Mauritius Youth Reflect on Hinduism
केशव पोराहू, दायें, भगवान मुरुगन के वार्षिक कवाड़ी जुलूस के दौरान अपने मित्र का समर्थन करते हैं
नयी पीढ़ी से मिलिये जो एक बहुसांस्कृतिक द्वीपीय देश में अपनी धार्मिक पहचान को बनाये रखने और उसे समृद्ध करने के जोश में है
सविता तिवारी, मारीशस
२ नवम्बर, १८३४ की अँधेरी शाम को छत्तीस भारतीय मज़दूर मारीशस के पोर्ट लुइस में एटलस से पहुँचे जो भारतीय गिरमिटिया मज़दूरों को मारीशस लाने वाला पहला जहाज था। उस जीवन से डरे हुए जो उनकी प्रतीक्षा कर रहा था, उन्होंने मारीशस की धरती पर क़दम रखा, शायद अनजाने में वे इस विदेशी भूमि पर हिन्दू धर्म के पदचिन्ह रख रहे थे। साथ मिलकर, वे ऐसा सांस्कृतिक और धार्मिक प्रभाव उत्पन्न करेंगे जो निकट भविष्य में भी रहेगी।
इनमें से प्रत्येक प्रवासी अपनी मातृभूमि से अपनी निजी सम्पत्ति की गठरी लेकर आया था: भारतीय कपड़े, थोड़े बहुत गहने, रामायण की प्रतियाँ—वह उत्कृष्ठ कथा जो इस नये देश में हिन्दू धर्म की नींव और सहारे का काम करेगी। ये किताबें, कुछ को अपने परिवार और बड़ों से विदाई के उपहार के तौर पर मिली थीं, यह सन्देश ले आयी थीं कि भले ही आप वह सब कुछ पीछे छोड़ रहे हैं जो आप जानते थे, आपको अपना धर्म कभी नहीं छोड़ना है।
एटलस को दर्शाता हुआ एक चित्र
मारीशस का नाम १५९८ में नसाऊ के राजकुमार मॉरिस के नाम पर डच लोगों ने रखा था। हालांकि, हमारे मारीशस के पूर्वजों की हिन्दू लोककथाएँ इस कहानी का दूसरा रूप बताती हैं। वे इसे मारीच देश कहते हैं, जो राक्षसों के राजा मारीच के नाम पर रखा गया है। यह कहा जाता है कि मारीच और सुबाहु राक्षस थे, दो राक्षसी ताड़का के पुत्र थे। मारीच रावण का मामा था क्योंकि ताड़का मारीच और कैकसी दोनों की माँ थी। हम सभी वह कहानी जानते हैं जिसमें राम ने राक्षसी ताड़का और उसके पुत्र सुबाहु का वध किया था, लेकिन ग़लती से उन्होंने मारीच की तरफ़ एक वक्र तीर चला दिया था। तीर मारीच की छाती में लगा और उसने उसे सैकड़ों मील दूर समुद्र में फेंक दिया।
राजधानी पोर्ट लुइस का एक विस्तृत दृश्य
रामायण में कहानी यहाँ खत्म हो जाती है; लेकिन मारीशस में यह एक लोक कथा के रूप में आगे बढ़ती है। यह कहा जाता है कि राम के बाण ने मारीच को मारीशस द्वीप पर फेंक दिया। मारीच को जीवनदान मिल गया, और वह एक साधु बन गया। उसने इस द्वीप पर एक आश्रम बनाकर तथा अपने राक्षसी स्वभाव का त्याग करके एक तपस्वी का जीवन जिया। वह अपनी पुरानी ग़लतियों को महसूस करने लगा और राम का भक्त बन गया। जब रावण सीता के हरण में सहायता के लिए मारीच के पास आया तो मारीच ने मना कर दिया। रावण ने उसे मार डालने की धमकी दी, लेकिन मारीच ने उसकी बजाय राम के हाथ से मरने का चुनाव किया। जब राम ने सोने के हिरण के रूप में मारीच का वध किया, तो मारीच ने अपने पापों को स्वीकार किया, और राम ने उसे एक वरदान दिया: उसका द्वीप अब से मारीच देश कहा जायेगा, भारतीय एक दिन इस द्वीप पर रामायण लेकर आयेंगे और राम का नाम पूरे देश में गूँजेगा। इस प्रकार, मारीच की शान्तिपूर्वक मृत्यु हुई।
हमारे पूर्वजों को इस कहानी में सांत्वना मिली और उन्होंने माना कि वे इस द्वीप पर राम की इच्छा से लाये गये हैं। गिरमिटिया प्रवासियों ने अंग्रेज़ों के शासनकाल में कठिन जीवन व्यतीत किया। दिन भर गन्ने के खेतों में कठिन परिश्रम करना, रात में वे राम के नाम की शरण में आते थे और समूह बनाकर रामायण के पदों का पाठ करते थे, जिससे वे दिन के दर्द को और कल की कठिनाइयों को भूल जाते थे। इस प्रकार हिन्दू धर्म मारीशस में उन कठिन पुराने दिनों में भी बचा रहा। आज, १८७ वर्ष बाद, हिन्दू धर्म उतना ही हार्दिक है जितना कि इस द्वीप पर पहुँचने के समय था। नयी पीढ़ी हिन्दू धर्म की शिक्षाओं और परम्पराओं को अपने ढंग से आगे बढ़ा रही है।
एक विकसित होती हुई विरासत
तेलुगु विद्वान संजीव नरसिंह अप्पादू एक स्थानीय रेडियो कार्यक्रम में मारीशस के हिन्दुओं के इतिहास की चर्चा करते हुए
एक बच्चा द्वीप के पवित्र गंगा तलाओ पर १०८-फ़ीट ऊँची दुर्गा माता की प्रतिमा का आदर करते हुए
इस लेख के लिए मैंने कई हिन्दू युवाओं से बात की। एक चीज़ स्पष्ट है: मारीशस के लोगों की वर्तमान पीढ़ी अपनी पुरानी पीढ़ी से बहुत अलग तरह के हिन्दू हैं। एक तरफ़ जहाँ पुरानी पीढ़ी बड़े पैमाने पर स्वयं को भारतीय हिन्दू मानती थी, यह पीढ़ी स्वयं को मारीशस का हिन्दू मानती है। इस पाँचवी पीढ़ी ने मान लिया है कि यहाँ पैदा होने के कारण, वे भारतीय नहीं बल्कि मारीशस के हैं और कि अपनी धार्मिक परम्पराओं का पालन करने का उनका ढंग भारतीय हिन्दुओं से अलग है। प्रारम्भिक दौर में साधनों और सुविधाओं के अभाव के कारण, आचरण और परम्पराओं इन पाँच पीढ़ियों में एक अनोखे ढंग से विकसित हुईं, और आज के युवा मारीशस के पालन करने के ढंग को अपनी विरासत मानते हैं।
एक मिश्रित संस्कृति
मारीशस एक सतरंगी देश के रूप में सुविख्यात है। इसकी आबादी ५० प्रतिशत हिन्दू, १६ प्रतिशत मुस्लिम और २४ प्रतिशत इसाई है। ये समूह, जिनमें से प्रत्येक अपनी आस्था के मामले में दृढ़ है, पारस्परिक शान्ति और सद्भाव से रहते आये हैं। द्वीप के ९० प्रतिशत निवासियों द्वारा फ़्रांसीसी क्रियोल प्रथम भाषा के रूप में बोली जाती है। इसके आलावा, एक बड़ी संख्या छः भारतीय भाषाओं में से एक बोलती है, क्योंकि उनके पूर्वज भारत के बहुत अलग-अलग भागों से लाये गये थे। बहुसंख्या, जो कलकत्ता से आयी थी, भोजपुरी बोलती है; मराठी बोलने वाले मुम्बई से आये थे; तमिल और तेलुगु बोलने वाले मद्रास (अब चेन्नई) से आये थे। हिन्दी- और गुजराती बोलने वाले मज़दूर भी द्वीप पर लाये गये थे। इनमें से प्रत्येक भाषा समूह में विभिन्न उपसंस्कृतियाँ शामिल हैं। एक अन्य समूह, जिसमें भारतीय व्यापारियों की एक छोटी संख्या थी, बाद में गुजरात के सूरत से आया।
