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सन २००० में अगस्त २८ से ३१ के बीच दुनिया के दो हज़ार धार्मिक एवं अध्यात्मिक नेता जो बहुत से विश्वास और परम्पराओं का प्रतिनिधित्व करते हैं , संयुक्त राष्ट्र के तत्वाधान में न्यू योर्क सिटी में आयोजित ‘ धार्मिक एवं अध्यात्मिक नेताओं के सहस्त्राब्दी विश्व शांति सम्मलेन ‘ में शांति के लिए कार्य करने की प्रतिज्ञा लेने के लिए एकत्रित हुए थे. हिन्दुइज़्म टुडे के संस्थापक सतगुरु सिवाय सुब्रमुनियस्वामी हिन्दू प्रतिनिधियों में शामिल थे. एक सभा में बोलते हुए उन्होंने सन्देश दिया:

“विश्व में शांति के लिए , घर में युध समाप्त करो”. उनका यह संभाषण नवम्बर/दिसंबर २००० के अंक में प्रकाशक के डेस्क से स्तम्भ में भी प्रकाशित हुआ था : ” जब संयुक्त राष्ट्र के नेताओं नें पूछा कि मानवता कैसे बेहतर तरीके से टकराव, शत्रुता एवं हिंसा पूर्ण हादसों को सुलझाये जो कि हर देश को तंग कर रहे हैं, तो मैंने जवाब दिया कि हमें कार्य करना चाहिए उनके स्त्रोत एवं उसके कारण पर , ना कि उसके लक्षणों पर. आयुर्वेदिक चिकित्सा के दौरान भी हम ऐसा ही करते हैं , कारणों पर ध्यान केन्द्रित करते हैं जिससे शरीर के प्राकृतिक संतुलन एवं स्वास्थ्य को स्थापित किया जा सके. इस तरह से हम केवल सैदेव बीमारी एवं रोग पर ही कार्य नहीं करते , बल्कि हम अपने समय और संसाधनों को एक अच्छी स्वास्थ्य प्रणाली की स्थापना में लगाते हैं जो बीमारी से लड़ कर उसे दूर कर देती है. विश्व में युद्ध बंद करने के लिए हमारा दीर्घकालीन समाधान यह है कि घर में हो रही लड़ाई को बंद किया जाये. यहीं पर ही घृणा कि शुरुआत होती है, वो लोग जो हमसे भिन्न हैं उनके प्रति विद्वेष का पोषण होता है एवं प्रताड़ित बच्चे हिंसा से अपनी समस्याओं को हल करना सीखते हैं.”

सम्मलेन नें मुझे धार्मिक एवं अध्यात्मिक नेता के बीच में अंतर के बारे में सोचने पर विवश किया. जो निष्कर्ष मैं निकल पाया वो ये है कि एक धार्मिक नेता एक मान्यता प्राप्त धर्मं का नेता होता है. एक अध्यात्मिक नेता वो होता है जो दूसरों कि आत्मा को ऊपर उठाने में विशेषज्ञ होता है. कुछ धार्मिक नेता अध्यात्मिक नेता भी होते हैं और कुछ नहीं होते. मेरे गुरुदेव निश्चित रूप से दोनों थे. वास्तव में वे दूसरों कि आत्माओं के उत्थान में विशेषज्ञ थे चाहे वो किसी भी धर्मं या जाति से हों. वो ऐसा कैसे कर पाते थे ? उत्साहवर्धक शब्द बोल कर. आप भी एक आध्यात्मिक नेता बन सकते हैं. आप जिससे भी मिलें उसे केवल कुछ उत्साहवर्धक , प्रशंसनीय एवं मस्तिष्क के उच्च स्तर की ओर ले जाने वाली बात करें. इससे उनका दिन खुशगवार होगा एवं आपका भी. आपके शब्द शायद वो हों जिनकी उनको जरुरत हो एक नाखुशगवार सुबह से बचने के लिए एवं एक नयी उर्जा कि खोज के लिए. क्या आध्यात्मिक नेता यही सब नहीं करते , उर्जा को बदल देते हैं, आत्मा को उर्ध्व दिशा कि ओर ले जाते हैं जिससे कि लोग अपने अंतर्ज्ञान से जुड़ जाते हैं एवं अपने को एक उच्च दिशा के कार्य करने वाले दिन कि ओर ले जाते हैं ?

