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अध्यात्मिक जीवन बाकी के जीवन से अलग नहीं है , यह सिर्फ सर्वोत्तम जीवन है. कल्पना कीजिये कि एक महिला सुनती है कि रामकृष्ण नें भगवान को उतने ही स्पष्ट रूप से देखा कि जैसे कि हम एक सेब को अपने हाथ में देखते हैं, या फिर एक आदमी सुनता है महान योगिओं के बारे में जो ब्रह्माण्ड के सत्य का अहसास जीवन को बदल देने वाले हिमस्खलन के प्रकाश पुंज के द्वारा करके उस प्रकाश की एकात्मता होने को महसूस करते हैं. यह देख कर , आदमी या औरत एक पेड़ या गुफा के नीचे दिनोंदिन तक ध्यान लगाने का निर्णय ले सकते हैं. या फिर वे दिनोंदिन तक व्रत रख सकते हैं , कठिन तीर्थयात्रओं पर जा सकते हैं और रहस्यवादी मन्त्रों का घंटों तक अभ्यास कर सकते हैं. क्या वे अपने प्रयासों में सफल होंगे ? अनुभव कहता है शायद नहीं.
वास्तविक जीवन उनकी यात्रा के लिए एक कुंजी प्रदान करता है. कल्पना कीजिये कि कोई जो एक पियानो संगीत कार्यक्रम में जाता है और दुनियां के सबसे बड़े कलाकार को सुनता है. संगीत चमत्कृत करने वाला होता है , पियानोवादक के कौशल में कोई कमी नहीं है, ऊँचा उठाने वाला है , बेहतरीन है और हमारा श्रोता निर्णय लेता है , ” यह मेरा रास्ता है. में यही करना चाहता हूँ.” वेह पियानो पर बैठ जाता है , महान कलाकार के काम की बराबरी कि कोशिश करता है , पर संगीत में वो बात नहीं आती. चाहे जितने घंटे खर्च हों , चाहे जितना ईमानदारी से किया गया प्रयास क्यों ना हो, वो उसकी प्राप्ति नहीं कर पाता जो उसने संगीत कार्यक्रम में सुना था.
क्यों ? वह यह एहसास नहीं कर पाते कि उस विशेषज्ञता के स्तर पर पहुँचने के लिए कैसे कार्य की आवश्यकता है. सफल होने के लिए यह महत्वपूर्ण है रास्ते के प्रारंभ से ही शुरुआत की जाये, ना कि उसके मध्य या अंतिम भाग से. अगर मुलभूत बातों को छोड़ दिया जाय, तो हमारे प्रयासों से टिकाऊ अध्यात्मिक प्रगति प्राप्त नहीं होगी. पियानोवादक के मामले में बुनियादी बातें हैं संगीत के सिद्धांत, दिमाग की पेशियों एवं मांसपेशियों का प्रशिक्षण, स्मारंशक्ति का विकास, एक समझ रखने वाले कान को पोषित करना एवं अभ्यास, अभ्यास , अभ्यास. आध्यात्मिक जीवन में भी इससे कुछ भिन्न नहीं होता. महान लोगों नें सिर्फ किसी गुफा में बैठ के थोड़े समय में प्रबुधता नहीं पाई. उन्होंने स्वयं पे वर्षों, दशकों तक कार्य किया. उन्होंने साधना की , अपनी आदतों, इच्छाओं, प्रतिक्रियाओं में परिवर्तन किया , यहाँ तक की अपने चरित्र में भी. अगर हम वो पाना चाहते हैं जो उन्होंने पाया, हमें भी वही करना चाहिए. हमें उसके लिए कार्य करना चाहिए.
वो बुनियादी बातें , नींव, जिनपे हमारी आध्यात्मिक उन्नति निर्भर करती है , हमारा चरित्र है. चरित्र वास्तव में है क्या ? चरित्र मानसिक और नैतिक गुणों को जोड़ है जो किसी व्यक्ति में विशिष्ट रूप से होती हैं. अध्यात्म के पथ पे , पहले चरण का प्रयास अपने चरित्र को बनाने, बेहतर करने और बदलने का है. मेरे गुरु , सिवाय सुब्रमुनियम स्वामी नें फ़रमाया :
“यह सच है कि आनंद ध्यान से आता है , और यह भी सच है कि उच्च चेतना सारी मानव जाति कि विरासत है. फिर भी , दस संयम [यम] और इसी से जुड़े व्यवहार [नियम] चेतना के आनंद को कायम रखने के लिए आवश्यक हैं, साथ ही साथ अपने और दूसरों के प्रति अच्छी भावनाओं को जो कि किसी भी अवतार में प्राप्त क़ी जा सकती हैं. यह संयम और व्यवहार चरित्र का निर्माण करते हैं. चरित्र आध्यात्मिक विकास कि नींव है. तथ्य यह है कि जितना हम ऊपर जा सकते हैं , उतना ही हम नीचे भी गिर सकते हैं. ऊपर के चक्र तेजी से घूमते हैं , तो जो नीचे के चक्र हमें उपलब्ध हैं वे उनसे भी तेज़ घूमते हैं. हमारे चरित्र का मंच हमारे जीवन शैली के अनुरूप बनाना चाहिए जिससे क़ी संपूर्ण संतोष हमें प्राप्त हो सके, जो इस पथ पर चलने हेतु आवश्यक है. इन महान ऋषियों नें मानव प्रकृति क़ी कमजोरियों को देखा और इस मार्गदर्शन एवं अनुशासन को दिया जिससे क़ी इसको मज़बूत किया जा सके. उन्होंने कहा , “प्रयास करते हैं ! प्रयास करते हैं क़ी दूसरों को चोट ना लगे, हम सच्चे हों और अन्य उस सभी सदगुणों का सम्मान करें जो उन्होंने बताये.”