दो मित्र द्वीप के एक त्यौहार का आनन्द लेते हुए
मारीशस के हिन्दुओं को भाषा के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। भोजपुरी बोलने वाले लोग जिनके पूर्वज भारत के बिहार से आये थे, उन्हें बस “हिन्दू” कहा जाता है, जैसे कि गुजराती जैसे छोटे समुदायों को। जबकि दूसरों में परिवर्तन करने वाले शब्द जोड़े गये हैं: उदाहरण के लिए, एक मराठी बोलने वाले को “मराठी हिन्दू” या बस “मराठी” कहा जाता है। ऐसा ही तमिल और तेलुगु हिन्दुओं के दूसरे जातीय समूहों के साथ होता है। यहाँ तक कि सरकारी फ़ॉर्मों में भी धर्म के हिस्से में मराठी, तमिल, तेलुगु और हिन्दुओं के लिए विकल्प होते हैं।
ये अन्तर औपनिवेशिक समय में पैदा हुए हैं, जब भारत के विभिन्न हिस्सों के गिरमिटिया मज़दूर मारीशस लाये गये थे। एक बार मारीशस में आने पर, प्रत्येक समुदाय बँट गया, और वह द्वीप के अलग-अलग बागानों में काम पर लगा दिया गया। किसी एक समुदाय के बहुत कम ही लोगों को एक साथथ काम पर लगाया गया ताकि संगठित समूहों को बनने से रोका जा सके। यहाँ तक कि बहुत से पति और पत्नी जो एक साथ पहुँचे थे, इस तरह से अलग कर दिये गये। सभी भारतीय समुदाय मिश्रित थे जिससे बातचीत करना कठिन था।
इन गिरमिटिया मज़दूरों की पहली पीढ़ी वहाँ रही जहाँ औपनिवेशिक ताकतों ने उन्हें रहने को मज़बूर किया। लेकिन दूसरी पीढ़ी—जो मारीशस में पैदा हुए हिन्दुओं की पहली पीढ़ी थी—अपने ही भाषा और विरासत वाले दूसरे लोगों से अलग रहने के नुकसान को समझ गये। जब गिरमिटिया क़ानूनों में बदलाव किया गया, जिससे उन्हें अधिक स्वतन्त्रता मिली, तो उन्होंने अपने खुद के समुदाय बना लिये जो भाषा और संस्कृति के आधार पर एकजुट हुए थे, ये छोटे समूह स्वयं को तमिल, तेलुगु, मराठी या गुजराती कहते थे ताकि वे स्वयं को भोजपुरी बोलने वाले हिन्दुओं की बहुसंख्या से अलग कर सकें। मारीशस के हिन्दुओं को दैनिक जीवन में यह विभाजन स्वीकार करने बहुत समय लग गया, क्योंकि वे जानते थे कि हम सभी एक ही मूल धर्म के हैं।
किसी घर के बाहर हनुमान का देवस्थान
कुछ प्रथाएँ कई समूहों में प्रचलित हैं। तेलुगु के विद्वान संजीव नरसिंह अप्पादू बताते हैं: “जब भारतीयों को मारीशस लाया गया, वे लम्बे समय तक मिश्रित समुदायों में रहे, जिससे संस्कृति और परम्पराएं आपस में मिल गयीं। उदाहरण के लिए भोजपुरी बोलने वाले हिन्दू हनुमान चौत्र की परम्परा लेकर आये, जिसमें किसी के घर पर एक देवस्थान होता है जहाँ भगवान हनुमान की एक मूर्ति और दो लाल झण्डे रखे जाते हैं। झोपड़ियाँ इतनी छोटी थीं कि उन्होंने देवस्थान अपनी झोपड़ियों के बाहर बनाये। उन्होंने अपने प्रवेश के बाहर एक पत्थर रख दिया और बस इसी तरह से घर के प्रवेश द्वार पर हनुमान चौत्र की परम्परा शुरु हुई। दक्षिण और पश्चिम से जाने वाले दूसरे हिन्दू समुदायों ने भी इन परम्पराओं को अपना लिया। इसलिए आज हनुमान चौत्र बहुत से तमिल, तेलुगु और मराठी परिवारों में भी देखा जा सकता है। हर कोई झण्डों को साल में एक बार प्रार्थना के लिए पुजारी को आमन्त्रित करके बदलता है, और वे अपने बड़ों को भी आमन्त्रित करते हैं। यदि कोई इसे बड़े उत्सव के रूप में करना चाहता है तो वे झण्डे को अपने बच्चे के जन्मदिन पर बदलते हैं।”
दूसरा महत्वपूर्ण सांस्कृतिक बदलाव खान-पान में हुआ है। आज, हमारे द्वीप का हिन्दू समुदाय शादियों और अन्य पवित्र अवसरों पर थाली में सात तरह की सब्जियाँ रखता है। यह परम्परा दक्षिण भारतीय समुदायों से आयी है। पूड़ी, तली हुई रोटी जो उत्तर भारत से आयी है, ने भी थाली में चावल के साथ अपने लिए एक प्रमुख जगह बना ली है।
अपने सांस्कृतिक मूल से बहुत दूर होने पर हमारे मारीशस के हिन्दू पूर्वजों ने वही किया जो उन्हें सही लगा। वे सभी जानते थे कि वे एक बड़े हिन्दू समुदाय के भाग हैं, और कि वे एक ही देवताओं की प्रार्थना करते है। लेकिन अपनी संस्कृति और धर्म की रक्षा करने के लिए, प्रत्येक समूह ने स्वयं को बन्द कर लिया, और प्रत्येक पीढ़ी ने इस नयी जगह पर अपने परम्पराओं और विश्वासों की रक्षा करने की आवश्यकता को अगली पीढ़ी में डाला, और अपने धर्म का अगली पीढ़ी में स्थानान्तरण किया।
नयी पीढ़ी ने स्वयं को एक बड़े और अधिक जुड़ी हुई दुनिया में पाया। वे इस कोकून से बाहर आ रहे हैं और अपने को बस हिन्दू कह रहे हैं। जिनका मैंने साक्षात्कार लिया, उनमें से किसी ने नहीं कहा कि वे मराठी हिन्दू हैं, तमिल हिन्दू हैं या कोई और हैं। वे बस हिन्दू हैं।
एक परिवार गंगा तलाओ में पूजा करता हुआ, जो इस द्वीप की सबसे पवित्र झील है
जाति का कारक
भारत की आबादी इसके बाद जातियों में विभाजित होती है। जातिसूचक उपनाम न होने के कारण ज़्यादातर लोग सोचते हैं कि मारीशस एक जातिहीन समाज है। भारतीय उपनाम जिसके साथ प्रवासी मारीशस आये थे, उन्हें भी पेपर पर नोट नहीं किया गया था। और उनके पहले नाम की वर्तनी भी अंग्रेज़ अधिकारियों द्वारा बिगड़े हुए रूप में लिखी गयी थी। लेकिन लोगों ने अपनी जाति और परिवार की परम्परा को अधिकतम सम्भव याद रखा। वर्तमान में जाति केवल विवाह के समय देखने को मिलती है। हालांकि यहाँ अन्तर्जातीय विवाह आम हैं, माँ-बाप अपने बच्चों से अपनी जाति या कम से कम अपने समुदाय में विवाह करने को कहते हैं जैसे तमिल का तमिल से शादी करना। ज़्यादातर साक्षात्कार देने वालों ने कहा कि हालांकि वे जाति पर बहुत ध्यान नहीं देते, लेकिन यह उनके व्यक्तिगत या सामाजिक जीवन को किसी न किसी प्रकार से प्रभावित करता है।
हिन्दू धर्म और मीडिया
