्तों के ईश्वर के साथ गहरे जुड़ाव को समझ जाते हैं। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति जिसके परिवार के सदस्य बहुत बीमार हैं, गोलू देवता से दैवीय हस्तक्षेप की प्रार्थना करते हुए लिखता है कि डॉक्टरों ने अपना सर्वोत्तम प्रयास किया, लेकिन फ़िर भी डॉक्टर इंसान हैं। छात्र उनके साथ अपने स्वप्न साझा करते हैं, प्रतियोगी परीक्षाओं को हल करने के लिए सहायता माँगते हैं, और अपनी पूरी ज़िन्दगी सही मार्ग पर बने रहने के लिए मार्गदर्शन के लिए अनुरोध करते हैं।

Handwritten letters line the walls of the Golu Devta temple’s interior. Anuradha Goyal

गोलू देवता के मन्दिर के अन्दर की दीवारों पर हस्तलिखित पत्रों की पंक्ति। अनुराधा गोयल

गोलू देवता को गौर भैरव (शिव) का अवतार माना जाता है, और उनकी पूरे क्षेत्र में पूजा की जाती है। किंवदन्तियाँ उनको इस क्षेत्र में शासन करने वाली दो प्रमुख राजवंशों से जोड़ती हैं—चन्द और कत्यूरी। ऐसा कहा जाता है कि जब वह पैदा हुए, उनकी सौतेली माँओं ने उनकी जगह एक पत्थर रख दिया और उन्हें नदी के पास छोड़ दिया, जहाँ एक मछुआरे ने उनको बचाया और उनका पालन –पोषण किया। जब वो एक बच्चे थे, तो वे एक लकड़ी का घोड़ा लेकर झील के पास गये, जहाँ उनकी सौतेली माँएँ स्नान कर रही थी, और उन्होंने घोड़े से पानी पीने के कहा। जब उनकी सौतेली माँएँ हँसने लगीं, तो उन्होंने उन्हें बताया कि यदि कोई औरत पत्थर को जन्म दे सकती है , तो एक लकड़ी का घोड़ा पानी क्यों नहीं पी सकता है? उनके पिता ने यह सुना, वह समझ गये कि क्या हुआ था और उन्होंने इन्हें राजा बना दिया। वह अपने शासन के दौरान न्याय करने के लिए प्रसिद्ध थे और लोग उनतक इस उद्देश्य से आते रहते थे। लकड़ी का घोड़ा उनकी सवारी बना; मन्दिर में, उन्हें सफ़ेद लकड़ी के घोड़े पर सवारी करते हुए देखा जा सकता है।

जहाँ तक घंटियों का सवाल है, भक्त अपनी मनोकामना पूरी होने पर एक घंटी बाँधते हैं: ये सभी घंटियाँ पूरी हुई मनोकामनाओं को दर्शाती हैं।

वाराणसी

छोटे शिवलिंगों की दुनिया

काशी, या वाराणसी, भारत का, कुछ का मानना है कि पूरी दुनिया का आध्यात्मिक केन्द्र है। यह शिव की नगरी है; जहाँ शिवलिंग और छोटे शिव मन्दिर लगभग सभी नुक्कड़ और कोनों पर मिल जाते हैं। हिन्दू जब मृत्यु के निकट आते हैं तो मृत्यु को आमने-सामने देखने के लिए मणिकर्णिका घाट और हरिश्चन्द्र घाट आते हैं।

One of many rooms at the Jangamwadi Math filled with a thousand and eight Sivalingas. Anuradha Goyal

जंगमवाड़ी मठ के कई कमरों में से एक जिसमें एक हज़ार आठ शिवलिंग हैं। अनुराधा गोयल

जंगमवाड़ी के एक प्राचीन मठ में, जो प्रसिद्ध दशाश्वमेध घाट से बहुत दूर नहीं है, लाखों छोटे शिवलिंग मिलते हैं। यह मठ वीर शैव या लिंगायत समुदाय का है जो प्रमुख रूप से कर्नाटक और महाराष्ट्र राज्यों में रहती है, जैसा कि यह कन्नड़ और मराठी  साइनबोर्डों से भी पता चलता है। यह पन्थ केवल शिवलिंग की पूजा में विश्वास करता है और अन्य किसी चीज़ में नहीं। ईश्वर के जीवेतर चिन्ह की यह यात्रा जन्म के पहले ही शुरु हो जाती है, जब शिशु की रक्षा के लिए सम्भावित माँ के पेट पर शिवलिंग को बाँधा जाता है। जन्म के ठीक बाद, उसी शिवलिंग को एक धागे से बच्चे के गले में लटका दिया जाता है।

