हिंदू अभ्यासों का उद्देश्य

image

प्रकाशक के डेस्क से

हिंदू अभ्यासों का उद्देश्य

______________________

धर्म, सेवा, पूजा और राजयोग मन के शुद्धिकरण की ओर ले जाते हैं , जो सभी आध्यात्मिक प्रयासों का सार है

______________________

द्वारा सतगुरु बोधिनाथा वेय्लान्स्वामी

image


Read this article in:


English |
Hindi |
Tamil |
Spanish |
Gujarati |


अक्सर हिंदू धर्म के अभ्यासों को प्रस्तुत करने में किये जा रहे कार्यों को उनके उद्देश्य की कम या बिना व्याख्या के वर्णित किया जाता है. ये पुराने समय में ठीक कार्य करता होगा, किन्तु आज के अभ्यास करने वाले अपनी साधनाओं के बारे में स्पष्ट कारणों और अंतर्दृष्टि की मांग करते हैं. चार पारंपरिक अभ्यास हमारे अन्वेषण को सूचित कर सकते हैं। 1) हिन्दुओं को सिखाया जाता है की वो धर्म का पालन करें और अधार्मिक कार्यो, जैसे कि दूसरों को नुकसान पहुँचाना ,चोरी और झूठ बोलने से बचें। 2) सेवा, नि: स्वार्थ सेवा, नियमित रूप से की जानी चाहिए । 3) पूजा, घर के मंदिर में प्रतिदिन करें या उसमें भाग लें और साप्ताहिक, पास के मंदिर में. 4) राज योग के अनुशासन , जिसमें ध्यान के गहन रूप शामिल हैं, अधिकतर भक्तों द्वारा किया जाने वाला एक नित्य अभ्यास है.

इन अभ्यासों को क्या महत्वपूर्ण बनाता है? पश्चिमी धर्मों में धार्मिक प्रथाओं के लिए एक तर्क है कि वे अच्छे मार्ग को परिभाषित करते हैं जो उसका अनुसरण करने वाले को स्वर्ग की ओर ले जाता है। जबकि हिंदू धर्म और अन्य पूर्वी धर्मों में वे इस वजह से महत्वपूर्ण नहीं हैं।

उपरोक्त सवाल का जवाब देना प्रारम्भ करने से पूर्व, आइये हम एक मूल हिंदू धारणा की जांच करते हैं :आदमी की सहज देवत्व। गुरुदेव, सिवाय सुब्रमुनियस्वामी, नें खूबसूरती से यह व्यक्त किया है :” गहराई में भीतर हम इस क्षण में ही परिपूर्ण हैं और हमें पूर्णता से जीने के लिए केवल इसकी खोज करनी है और उस तक जीने का प्रयास करना है. हमने एक भौतिक शरीर में जन्म ले लिया है ताकि हम अपनी दिव्य क्षमता का विकास कर सकें उसकी तरफ आगे बढ़ सकें. आतंरिक रूप से हम पहले से ही भगवान के साथ एक हैं. हमारे धर्म में यह ज्ञान है कि इस एकता को कैसे प्राप्त किया जाये और रास्ते में अवांछित अनुभवों का निर्माण नहीं किया जाये। ”
एक सादृश्य से इस विचार समझाना होगा। एक पानी के तालाब की कल्पना करो जिसके तल पर बड़ी सोने की डलियाँ हों। अगर तालाब की सतह हवा की वजह से लहराती है, या पानी कीचड़ या प्रदूषण से घिर जाता है, तो हम ऊपर से सोने की डालियाँ नहीं देख सकते हैं। सोने की डलियाँ हमारी आत्मा की प्रकृति का प्रतिनिधित्व करती हैं; तालाब की सतह पर की लहरें एक सक्रिय बौद्धिक मन का प्रतिनिधित्व करती हैं; और पानी के बादल अवचेतन अशुद्धियों का प्रतिनिधित्व करते हैँ। अपनी आत्मा की प्रकृति और ईश्वर के साथ अपनी एकता का अनुभव करने के लिए, हमारीबुद्धि शांत होनी चाहिए और हमारा मन शुद्ध होना चाहिए। हमें एक संवेदनशील और विनम्र पर्यवेक्षक होने की भी जरूरत है।