बहुत से मारीशस वाले अपने दिन की शुरुआत सरकारी रेडियो स्टेशन से चलाये जाने वाले धार्मिक गीतों से करते हैं। रेडियो हमेशा पृष्ठभूमि में बजता रहता है और लोग अपने सुबह के घरेलु काम करते रहते हैं। गीत का चुनाव दिन पर निर्भर करता है: शिव के गीत सोमवार को बजते हैं और हनुमान के गीत मंगलवार को। बुधवार गणेश के लिए आरक्षित है, गुरुवार गुरु के लिए, शुक्रवार लक्ष्मी के लिए, शनिवार वेंकटेश्वर के लिए और रविवार सूर्य के गीतों के लिए। हर शाम एक २० मिनट के सत्र में मिश्रित भजनें बजती हैं। आचार्यों और पंडितों को भी स्टूडियो में प्रवचन देने के लिए आमन्त्रित किया जाता है।
हर सुबह ५ बजे, सरकारी टीवी चैनल भारत के आस्था चैनल का प्रसारण करता है जिसमें बाबा रामदेव के योग के कार्यक्रम दिखाये जाते हैं। यह एक घण्टे का कार्यक्रम मॉरीशस के हिन्दुओं में लोकप्रिय है। ये रेडियो और टीवी कार्यक्रम मॉरीशस के हिन्दू जीवन के अभेद्य हिस्से हैं।
हिन्दू धर्म और राजनीति
आधी आबादी हिन्दू होने के कारण, मॉरीशस के एक को छोड़कर सभी राष्ट्रपति और एक को छोड़कर सभी प्रधानमन्त्री हिन्दू रहे हैं। ज़्यादातर हिन्दू उत्सवों पर सार्वजनिक छुट्टियाँ होती हैं। निर्वाचन क्षेत्रों में प्रतिनिधि धर्म और जाति के आधार पर चुने जाते हैं। इस कारण, कुछ युवाओं को लगता है कि सरकारी नौकरियाँ और प्रोन्नति वह क्षेत्र हैं जहाँ उनकी जाति मायने रखती है।
एक सरकार द्वारा नियुक्त टास्क फ़ोर्स यह सुनिश्चित करती है कि सरकार द्वारा तय छुट्टियाँ, त्यौहार और मेले सुचारू और सुरक्षित ढंग से आयोजित किये जायें। इसके अतिरिक्त, सरकार किसी धर्म की धार्मिक परम्पराओं और रीति-रिवाजों में बहुत दखल नहीं देती है।
मॉरीशस में हिन्दू जीवन
मॉरीशस के लगभग हर गाँव के प्रवेश और निकास पर एक काली मन्दिर या काली माई का स्थान है। यहाँ माँ काली की पूजा ग्राम देवी या गाँव की माता की तरह होती है। किसी पेड़ के नीचे या देवी के चरणों में सात पत्थर रखे जाते हैं जो काली के सात रूपों को दर्शाते हैं। कुछ पुराने गाँवों में ये पत्थर सदियों पहले हमारे पूर्वजों द्वारा रखे गये थे। वर्तमान पीढ़ी बहुत अच्छे या बुरे समय में काली माई के पास जाती है, और उन्हें खीर-पूड़ी चढ़ाती है। आप आमतौर पर किसी को वहाँ पर बच्चे के जन्म या शादी के बाद, या जब कोई गम्भीर रूप से बीमार पड़ जाता है और ठीक होता है, तब पा सकते हैं।
एक युवती गणेश उत्सव पर लड्डू बाँट रही है
साल में एक बार,इन काली माई के स्थानों पर सामुदायिक प्रार्थना आयोजित की जाती है जहाँ गाँव के सभी निवासी योगदान देते हैं और भागीदारी करते हैं। शुरुआती दिनों में, जानवर की बलि चढ़ाने का रिवाज था, लेकिन यह रुक गया है क्योंकि नयी पीढ़ी को लगता है कि ऐसे कर्मकाण्डों का हिन्दू धर्म से कोई लेना-देना नहीं है। अलग-अलग जातीय समूह देवी की अलग-अलग तरीके से पूजा करते हैं। तेलुगु समुदाय उन्हें अम्मोरु के रूप में पूजता है, जिसका अर्थ है “गाँव की माता”। कुछ मन्दिरों में हर वर्ष महिलाओं के सिर पर पानी का कलश लेकर एक मन्दिर से दूसरे मन्दिर तक कलशयात्रा निकालने की परम्परा है।
हमारे द्वीप पर हिन्दुओं के लिए दूसरी आम प्रथा बच्चे के जन्म के बाद ब्राह्मण के पास जाना या तुरन्त उसे अपने घर बुलाने की है। बच्चे के जन्म का पंजीकरण पुजारी के पास होता है, और नाम के पहले अक्षर की गणना ज्योतिष के आधार पर होती है।
जब कोई मरता है, जो सबसे पहली कॉल पुजारी के पास यह देखने के लिए होती है कि कहीं पंचक नक्षत्र तो नहीं चल रहा है। बड़ों का मानना है हकि यदि कोई व्यक्ति इस खगोलीय समय काल में मरता है, तो वह अपने साथ चार और लोगों का जीवन लेगा। युवा इन प्रथाओं में विश्वास नहीं रखते हैं, लेकिन बड़ों द्वारा ऐसा कहने पर वे आज्ञाकारी भाव से पुजारी के पास जाकर जाँच करते हैं।
लगभग सभी साक्षात्कार देने वालों ने कहा कि हिन्दू युवा अजनबियों द्वारा आसानी से पहचाने जा सकते हैं क्योंकि ज़्यादातर अपनी कलाई पर रक्षा सूत्र (पवित्र धागा) पहनते हैं, जो उनके घर या मन्दिर में प्रार्थना करते समय पुजारी के द्वारा बाँधी जाती है।
केशव पोराहू का परिवार किसी स्वजन के मृत्यु पर हवन कर रहा है
हिन्दू घर भी यहाँ आसानी से पहचान में आ जाते हैं। घर के अन्दर मन्दिर होने के साथ ही, लगभग सभी के पास ऊपर वर्णित हनुमान चौत्र है—जो एक हनुमान का उपासना स्थल होता है जिसमें दो लाल झण्डे होते हैं। द्वार पर बहुत सी बोतलें आसानी से दिखाई दे सकती हैं, जो आमतौर पर कोक की बोतल की तरह पारदर्शी शीशे की बोतल होती है, जिसमें मॉरीशस के गंगा तालाओ का पवित्र गंगा जल भरा होता है। ऐसा माना जाता है कि गंगा का पानी बुराईयों और नकारात्मकता को दूर रखता है।
मॉरीशस के युवा हिन्दू
साक्षात्कार देने वालों से बात करते समय कुछ आम बातें सामने आयीं। हर कोई हिन्दू त्यौहारों का आनन्द लेता हुआ प्रतीत हो रहा था। यहाँ तक कि वे भी जो स्वयं की पहचान “धार्मिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक” के तौर पर करते हैं, इन त्यौहारों में खुशी-खुशी भागीदारी करते हैं, राखी या रंगबिरंगी होली पर विस्तृत परिवार के साथ इकट्ठा होने का आनन्द लेते हैं। मॉरशीस पूरे साल भर के कार्यक्रमों का कैलेण्डर प्रदान करता है। घर पर होने वाली सत्यनारायण कथा में सैकड़ों परिवार के सदस्य और मित्र पूरे दिन भर के लिए किसी के सफल विवाह के लिए प्रार्थना करने के लिए एकत्र होते हैं। महाशिवरात्रि पर, ऐसा लगता है कि पूरा द्वीप हमारी सबसे पवित्र झील गंगा तलाओ पर तीर्थयात्रा करता है। मॉरीशस के युवा हिन्दू इन सबका आनन्द लेते हैं।