जंगमवाड़ी मठ के कमरों में छोटे शिवलिंगों से भरे हुए कमरे हैं जिन्हें सफ़ाई के साथ पंक्ति में रखा गया है, जो आम तौर पर एक बड़े शिवलिंग के चारो ओर होते हैं। मुख्य मन्दिर के शिवलिंग चारो तरफ़ हज़ारों हैं। ये श्रावण के प्रसिद्ध माह में श्रद्धालुओं द्वारा चढ़ाये जाते हैं, जो मानसून के महीनों के दौरान पड़ता है और पूरे भारत में शिव की पूजा के लिए सुप्रसिद्ध है। भक्त अपने से दूर जाने वालों, विशेष तौर पर उनके लिए जो अप्राकृतिक मृत्यु मरते हैं, और मृत पूर्वजों के लिए आम परम्परा के रूप में के लिए शिवलिंग चढ़ाते हैं। मठ में आप जहाँ कहीं भी खड़े होते हैं, आपको इतने शिवलिंग दिखते हैं कि आप अपने चारो तरफ़ शिव की उपस्थिति से प्रभावित हो जाते हैं। कोई भी यहाँ शिवलिंगों की सही-सही गणना करने का प्रयत्न नहीं करता, क्योंकि वे बहुत अधिक हैं और बहुत से लगातार आते रहते हैं।

छत्तीसगढ़

ताला के रुद्र शिव

ताला के ७वीं-८वीं सदी के अवशेष शिवनाथ और मनियारी नदी के तट पर भारत के मध्य-पूर्व में छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में स्थित हैं। यह स्थान देवरानी जेठानी मन्दिर के लिए विख्यात है, जो कि इस बहुत खराब हालत में भी सुन्दर दिखता है। २०वीं सदी की खुदाई में यहाँ एक अद्भुत मूर्ति सामने आयी—जो किसी देवता की लाल बलुआ पत्थर की खड़ी स्थिति में दो मीटर लम्बी मूर्ति है। अद्भुत रूप से, शरीर के विभिन्न अंगों पर सभी सम्भव पशुओं और साँपों को उकेरा गया है। यह संयुक्त कला का एक शानदार उदाहरण है, जहाँ के बड़े चित्र को सम्बन्धित या असम्बन्धित छोटे वस्तुओं के पूर्ण चित्रों का प्रयोग करके निर्मित किया जाता है। सिर पर साँपों की एक कुण्डली पहनी गयी है, नाक गिरगिट और बिच्छू का मिश्रण है, कान मोर के रूप में है, बरौनियाँ मेंढक की तरह हैं, कन्धे मगरमच्छ जैसे, उंगलियाँ पाँच फन वाले साँपों जैसी, छातियाँ मनुष्यों जैसी, पेट बर्तन जैसा, घुटनों पर शेर तथा बारीकियों में अन्य बहुत सी जीव हैं।

A two-meter tall, sandstone murti at the Devrani Jethani temple complex, uniquely carved with many different animals. Anuradha Goyal

देवरानी-जेठानी मन्दिर परिसर में एक दो-मीटर लम्बी बलुआ पत्थर की मूर्ति, जिस पर अद्भुत ढंग से कई जन्तुओं को तराशा गया है। अनुराधा गोयल