जब आप उन लोगों से मिलते हैं जिन्हें आप जानते हैं, आप उनसे पूछ सकते हैं उनके जीवन के किसी पहलु के बारे में , जैसे के उनके बच्चे या हाल में कि गयी यात्रा एवं उनकी खुशहाली में दिलचस्पी ले सकते हैं. गुरुदेव इस किस्म की सहानुभूति में कुशल थे. नतीजतन वे कुवाई में रहने वाले और विभिन्न क्षेत्रों में कार्यरत लोगों के उत्थान एवं उत्साहवर्धन का स्त्रोत थे.

बैठकें दूसरों को बढ़ावा देने के बेहेतरीन अवसर हैं. हर व्यक्ति के विचारों को ध्यानपूर्वक सुना जाना चाहिए और जब यह विचार अच्छे हों तो उनकी निश्चित रूप से तारीफ की जानी चाहिए. अगर किसी को कोई विचार प्रस्तुत करने में थोड़ी सी झिझक हो तो कुछ उत्साहवर्धक टिप्पणियों से उसे अधिक आत्मविश्वासी महसूस करने में सहायता प्रदान की जानी चाहिए. अपने पे नियंत्रण लगाना चाहिए ताकि हर बैठक में आप अपने विचारों एवं उपस्थिति से हावी ना हों.

आध्यात्मिक नेता होने का एक अन्य तरीका है दूसरों के उत्थान के लिए उनके द्वारा की गयी सहायता, दोस्ती और आप के जीवन में उपस्थिति के लिए आभार व्यक्त किया जाये. जो आभार से भरपूर हैं उनमें कोई कमी नहीं है. वे आध्यात्मिक उर्जा से भरपूर हैं , उनमे पूर्णता है और आगे की ख़ुशी के लिए किसी वास्तु की आवश्यकता नहीं है, कोई अफ़सोस नहीं है. उनकी आत्मा पूर्णे है , उनका जीवन इतना समृद्ध है कि उसे मापा नहीं जा सकता. स्वाभाविक रूप से वे उन दूसरों के लिए आध्यात्मिक नेता हें जो अपने जीवन में पूर्णत्व के आभाव को महसूस करते हें. आभार एक मामूली चीज़ लग सकती हें , परन्तु यह आध्यात्मिक परिपक्वता कि कसौटी है.

दूसरों के प्रति अपना आभार प्रगट करना उन्हें स्वयं को परिपूर्ण होना सिखाता है. इसका सबसे पहला तरीका है सबका शुभ प्रभात, दोपहर एवं शाम से मुस्कुराते हुए
अभिवादन करना. आपके अपने मूड को अच्छा रखने से आपके आसपास सब भी बेहतर महसूस करेंगे. आपके द्वारा उनको दया का प्रदर्शन करने से वे भी दूसरों को दया का प्रदर्शन करेंगे. एक शिकायत करने वाले के मुकाबले आप का व्यव्हार विपरीत होना चाहिए.

दुर्भाग्य की बात है कि आज यह अत्यंत प्रचिलित है कि जब कुछ ऐसा किया जाये जो अच्छा हो, सहायता देने वाला हो, उसका अनदेखा कर दिया जाता है. उसके होने का अहसास नहीं दिलाया जाता, उसकी प्रशंसा नहीं की जाती. परन्तु जब कोई कमी दिखाई देती है , सब उसकी तरफ तत्परता पूर्वक इशारा करते हें एवं अक्सर यह निर्दयता पूर्वक किया जाता है.