दूसरी तरफ़ , युवा कुछ लोगों द्वारा की जाने वाली तान्त्रिक क्रियाओं को पसन्द नहीं करते हैं। कभी-कभी उन्हें किसी के घर के बाहर नींबू के साथ सिक्के औल लाल सिन्दूर मिलता है, और हो सकता है कि बलि दिया गया पशु भी। सभी साक्षात्कार देने वालों ने इसकी भर्त्सना की। वे कहते हैं कि पुलिस ऐसी गतिविधियों के बारे में लोगों की शिकायतों पर काम करती हुई नहीं लगती है।
युवा हिन्दू अपनी कलाइयों पर रक्षा सूत्र दिखाते हुए
फ़िर भी कुल मिलाकर, साक्षात्कार देने वाले कहते हैं कि वे अपनी धार्मिक परम्पराओं का आनन्द लेते हैं। सामाजिक जीवन बहुत व्यस्त है, जिसमें लगातार दोस्तों की और बहनों की शादियों के, या दोस्तों के घर पर गणेश चतुर्थी के देवता को स्थापित करने के, पारम्परिक झाकरी नृत्य के आमन्त्रण आते रहते हैं। फ़िर महाशिवरात्रि के दौरान कवार बनाने के समय एक माह कठोरता से शाकाहारी होने का होता है, जब किसी दोस्त को आग पर चलने वाली कवाड़ी में हिस्सा लेना होता है, उसे किसी की ज़रूरत होती है जो उसे प्रोत्साहित करे।
एक युवा हिन्दू से उसकी माँ सूर्यास्त के समय रात भोजन तैयार करते समय अपने हनुमान के चौत्र पर दीपक जलाने को कहेगी। कुछ युवा कह तेहैं कि वे ऐसा करना पसन्द नहीं करते, लेकिन वे पक्का करते हैं कि भले ही माँ घर पर न हो, दीपक फ़िर भी बिना किसी के कहे अभी भी समय पर जलता है।
शरीर का दाह संस्कार होने तक हमारे युवा मृतक के निकट रामायण का पाठ करते हैं, लेकिन बहुत से लोग अन्य प्रथाओं को ख़राब मानते हैं, जैसे घर की सभी शीशे की खिड़कियों को चादर या किसी अन्य उपलब्ध कपड़े से ढँक देना जब तक कि शरीर दाह संस्कार के लिए नहीं जाता है। साथ ही वे विधवाओं के प्रति व्यवहार की भी भर्त्सना करते हैं, जिन्हें कि बहुत से पवित्र कार्यों में शामिल नहीं किया जाता है।
तो ये हैं मॉरीशस के युवा हिन्दू— स्वर्ग के इस छोटे से टुकड़े पर, जिसे मॉरीशस कहा जाता है, एक ही साथ हिन्दू धर्म का आनन्द लेते हुए, खोज़ करते हुए, आलोचना करते हुए और बदलते हुए।
मैं अपने साक्षात्कार के लिए एक छोटी प्रश्नावली तैयार की जिसमें सबसे पहला प्रश्न जो मैंने लोगों से पूछा, यह था कि क्या वे स्वयं की पहचान की हिन्दू के रूप में करते हैं। यदि हाँ, अगला प्रश्न था, क्या कोई अजनबी आपको हिन्दू के तौर पर पहचान कर सकता है? क्या वे कुछ ऐसा धारण करते हैं जो उनके धार्मिक पहचान का उल्लेख करता हो? मैंने १६ संस्कारों के बारे में भी पूछा, और उनके दो पसन्दीदा त्यौहारों के बारे में भी। मैंने दो के बारे में पूछा क्योंकि मैंने मान लिया था कि उनका पहला पसन्दीदा त्यौहार हमेशा हमारा बहुत अधिक मनाये जाने वाला महाशिवरात्रि का होगा। मैंने यह भी पूछा कि वे मॉरीशस में हिन्दू परम्परा के बारे में क्या पसन्द करते हैं और क्या नहीं पसन्द करते हैं, और जाति पर उनका पक्ष क्योंकि यह भी यहाँ मौजूद है। उसके बाद मैंने उन्हें उनके मन से बोलने दिया।
केशव पोराहू
केशव, नेटवर्क विशेषज्ञ, होली के दौरान
२४ वर्षीय केशव पोराहू ऑरेंज टेलीकम्यूनिकेशन में नेटवर्क स्पेशलिस्ट के तौर पर काम करते हैं। वह एक बहुत ही धार्मिक परिवार से आते हैं और स्वयं की पहचान हिन्दू के रूप में करते हैं, और स्वयं को इसके आगे की श्रेणी में रखने से इनकार करते हैं: “मैं ईश्वर में विश्वास करता हूँ और कर्मकाण्ड करता हूँ। संक्षेप में कहूँ तो मैं भगवान को मानने वाला हूँ।” उन्होंने नामकरण, अन्नप्राशन, चूड़ाकरण, वेदारम्भ आदि संस्कार किये हैं और वह अपने अगले संस्कार, विवाह (शादी) की प्रतीक्षा कर रहे हैं। उनके हाथ में रक्षा सूत्र और गले की माला हिन्दू के रूप में उनकी पहचान करती है।
उनके दो पसन्दीदा हिन्दू त्यौहार महाशिवरात्रि और गणेश चतुर्थी हैं। महाशिवरात्रि इसलिए कि इस दिन गंगा तलाओ पर शिवभक्ति का शानदार माहौल होता है। गणेश चतुर्थी क्योंकि इस दिन ढोलक और अन्य वाद्य यन्त्रों से बहुत ऊँची ध्वनि में प्रार्थना और झाकरी नृत्य होता है।
उन्होंने कहा कि जाति कई बार मॉरीशस में एक मुद्दा होती है। “बड़े लोगों की जुटान के समय, मैंने जाति-प्रथा को देखा है और देखा है कि विशेषाधिकार प्राप्त लोगों को प्राथमिकता मिलती है। राजनीतिज्ञ सरकारी नौकरियों में अपनी जाति के लोगों को प्राथमिकता देते हैं। शादी के दौरान भी माँ-बाप यह मुद्दा लाते हैं। इसके अलावा, जाति मॉरीशस में युवा हिन्दुओं के दैनिक जीवन पर और असर नहीं डालती। मुझे हिन्दू धर्म के कर्मकाण्ड पसन्द हैं, लेकिन मैं उनके किये जाने के ढंग को बदलना चाहूँगा ताकि वे उबाऊ नहीं बल्कि प्रेरक लगें। भक्ति का माहौल बढ़ाने के लिए, संगीत को अधिक प्राथमिकता देनी चाहिए। मॉरीशस में हिन्दू समुदाय के बारे में मुझे एक और चीज़ पसन्द नहीं है कि हम एक नहीं हैं। द्वीप के दूसरे धर्म इसे महत्वपूर्ण समझते हैं, और वे एकता का व्यवहार करते हैं।”
यादव मुनेश्वर
मैं यादव को पिछले १४ वर्षों से जानती हूँ। मैंने उन्हें प्रार्थनाओं में बैठे हुए आज्ञाकारी बच्चे के रूप में देखा है और प्रार्थना के दौरान हर कर्मकाण्ड के बारे में प्रश्न पूछकर आध्यात्मिकता की जानकारी बटोरने वाले शरारती किशोर के रूप में भी देखा है, और इसके बाद उत्कट कृष्ण भक्त बनते हुए और अपने पारिवारिक व्यवसाय – गोविन्द वेज़ फ़ूड, के एक प्रोजेक्ट हेड के रूप में देखा है।
“निश्चित तौर पर, मैं एक हिन्दू हूँ,” उन्होंने कहा। “एक शाकाहारी हिन्दू,” उसे हँसते हुए इस शब्द पर ज़ोर दिया। मैंने पूछा कि इसमें मज़ेदार क्या है, और उन्होंने उत्तर दिया, “मैं देखता हूँ कि पूरी दुनिया भर के हिन्दू दया की बात करते हैं और साथ ही मांसाहारी भोजन भी करते हैं। ये चीज़ें साथ में नहीं हो सकतीं। और हिन्दू धर्म के बारे में मुझे बस यही चीज़ पसन्द नहीं है।”