Ruins in the Devrani Jethani temple area. Anuradha Goyal

देवरानी-जेठानी मन्दिर क्षेत्र में अवशेष। अनुराधा गोयल

साँप मूर्ति पर ऊपर से नीचे तक छाये हुए हैं। बहुत सी राशियों के भी चिन्ह हैं। दुर्भाग्य से, मूर्ति के कुछ भाग हिस्से टूट गये हैं, और हमसे कुछ महत्वपूर्ण विवरण छूट गया है। स्थानीय स्तर पर इसे रुद्र शिव कहते हैं, और यह शिव के पशुपतिनाथ रूप को दर्शाने वाली हो सकती है जहाँ उन्हें पशुओं (“जानवरों” या “जीवों”) के रक्षक के रूप में देखा जाता है।

रुद्र शिव, जो छत्तीसगढ़ की प्रमुख मूर्तिकला है, उसकी प्रतिकृति हम संग्रहालय में बनायी गयी है। अभी तक, कोई भी ज्ञात मूर्ति इसके समान नहीं है। इसके अनोखेपन का मूल उस स्थान में हो सकता है जहाँ यह पायी गयी थी। वर्तमान में इसे इस स्थान पर ताले में रखा गया है, हालांकि आप इसे बाहर से देख सकते हैं। हम नहीं जानते हैं कि मूर्ति क्या कहने का प्रयत्न कर रही थी, न ही इसे तैयार करवाने वाले का उद्देश्य जानते हैं जिसने इस अनोखी मूर्ति को निर्मित करवाया।

ओडिसा

चौसठ योगिनी मन्दिर

अन्य अद्भुत मूर्तियाँ योगिनी मन्दिरों में पायी जाती हैं, जिनमें से ज़्यादातार खो चुकी हैं। शुक्र है कि कुछ मध्य और पूर्वी भारत में बची हुई हैं। पूर्वी तट के निकट, ओडिशा में भुवनेश्वर शहर के पास हीरापुर नाम का एक छोटा गाँव है जिसका नाम एक रानी के नाम पर है। यहाँ छोटा लेकिन तुलनात्मक रूप से बेहतर ढंग से संरक्षित चौसठ योगिनी मन्दिरों में से एक स्थित है, जो ९वीं सदी का है। चौसठ का संस्कृत और हिन्दी में अर्थ है – चौसठ। ये मन्दिर ६४ योगिनियों के समूह को समर्पित हैं जो शिव और शक्ति की सेवा करती थीं। वे स्वयं में शक्ति का स्वरूप हैं।

The small Chausath Yogini temple in Hirapur. Anuradha Goyal

हीरापुर का छोटा चौसठ योगिनी मन्दिर। अनुराधा गोयल

A murti of Vinayaki, situated as one of the sixty-four yogini statues that line its walls. Anuradha Goyal

विनायकी की एक मूर्ति, चौसठ योगिनियों में से एक के रूप में स्थापित है जो इसकी दीवार से लगी है। अनुराधा गोयल

सबसे प्राचीन मन्दिर आयताकार हैं, जिनके गर्भगृह के ऊपर एक लम्बा शिखर, या ऊपरी ढाँचा है। इसके विपरीत, चौसठ योगिनी मन्दिरों की कोई छत नहीं है, वे आकाश में खुले हुए हैं, और तत्वों से मुक्त रूप में व्यवहार कर रहे हैं। वे वृत्ताकार हैं, जिनका प्रवेश द्वारा छोटा है। ऊपर से देखने पर, वे योनि अर्थात् महिला जननांग की तरह हैं, जो कि उर्वरता और सृजन का प्रतीक है। वे चक्र की तरह भी लगते हैं, जिन्हें योगिनी चक्र कहा जाता है। इस स्थान के मध्य में शिवलिंग की जगह है, जिसके चारो ओर मन्दिर की भीतरी दीवरों पर योगिनियों की मूर्तियाँ उकेरी गयी हैं। प्रत्येक योगिनी को उसके हाथ में स्थित आयुध, या प्रतीकों से, अथवा, जिस वाहन पर वह सवारी करती है या खड़ी होती है, उससे पहचाना जा सकता है। योगिनियों की मनोदशाएँ उदारता से लेकर उग्रता तक हैं।