इस सादृश्य से हमारे सवाल का जवाब पता चलता है “हिंदू आध्यात्मिक अभ्यासों के
महत्वपूर्ण होने के क्या कारण है?” वे महत्वपूर्ण हैं क्योंकि हमारे मन पर उनका प्रभाव पड़ता है। यह प्रभाव तीन तरह का होता है: 1) वे मन को शुद्ध करते है ; 2)वे बुद्धि को शांत करते हैं और 3) वे अहंकार का अध्यात्मीकरण करते हैं, जिससे हमें अंततः हमारी दिव्य सारता का अनुभव करने का मौका मिलता है। यहाँ मैं इनमें से पहले पर ध्यान देता हूँ , लेकिन अन्य दो भी आध्यात्मिक प्रगति और प्रयास करने के लिए उतने ही आवश्यक हैं , यह दिमाग में रखना होगा।

हिंदू धर्म के विश्वकोश (भारतीय विरासत अनुसन्धान संस्थान ) में एक प्रविष्टि हमें बताती है: “शुद्धि का मतलब है शुद्धिकरण । चित्त मन है। मन (चित्त-शुद्धि) का शोधन सभी आध्यात्मिक प्रयासों का सार कहा जा सकता है।”शोधन इस और पिछले जन्मों से अतीत दुष्कर्म और परेशानी के अनुभवों के अवचेतन छापों, जिन्हें संस्कार कहा जाता है, हटाने की प्रक्रिया को कहा जाता है। ध्यान दें कि अधिक सामान्यतः संस्कार , धार्मिक अनुष्ठान या कृत्यों को संदर्भित करते हैं जो जीवन में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन को चिह्नित करने के लिए किये जाते हैं , जैसे कि विवाह का कृत्य , विवाह संस्कार। ये संस्कार प्राप्तकर्ता के मन पर गहरा और सकारात्मक प्रभाव छोड़ते हैं , परिवार और समुदाय को उसके सदस्यों के जीवन में परिवर्तन की सूचना देते हैं , और भीतरी दुनिया का आशीर्वाद सुरक्षित कराते हैं. यहाँ संस्कार अवचेतन मन पर छोड़ें गए सभी अनुभवों की ओर इंगित करते हैं , जो अंततः व्यक्ति के स्वभाव को ढालते हैं और जीवन की दशा को प्रभावित करते हैं।

विश्वकोश व्याख्या करता है , “मानसिक दोष खुशी और दर्द का मूल कारण हैं, और इसलिए वे जन्म और मृत्यु के चक्र को निरंतर बनाये रखते हैं। इस चक्र को तोडना और इस तरह दु: ख का अंत कर डालना, हिंदू धर्म और दर्शन का लक्ष्य है। इस लक्ष्य को प्राप्त करने का सबसे पक्का साधन चित्त-शुद्धि है। ” ऊपर वर्णित चार अभ्यास – धर्म, सेवा, पूजा और योग, निम्नलिखित तरीके से मन को शुद्ध करते हैं।

धर्म : धर्म का पालन करना और अधार्मिक कार्यों से बचना , जैसे कि दूसरों को नुकसान पहुँचाना, चोरी करना और झूठ बोलना , इस बात को सुनिश्चित करता है कि हम मानसिक अशुद्धि को बढ़ा नहीं रहे हैं।

सेवा : सेवा को कर्म योग के रूप में भी जाना जाता है और यह मानसिक अशुद्धताओं को कम करनेवाला एक प्रभावशाली यंत्र है. आदि शंकर नें विवेकचूड़ामणि में यूं व्यक्त किया : “ कार्य वास्तविकता की धारणा के लिए नहीं , मन की शुद्धि के लिए किया जाता है। सत्य की प्राप्ति विवेक द्वारा की जा सकती है और दस लाख कार्य करके भी कतई प्राप्त नहीं किया जा सकता।” मेरे गुरु, भक्तों को हर सप्ताह चार घंटे सेवा करने के प्रोत्साहित किया करते थे, विशेष रूप से वह सेवा जिसमें दूसरों की मदद करने पर ध्यान