उन्होंने आगे बताया, “मुझे तीर्थयात्राएँ पसन्द हैं। एक खोजी के तौर पर, मैं सचमुच आध्यात्मिक यात्राओं पर जाना पसन्द करता हूँ। कृष्ण के भक्त के रूप में, मैं नियमित तौर पर भारत के मथुरा और वृन्दावन जाता हूँ। मैं बद्रीनाथ, केदारनाथ और कई अन्य जगहों पर भी गया हूँ। मेरे पिता कैलाश मानसरोवर जा चुके हैं। पवित्र शहरों में नये लोगों से मिलने का अनुभव शानदार होता है।
यादव मुनेश्वर पास के हिन्द महासागर का आनन्द लेते हुए
“हिन्दू धर्म मुझे प्रत्यक्ष रूप से हर दिन प्रभावित नहीं करता है। लेकिन हाँ, मैं अपने जीवन की पृष्ठभूमि में हिन्दू पहचान की उपस्थिति को महसूस कर सकता हूँ। उहाहण के लिए घर के मन्दिर में प्रार्थना करना अनिवार्य है और मेरी माँ उस कर्तव्य को पूरी निष्ठा पूर्ण से करती है। मुझे कभी-कभी लगता है कि यह उसके लिए बहुत कठिन कार्य है। मैं काम के कारण दैनिक प्रार्थना में मुश्किल से ही शामिल होता हूँ, लेकिन मैं अक्सर रविवार की शाम को उनके साथ मन्दिर जाता हूँ। हम दर्शन करते हैं, कीर्तन में बैठते हैं, दोस्तों से मिलते हैं, मन्दिर में रात के खाने के तौर पर प्रसाद ग्रहण करते हैं, और फ़िर शयन आरती, जो कृष्ण के लिए निद्रा की भजन होती है, में शामिल होने के बाद घर वापस आते हैं। मेरी माँ को समय मिले तो वह हर दिन मन्दिर जा सकती है। मेरे पिता हर बार व्यावसायिक यात्रा पर मलेशिया जाते समय भारत में मथुरा-वृन्दावन जाते हैं, हर दो महीने में एक बार। इतना धार्मिक है मेरा परिवार। मुझे मन्दिर जाना और प्रार्थना में शामिल होना पसन्द है। लेकिन मैंने अपने लिए अलग जगह बनायी है।
“हमारे घर में वार्षिक प्रार्थना अनिवार्य है, और हम अपने सभी रिश्तेदारों और दोस्तों को आमन्त्रित करते हैं। महाप्रसाद, जो सात तरह की सब्जियों वाली थाली होती है, सभी को परोसा जाता है। वार्षिक प्रार्थनाओं के लिए वे हमारे घर आते हैं और हम उनके घर जाते हैं। यह हिन्दू धर्म की ख़ूबसूरती है कि हम एक साथ भागीदारी करते हैं। कभी-कभी यह बहुत ज़्यादा लगता है, लेकिन दोस्तों के होने से इसे सह लेते हैं।
“बिल्कुल मेरे धर्म के बाहर के दोस्त भी हैं। मॉरीशस एक इन्द्रधनुष जैसा द्वीप है जहाँ कई धर्म और जातीय समूह हैं। हिन्दू धर्म लचीला है, इसलिए हमारे लिए घुल-मिल जाना आसान होता है। जब एक दोस्त कहता है कि अल्लाह महान है, तो मैं सहमत होता हूँ कि हाँ, अल्लाह महान है। जब एक दोस्त कहता है कि ईसा मसीह महान हैं, तो मैं सहमत होता हूँ कि हाँ, ईसा मसीह महान हैं। लेकिन उनके साथ ऐसा नहीं है, हर कोई इस पर सहमत नहीं होता कि भगवान महान है। मेरे लिए उन पर ध्यान न देना भी आसान होता है। क्योंकि हिन्दू धर्म कहता है, दूसरों के दृष्टिकोण का सम्मान करो।”
महाशिवरात्रि के पर्व पर युवा काँवर ढोते हुए
श्याचिन कुमार औचराज
श्याचिन कुमार औचराज, जो पेशे से एक बागान मालिक हैं, हिन्दू पहचान रखते हैं लऔर अपने हाथ पर लाल धागा, रक्षा सूत्र पहनते हैं ताकि अन्य लोग उन्हें हिन्दू के तौर पर पहचान सकें।
“मैं एक आर्य समाजी परिवार से आता हूँ। हम मूर्ति पूजा में विश्वास नहीं रखते हैं, लेकिन मॉरीशस में आर्य समाज वालों का अपने घर के प्रवेश द्वार पर हनुमान ध्वजा रखना आम है। आर्य समाज केवल वेदों और वैदिक अग्नि पूजा (हवन) में विश्वास रखता है, लेकिन मैंने अपने परिवार में भी मृत शरीर के पास दाह संस्कार होने तक रामायण का पाठ करने की परम्परा का पालन होते देखा है।”
श्याचिन कुमार औचराज, किसान
उन्होंने नामकरण, विद्यारम्भ और विवाह संस्कार किये हैं। “मेरा परिवार घर पर साप्ताहिक और मासिक हवन करता है। हम आम तौर पर मन्दिर नहीं जाते, लेकिन नये साल, महाशिवरात्रि, दुर्गा पूजा और अन्य त्यौहारों पर हम अपने निकटतम मन्दिर में पूरे परिवार के साथ जाते हैं।”
उनके पसन्दीदा त्यौहार हैं, “महाशिवरात्रि”, क्योंकि जब वे गंगा तालाओ जाते हैं तो वहाँ जाने वाले हर एक को जोड़ने वाला यह एक शक्तिशाली बन्धन है, और दूसरा दिवाली, क्योंकि, हम सबके घर जाते हैं और मिठाइयाँ बाँटते हैं, जो खुशियाँ बाँटने जैसा है।”
उनकी पसन्दीदा नियमित पारिवारिक परम्परा पूर्णिमा को होने वाला मासिक हवन है, जब पूरा परिवार एक छोटे अग्नि अनुष्ठान के लिए एक साथ बैठता है। “मेरे पिता के तीन भाई हैं और मेरे दादा के दो भाई थे। अब हर कोई एक ही परिसर में अलग-अलग रहता है, इसलिए जब कोई कार्यक्रम होता है तो हम निकट परिवार से ही ६० या उसके आसपास हो जाते हैं। आपकी अपनी निजता होती है, लेकिन आप कभी अकेले नहीं होते। मासिक अग्नि अनुष्ठान घर में सकारात्मक तरंगों का प्रसार करती है।
“मैं अपनी पारिवारिक हिन्दू परम्परा में कुछ भी नापसन्द नहीं करता, क्योंकि कोई ज़रूरी चीज़ आने पर हम कार्यक्रम को छोड़ने के लिए स्वतन्त्र हैं। मैं अपनी संस्कृति से प्रेम करता हूँ, और हिन्दू समाज में मैं बस धर्म के प्रति लोगों की अन्धविश्वासी मनोस्थिति को बदलना चाहता हूँ।” श्याचिन साईं बाबा में भी दृढ़ विश्वास रखते हैं। उनका आदर्श वाक्य है सबका मालिक एक—ईश्वर एक है। “हम छोटे द्वीप रहते हैं जहाँ बहुत से समुदाय हैं। इसलिए सभी धर्मों का सम्मान करना महत्वपूर्ण है। एक बागान मालिक के तौर पर जब मैं सुबह जल्दी अपने खेतों पर जाता हूँ, मैं भूदेवी, अर्थात् धरती माँ की भी पूजा करता हूँ।”
नितिन गूकुल
मैंने नितिन का साक्षात्कार लेने का निर्णय लिया, हालांकि वह मेरे सम्पादक द्वारा निर्धारित १८ से २८ की आयु सीमा से कुछ साल ऊपर है। पिछले वर्ष जब उन्होंने अपनी पहली पुस्तक, दि स्पिरिचुल साइंस ऑफ़ वेदाज का विमोचन किया तो मेरी उनसे संक्षिप्त भेंट हुई थी, जो विषय की गहरी समझदारी के साथ लिखी गयी है।
“मैं एक नरम धार्मिक परिवार से हूँ। हम वे सभी सामान्य त्यौहार मनाते हैं जो मॉरीशस में मनाये जाते हैं, जैसे दुर्गा पूजा, महाशिवरात्र, हनुमान जयन्ती आदि। मैं स्वयं की पहचान हिन्दू के रूप में करता हूँ, क्योंकि मैंने नामकरण और अन्नप्राशन किया है। हम घर पर नियमित तौर पर वैदिक हवन और सत्य नारायण कथा रखते हैं। सभी हिन्दुओं की तरह सभी धार्मिक त्यौहार मनाते हैं।