किन्ही भी दो योगिनी मन्दिरों की दीवारों पर एक ही तरह की योगिनियाँ नहीं हैं। उदाहरण के लिए हीरापुर में विनायकी की दुर्लभ मूर्ति देखने को मिलती है, जो विनायक या गणेश की शक्ति है। प्रवेश के सामने चौसठ योगिनियों में से मुख्य महामाया स्थित हैं, जो एक मानव सिर के ऊपर खड़ी हैं। वस्त्रों और पुष्पों से सजाकर, उनकी रोज पूजा की जाती है। अन्य योगिनियों को भी फूल चढ़ाये जाते हैं। मध्य में एक चबूतरे पर भैरव की प्रतिमा है। यहाँ नवरात्रि के समय में शक्ति की पूजा के लिए सबसे प्रसिद्ध यज्ञ चण्डी पाठ किया जाता है। वृत्ताकार मन्दिर के बाहरी सिरे पर देवी दुर्गा की नौ बड़ी मूर्तियाँ हैं। महामाया पुष्करणी तालाब के बीच में एक छोटा चौकोर मन्दिर है, जैसा कि ओडिशा के सामान्य गाँव के तालाबों में होता है।

भारत की राजधानी नयी दिल्ली को एक समय योगिनीपुर, योगिनियों का शहर कहा जाता था। वहाँ केवल एक योगिनी मन्दिर आक्रमणों और समय के कहर से बच पाया है—योगमाया मन्दिर जो प्रसिद्ध क़ुतुब मीनार के पास स्थित है, जिसे २७ हिन्दू और जैन मन्दिरों को नष्ट करके बनाया गया था, जिनमें से कई योगिनी मन्दिर हो सकते हैं। दिल्ली के संसद भवन की इमारत एक वृत्ताकार आकृति में बनी है जो चौसठ योगिनी मन्दिर जैसा है।

गोवा

कृष्ण बनना

The mud festival at the Devaki Krishna Temple in Goa. Anuradha Goyal

गोवा में देवकी कृष्ण मन्दिर का मड फ़ेस्टिवल (कीचड़ उत्सव)। अनुराधा गोयल

गोवा में मार्सेल गाँव में देवकी कृष्ण मन्दिर स्थित है। देवकी के कृष्ण को मथुरा में जेल में जन्म देने के तत्काल बाद, उन्हें यमुना नदी पार करके गोकुल गाँव लाया गया, जहाँ वह यशोदा के साथ बड़े हुए, जो उनका पालन-पोषण करने वाली माँ थीं। देवकी और कृष्ण की भेंट उनके बचपन में कभी नहीं हुई। ऐसा कहा जाता है कि देवकी के अन्ततः कृष्ण को बड़े होने पर देखा, वह उन्हें एक बालक के रूप में अपनी बाँहों में लेने के लिए तरस गयीं—और कृष्ण ने अपनी माँ की इच्छा पूरी करने के लिए बालक का रूप धारण किया। मन्दिर में इस क्षण का उत्सव मनाया जाता है; इसकी मुख्य मूर्ति देवकी द्वारा शिशु कृष्ण को गोद में लिये हुए है। यह एकमात्र मन्दिर है जिसमें माँ और पुत्र दोनों को चित्रित किया गया है।

यह मन्दिर अद्भुत कीचड़ उत्सव (मड फ़ेस्टिवल) के लिए भी जाना जाता है, जो जुलाई में मानसून के शीर्ष मौसम में आयोजित किया जाता है, जब जमीन पर कीचड़ होता है। गाँव के पुरुष, बच्चे-बड़े सब, मन्दिर के सामने एकत्र होते हैं। स्थानीय किराने की दुकान का मालिक उनकी शरीर पर नारियल का तेल लगाता है, और बड़े उनके कान में रुई लगाते हैं जिससे पहचाना जा सके कि किसे तेल लगाया जा चुका है। फ़िर सभी “जय विट्ठल, हरि विट्ठल” का जयकारा लगाते हैं और मन्दिर में प्रवेश करते हैं। वे मन्दिर के बड़े तेल के कुण्ड में से थोड़ा सा तेल लेते हैं, इसे अपने शरीर पर लगाते हैं, और वापस निकलकर कीचड़ में खेल खेलते हैं—आँखों पर पट्टी बाँधने वाला खेल, रस्साकशी, कबड्डी और बहुत से खेल, जिसका अन्त शास्त्रार्थ से होता है। माना जाता है कि ये खेल वही हैं जिन्हें कृष्ण अपने बचपन में खेला करते थे, जिसे वे देवकी के आनन्द के लिए फ़िर से दुहरा रहे हैं, जो इस मन्दिर के देवी हैं, जिन्होंने अपने पुत्र के बचपन के दौरान इसे नहीं देखा था।