आइये अब हम आभार ना व्यक्त करने और प्रशंसा नां करने के कुछ सामान्य उदाहारण देखते हें. १) दो किशोर बालकों कि मां हर रोज उनके स्कूल एवं घर क़ी ज़रूरतों का ध्यान रखने के लिए कड़ी मेहनत करती है. वे उसके प्रयासों को महत्त्व नहीं देते एवं कभी नहीं कहते, “धन्यवाद माता जी “. २) एक पत्नी अपने पति की ज़रूरतों के प्रति निष्ठां पूर्वक ध्यान देती है एवं उसके कैरियर के प्रति भी मददगार होती है. पति कभी भी उसके सतत प्रयासों की तारीफ नहीं करता. ३) एक पति अपने परिवार की आर्थिक ज़रूरतें पूरी करने की खातिर कड़ी महनत करता है, यहांतक क़ि सप्ताहांत पर भी मेहनत करके अतिरिक्त धन अर्जित करता है. उसकी पत्नी , यह सोचते हुए क़ि यह तो उसका कर्त्तव्य है, उसके अथक प्रयासों के लिए कभी आभार नहीं प्रगट करती. ४) एक पर्यवेक्षक अपने कर्मचारियों पर अतिरिक्त समय लगता है जिससे कि उनके कौशल में वृद्धि हो एवं वे तरक्की करें. परन्तु उनमे से एक भी उसके नेत्रित्व के लिए उसका आभार नहीं व्यक्त करता.

गुरुदेव नें इस क्षेत्र में दो साधनाएं विकसित कीं , एक आभार व्यक्त करने की और एक प्रशंसा की. उन्होंने पहले कृतज्ञता की साधना को पूरा करने का सुझाव दिया और उसके उपरांत सराहना की साधना का. कृतज्ञता की साधना के अंतर्गत एक कागज़ और कलम ले कर जितनी भी अच्छाई पिछले पांच वर्ष में आपके जीवन में आई है उसकी लिस्ट बनाई जाये. जैसे जैसे समृति जीवंत होगी यह लिस्ट बढ़ेगी. गुरुदेव सुझाव देते हैं की अगर आप एक भी अच्छी चीज़ को याद नहीं कर पा रहे हैं , तो आप कई बार लिखें , ” में एक प्रकाशमान आध्यात्मिक जीव हूँ जो अनुभव के सागर में परिपक्व हो रहा है.” इससे सकारात्मक समृति जीवंत होगी जो कि जल्दी ही और विकसित होगी. प्यार भरी सराहना कि भावना उन लोगों के प्रति बहेगी जिन्होंने आपकी अच्छे समय में मदद कि थी. बुरे वक़्त के सन्दर्भ में स्वीकृति और क्षमाशीलता कि भावनाएं भी जागृत हो जाएँगी. यह साधना तुरुकुरल के उस अध्याय के ज्ञान को आवाज़ देती है जो कृतज्ञता पर आधारित है : ” दया कि बात को कभी भी भुलाना अनुचित होगा किन्तु किसी भी लगी चोट को तुरंत भूल जाना अच्छी बात होगी.”

अपने जीवन में अच्छी चीज़ों पे ध्यान केन्द्रित करने से स्वाभाविक रूप से सराहना कि साधना परिपूर्ण होती है. इस साधना के अंतर्गत आप उन लोगों को संपर्क करते हैं जिनके प्रति आप कृतज्ञ हैं और उनकी आँखों कि गहराई में झांकते हुए कहते हैं कि आप उनको कितना मान देते हैं और उनकी कितनी क़द्र करते हैं. इस बारे में केन्द्रित हो कर बात करें. यह इसकी कुंजी होगी. सिर्फ सामान्य रूप से ना कहें , जैसे कि , “आप अदभुत हैं”. इसकी बजाय विशेष गुणों क़ी बात करें ताकि व्यक्ति आपको सचमुच जान सके, जो आप कह रहे हैं उसको गहराई से महसूस कर सके, कि वेह केवल मात्र सतही सराहना नहीं है. आप संजीदगी से उनको राज़ी करें अपने दयापूर्ण शब्दों एवं मुस्कुराते हुए चेहरे से.

अपने आप को सराहना क़ी साधना क़ी तैयारी करने के लिए आप स्वयं पर अभ्यास कर सकते हैं. एक दर्पण के सामने , अपनी आँखों में देखते हुए जोर से कहें, ” में आप का आभारी हूँ और आपके मेरे जीवन में होने के सराहना करता हूँ.” इसके बाद आप कुछ उन बहुत से अच्छे कार्यों का विवरण दे सकते हैं जो आपने पिछले पांच वर्षों में किये थे. एक बार जब आप अपने को सराह कर सहज महसूस करते हैं तो आप दूसरों को सराहने के लिए भी तैयार हो जाते हैं. यह अभ्यास आपको अपनी झिझक से उबरने में भी सहायक होगा.