“मैं स्वयं को धार्मिक नहीं कहूँगा। मुझे लगता है कि मैंने अपने जीवन में धार्मिक होने वाला समय पूरा कर लिया है और आप मैं ऐसी अवस्था में पहुँच गया हूँ जहाँ मैं स्वयं को आध्यात्मिक कहता हूँ। आध्यात्मिक से, मेरा मतलब है कि आपके पास आपके धर्म की वास्तविक समझदारी है और अब आप अपनी उत्कृष्ट समझ के मार्ग पर हैं। लोग आसानी से मुझे हिन्दू के तौर पर पहचान सकते हैं। मैं गले में तुलसी के मनकों की माला, नरसिंह कवच, रुद्राक्ष और लाल रक्षा सूत्र पहनता हूँ। कभी-कभी विष्णु के मन्दिर जाते समय वैष्णव तिलक लगाता हूँ।”
नितिन गूकुल, लेखक
मैंने कहा कि इतनी धार्मिक पहचान रखने वाले युवाओं को देखना आम नहीं है। “हाँ, मॉरीशस के युवा के लिए यह आम नहीं है, लेकिन लेकिन मैं उन्हें चलन से हटकर या बाध्यता के कारण नहीं पहनता। मैं उन्हें पहनता हूँ क्योंकि वे मेरी ऊर्जा से मेल खाती हैं।”
हिन्दू धर्म के अन्दर स्वयं को वर्गीकृत करने को कहने पर, वह उत्तर देते हैं, “आध्यात्मिक, लेकिन कर्मकाण्डों में विश्वास रखे वाला भी, विशेष तौर पर वैदिक यज्ञों में। पसन्दीदा हिन्दू पर्व दीपावली है क्योंकि मुझे अपने समुदाय के साथ मिठाईयाँ बाँटने और माँ लक्ष्मी की प्रार्थना करने में आनन्द मिलता है। दूसरा पसन्दीदा त्यौहार कृष्ण जन्माष्ठमी है, क्योंकि मैं मन्दिर में कीर्तन, भजन और प्रवचन का आनन्द लेता हूँ।
“मैं महीने में दो बार एकादशी मनाता हूँ, क्योंकि मुझे व्रत में आनन्द मिलता है। लेकिन मुझे वार्षिक श्राद्ध नहीं पसन्द है, जो मृत पूर्वजों के लिए की जाती है।
“मुझे द्वीप पर जाति प्रथा की उपस्थिति महसूस होती है, लेकिन इससे मुझे परेशानी नहीं होती है, क्योंकि मैं भगवद्गीता में भगवान कृष्ण द्वारा बतायी गयी असली जाति प्रथा को जानता हूँ।”
“मैं हिन्दू समाज में कुछ बदलाव नहीं चाहता, बस कुछ चीज़ें जोड़ना चाहता हूँ। मॉरीशस के युवा बहुत धार्मिक हैं, लेकिन उन्हें उचित मार्गदर्शन, गुरुकुल के रूप में धर्म के मामले अधिक व्यवस्थित शिक्षा की आवश्यकता है। सभी युवाओं की जीवन में एक समय होता है जब वे आध्यात्मिक तौर पर अलगाव महसूस करते हैं, लेकिन उनके पास व्यवस्थित मार्गदर्शन पाने की जगह नहीं होती है। वे कुछ समय के लिए आध्यात्मिकता में रुचि रखते हैं, लेकिन एक बार जब उनकी रुचि समाप्त हो जाती है तो कोई सहायता नहीं करता है। उनमें से कुछ वापस आध्यात्मिकता के मार्ग पर आ जाते हैं, लेकिन बहुत से लोग साथियों के दबाव—और नशे के कारण दिशाहीन हो जाते हैं, जो इन दिनों मॉरीशस के बहुत से युवाओं के लिए सबसे बड़ी समस्या है।”
रक्षिता किसून
२३ वर्षीय रक्षिता किसून समरशॉट टॉट्स नर्सरी एण्ड प्री प्राइमरी में एचआर और प्रशासनिक प्रबन्धक के रूप में काम करती हैं और हिन्दी भाषा में परास्नातक कर रही हैं। वे अभी-अभी भारत से वापस लौटी हैं, जहाँ वे हिन्दी भाषा की शिक्षिका बनने के लिए हिन्दी भाषा की उच्च शिक्षा प्राप्त करने गयी थीं।
वह कहती हैं कि लोग आसानी से बता देते हैं कि वह एक हिन्दू हैं: “मैं हमेशा अपने माथे पर एक काली बिन्दी लगाती हूँ और रक्षा सूत्र पहनती हूँ।” वह स्वयं को उस श्रेणी में रखती हैं जो ईश्वर और कर्मकाण्डों और परम्पराओं में विश्वास करता है।
रक्षिता किसून और उसके दोस्त तीर्थयात्रा पर
उसका पसन्दीदा त्यौहार महाशिवरात्रि है। उन्हें घर से गंगा तालाओ तक जाने-आने की तीर्थयात्रा पसन्द है। “मेरा परिवार पिछले कई वर्षों से हमारे घर पर तीर्थाटन आयोजित करता रहा है।” वह उल्लेख करती हैं “एक-दूसरे के प्रति सम्मान; लोग ठीक से और एक जैसे कपड़े पहनते हैं; और कुछ सेवा कार्य करते हैं जैसे खाना देना, प्राथमिक चिकित्सा आदि। इस त्यौहार के दौरान वातावारण भी अद्भुत होता है और मैं सचमुच धन्य महसूस करती हूँ। बिना सोये पूरी रात चार पहर पूजा में हिस्सा लेना किसी को दूसरी शक्ति प्रदान करता है।”
उसका दूसरा पसन्दीदा त्यौहार दीपावली है: “दीपावली के दौरान, पूरे घर की सफाई और रंगाई एक आम परम्परा है जिसका हर हिन्दू परिवार में पालन किया जाता है। यूट्यूब वीडियो देखकर अलग-अलग तरह की मिठाइयाँ बनाने से और लाभ हो जाता है। हालांकि गेटौ बनाने (मॉरीशस का एक मीठा व्यंजन जो सफेद आटे और केले से बनाया जाता है) एक अनिवार्य़ व्यंजन है, आजकल मॉरीशस के लिए इंटरनेट से नये व्यंजन तलाश रहे हैं। पड़ोसियों और परिवार के साथ मिठाइयाँ बाँटना, दीये जलाना, परिवार के साथ समय बिताना, नये कपड़े, उपहार वे चीज़ें हैं जो इस त्यौहार को मेरा दूसरा पसन्दीदा त्यौहार बना देते हैं।
“मेरी दैनिक प्रार्थना में हमारे हनुमान मन्दिर पर दिन में दो बार दीया जलाना शामिल है। मुझे अपनी संस्कृति में एक चीज़ से नफ़रत है कि मेरा परिवार अभी भी जीवनसाथी चुनने के मामले में जाति में विश्वास करता है। मुझे लगता है कि कोई यह निर्धारित नहीं कर सकता कि वह कहाँ पैदा होगा। एक और चीज़ जो मुझे बुरी लगती है यह है कि ज़्यादातर परिवार एकल परिवार बनते जा रहे हैं, इसलिए हम उन महत्वपूर्ण परम्पराओं को खोते जा रहे हैं जिनको केवल दादा-दादी ही विकसित कर सकते हैं। दादा-दादी के पास बेहतर जानकारी होती है जो इंटरनेट नहीं दे सकता है।”
छात्र अपनी पढ़ाई के लिए एक वार्षिक हिन्दू प्रार्थना में शामिल हो रहे हैं
राजेश्वर सीतोहुल
एक २५ वर्षीय रंगमंच कलाकार राजेश्वर सीतोहुल मॉरीशस के सबसे युवा रंगमंच निर्देशक हैं। वह अपनी खुद की फ़िल्म प्रोडक्शन कम्पनी चलाते हैं। राजेश्वर रावण-लीला नाटक में रावण की नकारात्मक भूमिका निभाकर प्रसिद्ध हो गये।
रावण क्यों?