इस दौरान, गाँव के परिवार हर उपस्थित व्यक्ति को मिठाइयाँ बाँट रहे हैं। अन्तिम कार्य, दही हांडी में, पेड़ पर ऊँचाई पर लटकते दही के बर्तन के लिए पुरुष पिरामिड बनाते हैं। बर्तन तोड़ा जाता है और दही पिरामिड में मौजूद हर व्यक्ति पर गिरती है। फ़िर वे स्थानीय धोबियों के आवास पर स्नान के लिए जाते हैं। यह उन सबसे मज़ेदार उत्सवों में से एक है जिन्हें आप देख सकते हैं। कुछ लोग इसे वार्षिक जमीनी अभ्यास के रूप में देखते हैं।

केरल

आपकी नाड़ियों को शान्त करने वाला

केरल के कोच्चि शहर में चोट्टनिकारा मन्दिर में, देवी—क्योंकि वह जो बुद्धि देती है—अपने त्रिगुणातमक रूप में रहती है, जिसमें एक ही मूर्ति में तीनों गुण (सत्व, रजस और तमस) विद्यमान हों। इसके बारे में एक रोचक कहानी है कि कैसे आदि शंकराचार्य उन्हें इस क्षेत्र में ले आये, जो उनकी जन्मभूमि थी, लेकिन इस मन्दिर की विशेषता इसकी मानसिक विकारों की ठीक करने की क्षमता है।

An image of Trigunatamak Devi at Kochi’s Chottanikara Temple. Anuradha Goyal

कोच्चि के चोट्टनिकारा मन्दिर में त्रिगुणातमक देवी की एक तस्वीर। अनुराधा गोयल

The sacred tree at the Kizhukkavu Temple, which is known for helping to alleviate mental problems. Anuradha Goyal

किझुक्कवु मन्दिर का पवित्र वृक्ष, जो मानसिक समस्याओं को कम करने में सहायता करने के लिए जाना जाता है। अनुराधा गोयल

यहाँ मुख्य मन्दिर के एक तल नीचे, मन्दिर के तालाब से घिरी सीढ़ियों से जुड़ा हुआ किझुक्कवु मन्दिर है, जहाँ मानसिक रूप से परेशान लोगों के लिए पूजा की जाती है। गुरुथी पूजा, जो शुक्रवार की शाम को होती है, उसे मानसिक मामलों के लिए विशेष तौर पर लाभकारी माना जाता है, लेकिन पूरी तरह से ठीक होने के लिए सुझायी गयी पूजा ४१ दिनों की है। वे लोग जो ठीक होकर लौटे हैं और उन्होंने प्रक्रिया को एक वृक्ष में अपने साथ लाये गये हथौड़े से कील लगाकर पूरा किया है। बहुत सी कीलों ने मोटे पेड़ के तने को सजा दिया है।

इसी पेड़ से दर्ज़नों छोटे लकड़ी के पालने लटक रहे हैं, जो उनके द्वारा बाँधे गये हैं जिन्हें विश्वास है कि देवी उन्हें आशीर्वाद स्वरूप पुत्र प्रदान करेंगी जिससे उनके घर में भी पालने होंगे।

यहाँ पूजा करने की एक अद्भुत विधि पटाखे फोड़ना है। यहाँ एक काउंटर है जहाँ से आप टिकट खरीद सकते हैं, वहाँ आपकी ओर से एक अधिकारी पटाखे फोड़ेगा। यह लगभग गोली दागने जैसी आवाज़ करता है। प्रसंगवश, भारत के बहुत से देवी मन्दिरों में देवी को बन्दूकों से सलामी दी जाती है।