चिन्मय मिशन के संसथापक स्वामी चिन्मयानन्द नें अध्यात्मिक विकास को सीधे चरित्र परिवर्तन से जोड़ा : “अगर हम अपने जीवन को इस तरह से व्यवस्थित करें जिससे कि हम अपने अन्दर की क्षमता को खोज सकें, और हम अपने व्यवहार पर ऐसा नियंत्रण करें जिससे उस क्षमता का पोषण एवं विस्तार हो , तब हमारा जीवन अच्छी तरह व्यतीत होगा. हमारी सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि हम अपने चरित्र और व्यवहार में कितना परिवर्तन ला पाते हैं.”
मेरे गुरु नें व्याख्या की, “चरित्र के निर्माण के लिए , यमों के हिसाब से कार्यवाही करने से , एक व्यक्ति को महसूस करना चाहिए कि, सहज भाव से कार्य करने से, उसने जो परिणाम भोगे , उन्हें वेह दोबारा से अनुभव नहीं करना चाहेगा , इसलिए, अब वो महसूस करता है कि उसे इस संयम का पालन करना चाहिए ताकि दोबारा उसे उन परिणामों को ना भोगना पड़े. यही नींव है ; इस नींव के बिना अध्यात्मिक विकास नहीं है , फल नहीं है. उच्चतम अनुभूति का एहसास करने के प्रयास बिना इस नींव के डाले , कुछ ऐसा होगा जैसे एक नीम्बू के वृक्ष को जड़ से काट के उसे एक बाल्टी में रख दें और उम्मीद करें कि उससे फल कि प्राप्ति होगी. ऐसा हरगिज़ नहीं होगा.”
हम में से हर में कई चरित्र के गुण हैं. चरित्र का गुण एक आदत होती है , एक सधा तरीका और सोचने का ढंग होता है, बोलने या अभिनय का. बहुत से व्यक्तियों में सकारात्मक चरित्र के गुणों का एक सम्मिश्रण होता है (जैसे कि उत्साह्पुर्नता , समयनिष्ठता , भरोसेमंदगी , दयालुता या इमानदारी) और नकारात्मक गुण {जैसे कि व्यंगात्मक होना , आलसी, मंद या भ्रामक ).
हम सब ने नकारात्मक चरित्र के बारे में दिए जाने वाले आम बहानों को सुना है : “में तो ऐसा ही हूँ. में इसके बारे में क्या कर सकता हूँ ? में बस एक आलसी व्यक्ति हूँ. ” हिन्दुइज्म सिखाता है क़ी जिस चरित्र के साथ इस जीवन में हमारा जन्म हुआ है वेह हमारे पुराने जन्मों के कुल कर्मों के जोड़ का परिणाम है. कुछ लोग जन्म से ही स्पष्ट रूप से धर्मनिष्ठ होते हैं, दुसरे मिश्रित प्रकृति के होते हैं और कुछ अन्य आत्म केन्द्रित एवं कुटिल. हालाँकि हिन्दुइज्म यह भी सिखाता है कि हम अपने चरित्र के गुणों को परिवर्तित कर सकते हैं , जिनके साथ हमारा जन्म हुआ था, आत्म सोच विचार एवं आत्म प्रयास के द्वारा, उनको देख कर और अपने विचारों पर नियंत्रण करके एवं वर्तमान में कर्म करके, विशेष रूप से सकारात्मक विचारों एवं कार्यों की पुनरावृति के द्वारा. जितना ज्यादा हम चरित्र के गुण को व्यक्त एवं उस पर सोच विचार करेंगे , जिस गुण को हम बढ़ाना चाहते हैं , उतना ही मजबूत वो बन जायेगा.