“पहले बहुत से लोग राम लीला खेल रहे थे। हर कोई एक ही चीज़ को बार-बार देखकर ऊब गया था। उन्होंने इसे टीवी पर पहले ही कई बार देखा था। इसलिए उसी कहानी के प्रति युवाओं को नये सिरे से आकर्षित करने के लिए, हमने रावण लीला खेलना शुरु किया। सन्देश वही है, सच्चाई की बुराई पर विजय, लेकिन कहानी को रावण के दृष्टिकोण से दिखाया गया है।
रावण के रूप में एक प्रदर्शन के दौरान राजेश्वर सीतोहुल
“मैं हिन्दू हूँ, मेरा नामकरण, अन्नप्राशन और चूड़ाकरण संस्कार हुआ है। लोग बता सकते हैं कि मैं एक हिन्दू हूँ क्योंकि मैं रक्षा सूत्र धारण करता हूँ तथा हमेशा रुद्राक्ष और ओम का कड़ा पहनता हूँ। मैं स्वयं को आध्यात्मिक के तौर पर रखूंगा लेकिन धार्मिक के तौर पर नहीं।
“दिवाली मेरा पसन्दीदा त्यौहार है, क्योंकि इस दिन पूरा द्वीप अच्छे रोशनी और अच्छी भावनाओं से भर जाता है। सभी परिवार घर सजाने और लक्ष्मी पूजा करने के लिए इकट्ठा होते हैं। मॉरीशस एक छोटा द्वीप है, इसलिए लोगों के लिए एकत्र होना आसान है, और हम ऐसे अवसरों की तलाश करते हैं। दीपावली ऐसा त्यौहार भी है अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक है। मेरा दूसरा पसन्दीदा त्यौहार महाशिवरात्रि है, जिसमें हम तीर्थयात्रियों की सेवा करते हैं। मुझे होली भी पसन्द है।
“शादी के बारे में सोचते समय, हमेशा बड़ों की ओर से जाति का मामला आ जाता है; लेकिन मेरे माता-पिता खुले विचारों वाले हैं और वे सबके साथ एकसमान व्यवहार करते हैं, इसलिए जाति कोई ऐसा मामला नहीं बनेगा।
मुझे हिन्दू धर्म में कर्म की अवधारणा पसन्द है। मुझे कुछ रीति-रिवाज़ और परम्पराएँ निरर्थक लगती है, जैसे पत्थर पर सिन्दूर लगाना और इसकी इसकी पूजा बिना यह जाने करना कि वे असल में किसकी पूजा कर रहे हैं।”
रचना
रचना, लक्ष्मी देवी हर्दे का “कागजी नाम” है जो पेशे से एक सामाजिक कार्यकर्ता हैं। वह २४ वर्ष की हैं और नेशनल लीडरशिप इंजिन में प्रशिक्षक हैं। उन्होंने शिक्षा शास्त्र में स्नातक किया है, उन्होंने इंडिग अर्ली लर्निंग सेण्टर की स्थापना की है। वह कई एनजीओ से जुड़ी हुई हैं।
“मॉरीशस के हिन्दू युवाओं के आमतौर पर दो नाम होते हैं। कागज का नाम ज्योतिष के अनुसार चुना जाता है। दूसरे को माँ-बाप के द्वारा चुना जाता है, न कि ज्योतिष के अनुसार। हर कोई हमें दूसरे नाम से जानता है।”
“जब मैं बड़ी हो रही थी, हिन्दू धर्म के बारे में मेरी सोच घर पर मेरी माँ द्वारा की जाने वाली दैनिक पूजा थी। विशेष शिव अभिषेक जो हम पूरे परिवार के साथ हर सोमवार को करते हैं मेरे हृदय में विशेष स्थान रखता है। यदि मैं किसी कारण से प्रार्थना में शामिल नहीं होती हूँ, मुझे लगता है कि कुछ छूट रहा है। मैंने नामकरण, अन्नप्राशन और विद्यारम्भ संस्कार किये हैं। मैं कभी-कभी गणेश पूजा में जाती हूँ और मैं रक्षा सूत्र पहनती हूँ।”
रचना, सामाजिक कार्यकर्ता
१६ वर्ष की उम्र में, उसने हाई स्कूल की परीक्षाओं के कारण नियमित तौर पर मन्दिर जाना और प्रार्थना में शामिल होना छोड़ दिया। लेकिन परिवार और दोस्तों द्वारा किये जाने वाले नियमित कर्मकाण्डों ने उसे धर्म और परम्पराओं से जोड़े रखा। “कभी-कभी घर पर सत्यनारायण कथा होती है। शादी-विवाह में भी हमारे रीति-रिवाज और परम्पराएँ शामिल होती हैं। बहुत सी चीज़ें हैं जो हमें इस द्वीप पर धर्म और आध्यात्मिकता से जोड़े रखती हैं।
“एक चीज़ जिसकी मुझे मॉरीशस के हिन्दू समुदाय में कमी महसूस होती है वह है गुरुकुलम, जो भारत और अन्य देशों में पाये जाते हैं लेकिन मॉरीशस में अभी नहीं पाये जाते हैं। मॉरीशस में जाति प्रथा एक समस्या है क्योंकि कुछ लोग अपने समूह बना लेते हैं, लेकिन मैं हर व्यक्ति का सम्मान करती हूँ।”
ईशान विषम
ईशान विषम
“मैं एक बहुत धार्मिक परिवार से आता हूँ, लेकिन कभी-कभी मुझे लगता है कि बहुत से कर्मकाण्ड हैं जिन्हें हिन्दू धर्म मान्यता नहीं देता है। उदाहरण के लिए, कुल देवी पूजा में मेरे दादा-दादी पशु बलि में शामिल होते थे, जिसे मैं नहीं मानता, लेकिन साथ ही वे पवित्र रामायमण का भी प्रयोग करते थे। मैं बहुत अन्तर्विरोध महसूस करता था। इसलिए मैं इस विषय की और जानकारी लेने के लिए कई बाबाओं और स्वामियों के पास गया। कई सालों बाद, मैंने एक सामुदायिक डिजिटल चैनल, तीर्थ वेबकास्ट शुरु करने का निर्णय लिया। यहाँ मैं दर्शकों को हिन्दू धर्म के महत्वपूर्ण पहलुओं को समझाने, और कर्मकाण्डों के महत्व की और इसे करने के कारण पर चर्चा करने की कोशिश करता हूँ।”
“आज मॉरीशस में जाति सामाजिक से अधिक राजनीतिक वस्तु है। कुछ लोग हैं जो सोचते हैं कि वे उच्च जाति से हैं, भले ही उनका व्यवहार नीचा हो। वे अपने बच्चों को अपने से नीचे की जाति में शादी करने के बारे में न सोचने का दबाव बनाते हैं।”
पुनर्जन्म में विश्वास करने वाले ईशान सोचते हैं कि कुछ युवा हिन्दू धर्म के वास्तविक सार को नहीं समझते हैं। “हमारे थोड़े से युवा महाशिवरात्रि की तीर्थयात्रा पर या मन्दिर में बस अपने दोस्तों के साथ सामाजिकता के लिए जाते हैं। ये कुछ लोग धर्म पर ध्यान तक नहीं देते हैं। वे अपने लिए एक कोना तलाश लेंगे और बुरे काम करते हैं और अपनी दुनिया में नशे की लत के शिकार हो जाते हैं।”
“साथ मिलकर हम बहुत सी चीज़ों में बदलाव ला सकते हैं। हिन्दू संगठनों, मन्दिरों और अन्य को बेहतर भविष्य के लिए उनपर ज़िम्मेदारियाँ सौंपनी चाहिए। मैं बेहतर विश्व के लिए भविष्य की पीढ़ी में विश्वास करता हूँ। वे जो आँख मूँदकर काम कर रहे हैं, उन्हें गुरु परम्परा का पालन करना चाहिए, जहाँ गुरु मार्गदर्शक हो सकता है। एक सामूहिक प्रयास, एक सामूहिक प्रभाव, और हम सब का सामूहिक रूप से उत्थान हमें अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायक होगा। हाल के वर्षों में, बदलाव हुआ है और हमारे युवा धर्म और संस्कृति के बारे में सबसे अधिक चिन्तित हैं। धरातल पर भी काम किया गया है और विकास करने और बड़ा प्रभाव डालने के लिए काम को जारी रखना चाहिए। धर्मो रक्षति रक्षितः। धन्यवाद और आभार। ओम् नमः शिवाय!”