हिमाचल प्रदेश

ध्यानमग्न  ममी

मिस्र की तरह, भारत को ममियों के लिए नहीं जाना जाता है। हालांकि, कुछ सन्तों और लामाओं ने ध्यान करते समय समाधि में प्रवेश ले लिया और स्वयं को ममी में बदल दिया। ऐसे एक को हिमालय के छोटे से गाँव गिउ में देखा जा सकता है, जो हिमाचल प्रदेश के स्पीति में स्थित है, जहाँ सड़क की मरम्मत करते समय कुछ साल पहले एक बौद्ध लामा की ममी पायी गयी थी। स्थानीय लोगों का मानना है कि वे संघ तेंजिन थे, जो बौद्ध धर्म के गेलुग्पा परम्परा के साधु थे। वह ध्यान में बैठे हैं, जिनका एक हाथ ध्यान मुद्रा में है जिसमें तर्जनी उंगली का सिरा अंगूठे को छू रहा है। कहा जाता है कि उनके नाखून और बाल अब भी बढ़ रहे हैं, और उनके दाँत टूटे नहीं हैं।

The Giu village’s monastic mummy

गिउ गाँव के मठ की ममी

रेडियोकार्बन अंकन बताता है कि ममी लगभग ५५० वर्ष पुरानी है, और लामा अपने ४० के दशक की शुरुआत में रहे होंगे, जब उनकी मृत्यु हुई। उनके शरीर पर रसायन का कोई चिन्ह नहीं मिला है। कुछ लोगों का मानना है कि यह साधु धीरे-धीरे भोजन का त्याग करके गहन ध्यान की अवस्था में जाते हुए प्राकृतिक रूप से स्वयं को ममी बनाने की तकनीक को जानते थे। दूसरे कहते हैं कि वह ध्यान करते समय इन नंगे बर्फ़ से ढँके पर्वतों के बीच इस ठंडे रेगिस्तान में भूस्खलन में दब गये।

यद्यपि गिउ तक केवल किसी अन्य रास्ते से घूमकर ही पहुँचा जा सकता है, लामा इस दूरस्थ हिमालयी गाँव को एक पर्यटक गन्तव्य में बदलना शुरु कर रहे हैं। ममी को पीले मठ वाले कपड़े में लपेटा गया है और एक शीशे के घेरे से सुरक्षित किया गया है, उसके चारो ओर एक मन्दिर का निर्माण किया गया है। इसके चारो तरफ़ सिक्के, मुद्राएं और अन्य पूजा के सामान हैं जो आगंतुकों द्वारा चढ़ाये गये हैं।

राजस्थान

जहाँ चूहे शासन करते हैं

प्रसिद्ध करणी माता मन्दिर, जो चूहा मन्दिर के नाम से लोकप्रिय है, राजस्थान में बीकानेर के पास देशनोक गाँव में स्थित है। परिसर में हजारों चूहों के समूह रहते हैं, जिन्हें प्रेम से काबस कहा जाता है और उन्हें यहाँ स्थित देवी करणी माता का वंशज माना जाता है, जो ६०० वर्ष पहले थीं। वह यहाँ के चारण समुदाय और बीकानेर के राज परिवार की कुलदेवी (परिवार की रक्षा करने वाली) हैं। समय के साथ उन्हें देवी और चूहों को उनकी सन्तान माना जाने लगा। मन्दिर साधारण है, जिसमें उनकी एक छोटी मूर्ति है जिस पर चाँदी मढ़ी हुई है। उनके जीवनकाल के आस-पास, एक किले-नुमा संग्रहालय में दर्ज़ है, कि उनका एक उल्लेखनीय पूर्वज के रूप में सम्मान किया जाता है, जिन्होंने समुदाय की चमत्कारपूर्ण कार्य करके रक्षा की। करणी माता को हिंगलाज माता का एक रूप माना जाता है, जिनका पहाड़ी पर स्थित धार्मिक स्थल अब पाकिस्तान का भाग है। 