केंद्रित किया जाये : “ उनके बोझ को थोड़ा सा उठाइये और, अनजाने में शायद आप उस बोझ को हल्का कर लेंगे जो शायद आपके दिमाग पर हावी था। दूसरे की मदद के माध्यम से आप अपने खुद के मन का दर्पण साफ कर पाएंगे । हम इसे कर्म योग कहेंगे, ऐठन को खोलने का गहरा अभ्यास , सेवा द्वारा, स्वार्थी , आत्म केन्द्रित, अहंकारपूर्ण नीची प्रकृति की वासनाओं का , जो जन्म जन्मान्तर में उत्पन्न हुईं और हमारी आत्मा को अँधेरे से बाँध कर रखती हैं.”

हमारा अपना हिन्दू शब्दकोष कहता है, “ वासनाएं अचेतन हठ और आदतों का एक सिलसिला हैं जो प्रभावी ताकत के रूप में , हमारी सोच और भविष्य के कार्यों को रंगती हैं और हमारे मानसिक उतार चढाव जिन्हे वृत्ति कहा जाता है , पर असर डालती हैं।” जब दो संस्कार मिलते हैं तब वासना उत्पन्न होती है, जिससे ऐसी धारणा बनती है जो व्यक्ति के किसी एक अनुभवात्मक प्रभाव से अधिक मजबूत है. स्वामी हर्षानंद हिंदूइस्म के एक संक्षिप्त विश्वकोश में लिखते हैं : “ वासना मन में एक मजबूत छाप है. यह इतनी मज़बूत होती है कि जब मन में उठती है, व्यक्ति परिणामों के बारे में सोचे बिना कार्य करने के लिए मजबूर हो जाता है.” वासनाएं नकारात्मक या सकारात्मक हो सकती हैं. निश्चित रूप से, नकारात्मक वाली को हम सेवा के माध्यम से नरम करना चाहते है।

पूजा: किसी मंदिर में पूजा और और घर के पूजा स्थल में पूजा में भाग लेना , हमारा तीसरा प्राथमिक अभ्यास है इससे प्राण के आदान प्रदान द्वारा मन पवित्र होता है, यह पूजा और हवन का वह पहलु है जिसकी अक्सर चर्चा नहीं होती है. पूजा देवता को प्राण अर्पित करने की एक प्रक्रिया है जिसमें फल, पकाया भोजन, पानी, धूप, सुगंधित फूल और दूध अर्पित किये जाते हैं। फिर, समापन आरती के दौरान, देवता और उनके सहायकों, या देवों द्वारा , प्रत्येक भक्त की आभा में इन प्राणों को वापस दर्शाया जाता है, जिससे अवचेतन में हुए जमाव की सफ़ाई हो जाती है। इस तरह से आशीर्वाद पा के भक्त धन्य होता है और मानसिक बोझ से राहत महसूस करता है ।

हमारे हवाई मंदिर में तीन पुजारिओं द्वारा एक विस्तृत हवन किये जाने के बाद , भारत के बेंगलुरु में स्थित कैलाश आश्रम के जयेंद्रपुरी महास्वामी जी नें समझाया कि अग्नि , जो कि अग्नि भगवान का सन्देश वाहक है , देवता को अर्पित की गई सामग्री को शुद्ध रूप में प्रसारित कर देते हैं, वो फिर प्राण का इस्तेमाल जो उपस्थित हों, उनको आशीर्वाद देने के लिए करते हैं. ऐसे आशीर्वाद का प्रभाव जीवन को परिवर्तित करने वाला हो सकता है, जैसा कि गुरुदेव नें फ़रमाया : “ हमारे महान मंदिरों में किये गए भगवानों के दर्शन से कई पूर्व जन्मों के कर्मों के ढांचों को बदला जा सकता है , साफ़ करते हुए और स्पष्ट करते हुए , उन परिस्थितियों को जी कि सैकड़ों वर्ष पूर्व उत्पन्न हुईं थी और अब बीज के रूप में इंतज़ार कर रही हैं, भविष्य में प्रगट होने के लिए. भगवानों की कृपा से , उन बीजों को हटाया जा सकता है, जिनके भविष्य में प्रगट होने से आत्मा के विकास में बढ़ोतरी नहीं होगी।”