विशेष घटनाएं सराहना प्रगट करने का अच्छा समय प्रदान करती हैं. जन्मदिवस उत्तम अवसर प्रदान करते हैं, जैसा की माता का दिवस, पिता का दिवस एवं दादा दादी दिवस. कई देशों में बॉस दिवस भी होता है. कुछ वर्ष पूर्व हमारे मलेसिया में युवा श्रधालुओं नें अचानक माता के दिवस का आयोजन किया. उन्होंने इसके बारे में मुझे लिखा : “सामान्य सत्संग, भजन एवं ध्यान
के उपरांत हमने यकायक घोषणा की, हर अम्मा को आगे आने को कहा एवं सामने खड़ा किया और उनके हर बच्चे नें उन्हें एक बड़ी माला पहनाई, उसे एक बुक मार्क , एक कार्ड एवं एक गुलाब का फूल प्रस्तुत किया [यह सब हमारी तरफ से था]. इस दिन हर अम्मा के चरणों के आगे झुके, उसे गले मिले और इस दिन शुभकामनाएं दीं. इस समय तक ज्यादातर माताएं अपनी आँखों से बह रहे आंसुओं को पोछने में व्यस्त थीं!”

एक बाधा जो सराहना व्यक्त करने में पेश आती है वो यह कि कोई दूसरा ऐसा नहीं कर रहा. इसलिए ऐसा करने में पहल करने के लिए अतिरिक्त साहस कि आवश्यकता होती है. आदमियों के बारे में संस्कृति बिना कहे कहती है कि असली मर्द सराहना कि अभिव्यक्ति नहीं करते. उस अवस्था में और अधिक साहस कि आवश्यकता होती है.

सराहना व्यक्त करने का एक कम व्यक्तिगत तरीका है जिसमे उपहार के साथ एक लिखा हुआ संक्षिप्त सन्देश भी दिया जाता है. एक उपहार जो आप स्वयं बनाते हैं और वेह अपने हृदय से अनुभूत संजीदगी एवं परवाह को व्यक्त करता है.

मेरे गुरु नें हमें प्रोत्साहित किया कि हम परिवार के सदस्यों एवं दोस्तों , अध्यात्मिक सीख देने वालों , व्यापार के सहयोगियों एवं सामुदायिक नेताओं के प्रति सराहना कि अभिव्यक्ति, जितनी बार हो सके, करें. याद रखें जब आप अपने प्यार को दूसरों के साथ बाँट रहे हों, आप विशिष्ट रहें, मुस्कुराएँ और यह समझें कि आप दुनिया को बेहतर बनाने में मददगार हो रहे हैं. जिनका आप उत्थान कर रहे हैं वो आपके उदाहारण से सीखेंगे और बाद में दूसरों के जीवन में उत्थान लायेंगे.

उन्होंने लिखा : “हम लोग मूलतया शुद्ध आत्माएं हैं जो अस्थायी रूप से इस शरीर में रह रहीं हैं. हम कर सकते हैं और हमें चाहिए कि हम परमात्मा द्वारा दी गयी स्वतंत्र इच्छा शक्ति कि भेंट को प्यार में लपेट कर इस दुनियां में एक परिवर्तन लायें, चाहे यह एक छोटे स्तर पे ही क्यों ना हो. हम सब मिल के इस परिवर्तन को इकट्ठा बड़े पैमाने पे लायें. शिष्यों को अपने गुरुओं के प्रति आभारी होना चाहिए, पतियों को अपनी पत्नियों के प्रति, पत्नियों को अपने पतियों के प्रति, माता पिता को अपने बच्चों के प्रति, बच्चों को अपने माता पिता के प्रति, छात्रों को अपने अध्यापकों के प्रति और अध्यापकों को अपने छात्रों के प्रति. दूसरों की प्रशंसा करना एवं जो हमारे पास है उसकी सराहना करना काफी अधिक प्रभावी होगा उसकी तुलना में की हम कमी ढूंढे और शिकायत करें उनके बारे में जो हमारे पास नहीं हैं.”