चाँदनी सेनरुण्डन
मॉरीशस के मन्दिरों में, एक गायन समूह अर्थात् भजन मण्डली का होना आम है। इन समूहों के ज़्यादातर युवा युवा होते हैं, हालांकि बच्चे और बड़े भी शामिल होते हैं। मैंने हमेशा अपने घर के बगल के मन्दिर में चाँदनी सेनरुण्डन को संस्कृत स्तोत्र गाते हुए देखा है। चाँदनी मॉरीशस के सरकार अस्पताल में नर्स है। एक सोमबवार, उसके मन्दिर में शिव अभिषेक पूजा के बाद नर्मदा अष्टक स्तोत्र गाने के बाद, हम बातचीत के लिए बैठ गये। मैंने पूछा कि वह मन्दिर इतना नियमित क्यों आती है।
चाँदनी सेनरुण्डन और उनका परिवार
“मन्दिर मेरे लिए रीचार्ज होने की जगह है। मुझे मन की शान्ति के लिए प्रतिदिन जाना होता है। यदि मैं घर पर हूँ तो हमारे हनुमान मन्दिर पर दिन में दो बार दीया जलाना मेरी दिनचर्या का हिस्सा है। किसी भी सोमवार को जब मैं छुट्टी पर होती हूँ, मैं मन्दिर जाना और शिव अभिषेकम् में भाग लेना पक्का करती हूँ।” (मॉरीशस के हर शिव मन्दिर में सोमवार की शाम को विशेष शिव अभिषेकम् पूजा होती है।) “शिव के साथ मैं नन्दी, भैरव, हनुमान और माँ दुर्गा की भी पूजा करती हूँ।
“अपने माता-पिता को प्रसन्न रखना मेरा धर्म है,” उन्होंने कहा। मैंने तुरन्त पूछा कि क्या वह एक तय की गयी शादी होने पर ठीक रहेंगी। “मुझे नहीं पता; लेकिन मुझे अपने माता-पिता पर भरोसा है, और मेरे माता-पिता मुझ पर भरोसा करते हैं। इसलिए चाहे यह प्रेम विवाह हो या तय किया गया विवाह, मेरे माता-पिता मेरे चुनाव से प्रसन्न होंगे और मैं भी उनके चुनाव से प्रसन्न रहूँगी।”
चाँदनी सेनरुण्डन परिवार और दोस्तों के साथ गणेश विसर्जन करती हुईं
निष्कर्ष
तो हमने देखा कि कुछ युवाओं ने हिन्दू धर्म का सार पुस्तक के ज्ञान में पाया है, कुछ ने शाकाहार में, कुछ ने अपने माता-पिता को खुश रखने में, कुछ ने मातृभूमि की सेवा करने में। जब धर्म और आध्यात्मिकता की बात हो तो युवा खोजी होते हैं।
लेखिका और उनके पति आचार्य पूरन तिवारी अपने मन्दिर पर, मॉरीशस के लालौरा में शिव शक्ति मन्दिर
मॉरीशस के युवा अपने धर्म का आनन्द ले रहे हैं। यहाँ बहुत से त्यौहार युवाओं और उन्हें सफल बनाने के उनके बेझिझक प्रयास की वजह से सजीव और जीवन्त हैं। मॉरीशस के युवा केवल भाग ही नहीं लेते, वे अपने धर्म पर गर्व करते हैं। धार्मिक सामग्री से भरा उनका सोशल मीडिया उनके गर्व का प्रमाण है। महाशिवरात्रि के दौरान, हजारों काँवड़ (पानी का कलश ले जाने वाले सज्जापूर्ण फ़्रेम) गंगा तालाओ के पवित्र तीर्थस्थल पर पहुँचते हैं। और यह एक ज्ञात तथ्य है कि काँवड़ियों में से ९० प्रतिशत—वे जो काँवड़ लेकर पैदल गंगा तालाओ आते हैं—पच्चीस साल से कम उम्र के युवा हैं।
मुश्किल से ही कोई युवा मिलेगा जो महाशिवरात्रि के दौरान पैदल गंगा तालाओ नहीं गया हो, कवाड़ी में भाग न लिया हो, या हमारे सुन्दर नीले तटों पर गणेश विसर्जन में शामिल न हुआ हो।
मॉरीशस एक छोटा लेकिन बहुसांस्कृतिक समाज है। कोई देशी आबादी नहीं है। सभी लोग सत्रहवीं और अठारहवीं शताब्दी में फ़्रांसीसी और अंग्रेज़ उपनिवेशवादियों द्वारा दासों और गिरमिटया मज़दूर के रूप में लाये गये थे।
उन्होंने इस विदेशी भूमि पर अपने धार्मिक और सांस्कृतिक पहचान को बचाये रखने के लिए बहुत मेहनत की। छोटी चीज़ें, जिन्हें आमतौर पर बहुत ध्यान नहीं दिया जाता, उन्हें भी बहुत ध्यान दिया गया, विशेष रूप से धार्मिक मामलों में। आज के संचार संसाधनों की समृद्धि के युग से पहले, हमारे पूर्वजों ने इस विदेशी भूमि पर अपने जीवन को जोख़िम में डालकर अपने धर्म को जीवित रखा। हर युवा पीढ़ी को धर्म की रक्षा करना और धर्म को कभी भी हल्के में न लेना सिखाया गया था। धर्मों का सम्मान करना और इस पर गर्व करना हमारे युवाओं के जीन में है।
आज लगातार बदलते हुए समाज के कारण युवाओं के लिए एक कठिन समय है, इसलिए कोई भी भविष्य का अनुमान नहीं लगा सकता है; लेकिन आज के मॉरीशस के युवा हिन्दू धर्म के लिए गर्व करने की चीज़ हैं।
हिन्दू युवा और उनके परिवार पॉइंटे दे लास्कार हिन्दू स्पिरिचुअल पार्क में पंचमुखी गणेश मन्दिर में गणेश चतुर्थी त्यौहार में शामिल होते हुए।
लेखिका के बारे में सविता तिवारी भारत में बड़ी हुई और अब मॉरीशस की निवासी हैं। वह एक उत्साही पत्रकार, ब्लॉगर, लेखिका और कवि हैं जो धर्म को प्यार करती हैं और हिन्दू धर्म के बारे में अधिक जानकारी हासिल करना पसन्द करती हैं। सम्पर्क: savitapost@gmail.com.