यहाँ अधिकांश चूहे भूरे हैं। थोड़े से सफ़ेद चूहों को बहुत पवित्र माना जाता है, इसलिए मन्दिर आने वाले लोग उनकी तलाश करते रहते हैं। एक सफ़ेद चूहे को देखना बहुत अधिक सौभाग्य लाने वाला माना जाता है।

A throng of hungry rats feast on milk at the Karni Mata temple in Rajasthan. Shutterstock

राजस्थान के करणी माता मंदिर में भूखे चूहों का झुण्ड दूध पी रहा है। Shutterstock

यहाँ चूहों को अन्य सभी पर प्राथमिकता मिलती है। मन्दिर उनका घर है, और आप बस एक आगन्तुक हैं। हर कहीं दूध के बर्तन और पीले बूँदी के लड्डुओं के ढेर हैं, जिन्हें चूहे बड़ी संख्या में खाते हैं। मंदिर के संगमरमर के अग्रभाग पर चूहों की पंक्तियों को तराशा गया है, जिनमें से प्रत्येक के हाथ में लड्डू है। आगंतुक को मन्दिर में नंगे पैर आना होगा, यहाँ तक कि मोजे भी नहीं पहनने होंगे। वे किसी चूहे पर नहीं चढ़ सकते या किसी भी रूप में उसे चोट नहीं पहुँचा सकते हैं। यदि ग़लती से आप किसी को चोट पहुँचा देते हैं, तो आपको एक चाँदी का चूहा मन्दिर में चढ़ाना होगा। यह अद्भुत मन्दिर हमें हर तरह के जीवित प्राणी के साथ शान्तिपूर्ण सहआस्तित्व की याद दिलाता है, क्योंकि हम सभी एक ही प्रकृति माँ के पुत्र हैं। ऐसा माना जाता है कि चारण समुदाय और चूहों की कुल संख्या स्थिर रहती है।

सिक्किम

नाथुला का बाबा मन्दिर

सिक्किम के हिमालय के ऊँचे पहाड़ों पर, नाथुला दर्रे के पास, सुंदर जोमगो झील है, जो गंगटोक से ३८.५ मील की दूरी पर है। १२,००० फ़ीट की ऊँचाई पर स्थित, दर्शकों को आकर्षित करने वाली यह जगह साल के अधिकांश समय जमी रहती है। यह भारत और चीन के बीच का सीमा क्षेत्र है और प्रायः सैन्य गतिविधियाँ देखी जाती हैं। झील के पास बाबा मन्दिर है, यह एक अद्भुत मन्दिर है जो पंजाब के सिपाही हरभजन सिंह को समर्पित है, जो १९६० के दशक में भारतीय सेना की सेवा करने वाले एक सैनिक थे।

The Baba Mandir at Tsomgo Lake. BHP

जोमगो झील पर स्थित बाबा मन्दिर। बीएचपी

यहाँ मिशन का नेतृत्व करते समय, वह एक बर्फ़ीली ठंडी नदी में गिर गये और मर गये। उनका शरीर कई दिनों तक ग़ायब रहा, जब तक कि उन्होंने अपने साथियों के सपने में आकर उन्हें अपनी लाश की दिशा नहीं बताये। उनके बंकर को एक स्मृति मन्दिर में परिवर्तित कर दिया गया। पूरी सैन्य वेशभूषा में उनकी एक तस्वीर को स्थापित किया गया है, और बैठकों में उनके लिए एक खाली कुर्सी रखी जाती है। ऐसा माना जाता है कि वह रात के समय सुरक्षा करते हुए और भारतीय पहरेदारों को सपनों के माध्यम से चेतावनी देते हुए अपनी ड्यूटी कर रहे हैं। लोग यहाँ से उनके आशीर्वाद के रूप में पानी की बोतलें लाते हैं। यह एक किंवदन्ती है जिसे हमने अपनी पीढ़ी में जन्म लेते देखा है।