इस विचार को स्वीकारना कि हम आलस्य जैसे नकारात्मक चरित्र के गुण को बदल सकते हैं, एक आवश्यक पहला कदम होगा. एक बार इस परिपेक्ष को ध्यान में रखेंगे , तब निम्न लिखित चार पदों वाला दृष्टिकोण अपनाना , काफी उपयोगी होगा, इसके विपरीत सकारात्मक चरित्र के गुणों के विकास के लिए :
- सकारात्मक गुणवत्ता को समझना
- इसकी अभिव्यक्ति को पहचानना
- इसके लाभों को महसूस करना
- इसकी अभिव्यक्ति का अभ्यास करना
इस प्रक्रिया के उपयोग में, हम पतंजलि के योग सूत्र के निम्नलिखित सिद्धांतों को ध्यान में रख सकते हैं :
“निम्नस्तरीय सोच को हटाने के लिए , उसके विपरीत सोच को पोषित किया जाना चाहिए, अस्वास्थ्यकर विचार, जैसे की किसी को नुकसान पहुँचाना या और कुछ – चाहे किया हो , किया जाना हो, या जिसकी मंजूरी दे दी हो , चाहे लालच से उपजा हो , गुस्से या मोह से, चाहे हल्के, मध्यम या अतिवाद से – कभी अज्ञानता और पीड़ा में पकने से रुकता नहीं. इसलिए हमें इसके विपरीत को पोषित करना चाहिए.”
चलो देखते हैं कैसे इस चार कदम की प्रक्रिया को आलस्य को मेहनत में बदलने के लिए उपयोग किया जाये.
पहले: सकारात्मक गुण को समझें. सुनिश्चित करें कि आपको जो चरित्र का गुण पोषित किया जाना चाहिए उसकी स्पष्ट जानकारी हो. इसको करने का एक अच्छा तरीका होगा कि इसको आप अपने शब्दों में परिभाषित करें. आइये हम बहुत लगन से कार्य करने को “मेहनती, जो किसी परियोजना को खत्म करने हेतु लम्बे समय तक कार्य कर सकता हो ” के रूप में परिभाषित करें. इसका विपरीत आलस्य होगा, “कड़ी मेहनत ना करना , बिना काम के रहने को चुनना. ” तदोपरांत सकारात्मक गुण पर ध्यान लगायें.
दूसरा : इसकी अभिव्यक्ति को पहचानें. सकारात्मक विचारों , शब्दों, दृष्टिकोण और व्यवहार का प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों कि एक सूचि बनाएं. इसके बाद एक अन्य सूचि विपरीत गुणों कि बनाएं.
मेहनत | आलस्य |
---|---|
अभी कार्य करें | कार्य को टाल दें |
कार्य ख़त्म करने के लिए देर तक कार्य करें | जल्दी से जल्दी रुक जायें |
अधिकतम उत्पादकता | कम से कम करो |
तीसरा : इसके लाभ को महसूस करें. इस गुण के फायदों कि लिस्ट बनाएं. इसमें शामिल कर सकते हैं अंतर्दृष्टि को जो इससे समस्याएं होती हों जब इसके विपरीत कार्य किया जाये.
- मेहनत
- परिवार एवं समुदाय कि सेवा करने की बेहतर क्षमता
- कैरिएर में उन्नति के अवसर
- सहयोगियों से प्रशंसा
- बढ़ा हुआ आत्म सम्मान
- आलोचना से बचाव
शास्त्र अंतर्दृष्टि प्रदान कर सकते हैं. तिरुकुरल मेहनत से कार्य करने पर बहुमूल्य विचार प्रदान करता है, यह कहते हुए, “सौभाग्य अपने आप मेहनत करके ढूंड निकलता है ऐसे व्यक्ति को जिसके भीतर ना ख़त्म होने वाली उर्जा हो.” आलस्य के बारे में वेह चेतावनी देता है: कार्य का टालना , विसमृति, आलस्य और नींद – यह चार उस जहाज को बनाते हैं जिन पे सवार लोगों की किस्मत उन्हें बर्बाद करती है.”
चौथा: उसकी अच्छाइयों का अभ्यास करें. सकारात्मक चरित्र का विकास करने वाले कार्यों का नियमित अभ्यास करें. पास से देखें जैसे के आप उनके अनुभव से लाभान्वित हो रहे हैं. ऐसे लक्ष्य सामने रखें जो आसानी से पूरे हो सकें. सावधान रहें कि लक्ष्य बहुत ऊँचे ना हों, जो पूरे ना हो सकें , आप हतोत्साहित हो जायें और प्रयत्न करना छोड़ दें. मेहनत के गुण को बढ़ाने के लिए इस बात पर ध्यान केन्द्रित करें कि आपकी उत्पादकता प्रतिदिन पाँच प्रतिशत के हिसाब से बढे. यह तेज़ कम करके हासिल किया जा सकता है, या फिर लम्बे समय तक काम करके, या इन दोनों के सम्मिश्रण से.
धीरे धीरे , चरित्र का निर्माण शुरू हो जायेगा और आपको परिभाषित करने वाले बहुत सारे लक्षण बदलाव का इशारा करेंगे, जिससे कि आपके दिन प्रति दिन के जीवन में गहरी आध्यात्मिकता और अति सुरक्षित भौतिक अस्तित्व का अनुभव होगा. याद रखें : लगातार चेष्टा करना कर्म पर विजय प्राप्त करने कि कुंजी है.