राजयोग: ऋषि पतंजलि ने अपने योग सूत्र में, हमारे चौथे अभ्यास, राजयोग की शुद्धिकरण की शक्ति की प्रशंसा की है : “ जब योग के आठ अंगों का अभ्यास किया जाता है, अशुद्धियाँ कम हो जाती हैं और उज्जवल ज्ञान प्रकट होता है, जिससे अच्छे बुरे में फर्क करने का विवेक प्राप्त होता है.” उन्होंने विशेष तौर पर तपस्या या तपस, [जो कि दूसरे अंग या नियम का हिस्सा है ], द्वारा होने वाले शुद्धिकरण के प्रभाव पर प्रकाश डाला है. तिरुवल्लुवर का तिरुकुरल इस पर यह अंतर्दृष्टि प्रदान करता है: “ जैसे भट्ठी की तीव्र अग्नि सोने की चमक निखार देती है , वैसे ही तपस की पीड़ा आत्मा को शुद्ध करके परिष्कृत कर देती है।” यह छंद एक दूरस्थ हिमालय की गुफा में बिछुआ बूटी सूप पर जी रहे , या फिर बर्फीले ठंड पानी में स्नान कर रहे योगियों की छवियों मन ला सकते हैं । जबकि तपस ऐसे तीव्र अभ्यासों को गले लगाता है , इसमें किसी के भी द्वारा किया जा सकने वाले आसान अभ्यास भी शामिल हैं।

तप का एक सरल तरीका है त्याग , किसी ऐसी चीज़ का त्याग जिसे हम बेहद चाहते हैं – चाहे वो पैसा हो, समय हो या कोई भौतिक पदार्थ – किसी बड़ी अच्छाई के लिए. त्याग , जबकि दान की तरह है , उससे अलग, यह इस मायने में है कि इसमें एक तरह से खुद को नकारा जाता है। इसके उदाहरण जो मुझे उपयुक्त लगते हैं , वे हैं, एक दिन का उपवास रख कर बचत की राशि को किसी हिन्दू संस्थान को दे देना और दान के लिए पैसा बचाने के लिए महंगी छुट्टी की योजना के बजाय काम खर्च वाली छुट्टी पर जाना।

दुष्कर्म के लिए प्रायश्चित करना , तपस्या का एक दूसरा रूप है। यह मंदिर में देवता के समक्ष 108 बार साष्टांग प्रणाम , मंदिर के इर्दगिर्द चलते हुए साष्टांग प्रणाम और कावडी – वह तपस्या जो भगवान मुरुगन /कार्तिकेयन को अर्पित की जाती है , जैसे कृत्यों के माध्यम से की जाती है. गुरुदेव विवेचना करते हैं , “ तपस्या अग्नि में लिए गए एक शक्तिशाली नहान की तरह है, जिसके प्रकाश से निकलीं उज्जवल किरणें आत्मा को पुराने जन्मों के और इस जनम के भी कचरे को साफ़ कर देती हैं , जिसमें उनके अज्ञान के बंधन , भरम , क्षमा न करने की प्रवृत्ति और स्वयं द्वारा बढ़ाये गयी सनातन धरम के सत्यों से सम्बंधित अज्ञानता शामिल हैं.”

हम इस तथ्य से आनंद प्राप्त कर सकते हैं कि हिन्दू अभ्यासों को अच्छे से क्रियान्वित करने से हम अपने मन को प्रभावित कर सकते हैं और अपनी चेतना में बदलाव ला सकते हैं. अपने मन के शुद्धिकरण से , चित्त को शांत करके और अहंकार का आध्यात्मीकरण करके हम अपना विकास कर सकते हैं और आगे बढ़ सकते हैं और अंततः अपनी आत्मा की प्रकृति और उसकी परमात्मा से एकता का अनुभव कर सकते हैं। हमारे परम गुरु , श्री लंका के योगस्वामी नें इस प्रक्रिया का यूँ उल्लेख किया है :” जब मन के सांसारिक लगाव और अशुद्धियाँ गायब हो जाती हैं , तब आत्म दर्शन हो जाते हैं।”

Leave a Comment

Your name, email and comment may be published in Hinduism Today's "Letters" page in print and online. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.

Scroll to Top