वाराणसी

भारत माता को समर्पित

यह निबन्ध भारत माता मन्दिरों का वर्णन किया बिना पूरा नहीं हो सकता, जिन्हें वाराणसी, हरिद्वार, उज्जैन और कुछ अन्य जगहों पर देखा जा सकता है। सनातन धर्म में, धरती को हमेशा माँ की तरह माना जाता है। मातृभूमि वह भूमि होती है जिसमें हम जन्म लेते हैं और जहाँ से हमारा सम्बन्ध होता है। भारत माता एक देवी हैं जिन्होंने भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन के दौरान स्वरूप ग्रहण किया।

भारत माता का पहला चित्र अवनीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा बनाया गया था, जो रवीन्द्रनाथ टैगोर के भतीजे थे। उनको केसरिया साड़ी में चित्रित किया गया है, और अधिकांश देवियों की तरह, उनके चार हाथ हैं। दो ऊपरी हाथों ने शास्त्र और श्वेत वस्त्र का एक टुकड़ा पकड़ रखा है; निचले हाथों ने धान की बालियाँ और अक्षमाला (प्रार्थना के मनकों की माला) पकड़े हैं। इस प्रकार, उनके हाथों में मानव जीवन की अनिवार्य आवश्यकताएँ हैं, शिक्षा-दीक्षा-अन्न-वस्त्र: शिक्षा, दीक्षा, भोजन और कपड़े। मूल चित्र को अब कोलकाता के विक्टोरिया मेमोरियल हॉल संग्रहालय में देखा जा सकता है।

कुछ दशकों के भीतर, भारत माता का एक मन्दिर वाराणसी में बाबू शिव प्रसाद गुप्त के द्वारा बनवाया गया, जिसमें एक समान अनुपात वाला भारत का त्रिविमीय स्थलाकृतीय नक्शा है। राजस्थान के मकराना के संगमरमर पर तराशे गये इन नक्शे में जल के निकायों, समुद्रों, द्वीपों, पठारों, मैदानों और ४५० से अधिक पर्वत चोटियों को चित्रित किया गया है। कवि मैथिली शरण गुप्त ने इस मन्दिर की प्रशस्ति लिखी थी, और महात्मा गाँधी ने १९३६ में इसका उद्घाटन किया था।

The historic painting of Bharat Mata by Abanindranath Tagore. Wikicommons

अवनीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा भारत माता का ऐतिहासिक चित्र। Wikicommons

The 3-D map of Mother India in the Bharat Mata temple in Varanasi. Anuradha Goyal

वाराणसी के भारत माता मन्दिर में भारत माता का त्रिविमीय चित्र। अनुराधा गोयल

उपसंहार

इन मन्दिरों का अध्ययन करना और उन तक जाने से हमें एतक झलक मिलती है कि किंवदन्तियाँ कैस बनीं, जिन्होंने धीरे-धीरे विश्वास का रूप लिया और अन्ततः परम्परा बन गयीं। हम इन मन्दिरों में भक्तों का विश्वास भी सीखते हैं, जो हर बार उनकी मनोकामना पूरी होने पर और शक्तिशाली होता है, जैसा कि देवी को धन्यवाद देने सम्बन्धी प्रथा से सिद्ध हुआ है।

मन्दिर की औपचारिक वास्तुकला एक सु-स्थापपित कला और विज्ञान है, लेकिन बहुत से मन्दिर हैं जिन्होंने दूसरे रास्तों से अपने को स्वयं तराशा है। कुछ प्रकार, जैसे गोलू देवता और करणी माता, छोटे क्षेत्रों तक सीमित हैं, जबकि अन्य पूरे देश भर में पाये जा सकते हैं। कुछ न्याय करते हैं, कुछ दर्द से राहत देते हैं, कुछ बस आपको उनकी कहानी से आश्चर्य में डालकर छोड़ देते हैं। कुछ भूमि का उत्सव मनाते हैं, जबकि कुछ अपने वीर पुरुषों और स्त्रियों का उत्सव मनाते हैं। कोई भी पालन-पोषण करता है या प्रबुद्ध करता है, वह हमारे लिए देवता हो सकता हैं—चाहे यह धरती हो, प्रकृति के पहलू हों, जीवित व्यक्ति या अनदेखे तत्व हों, जिनके साथ हमारा सहआस्तित्व है।

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